7,544 पेड़ों पर चलेगी आरी

हम बात कर रहे हैं बरेली नैनीताल हाईवे की। यह कई किलोमीटर तक छायादार पेड़ों से दोतरफा घिरा हुआ है। इसीलिए बरेलियंस इसे 'ठंडी सड़कÓ कहते हैं। मगर अब शहर की यह कूल आइडेंटिटी कटने की कगार पर है। ये हम नहीं बल्कि वन विभाग का सर्कुलर बयां कर रहा है। नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्लान के तहत हाईवे को फोर लेन करने का काम चल रहा है। इस रूट पर हजारों छायादार पेड़ लगे हुए हैं, जिन्हें काटा जाएगा। फिलहाल रूट के पेड़ों को चिन्हित किया जा रहा है। डेवलपमेंट के नाम पर एक बार फिर हजारों पेड़ों की बलि चढ़ाने की तैयारी है।

हैं कई variety के पेड़

शहर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे सत्येन्द्र सिंह बताते हैं कि हाईवे पर सबसे ज्यादा पाखड़ के पेड़ लगे हैं। यही नहीं वनस्पति विविधता भी यहां भरपूर है। पाखड़ के अलावा शीशम, गूलर, पीपल, बरगद, आम, यूकेलिप्टिस सरीखे पेड़ों की लंबी कतार है। इस हाईवे के दोनों तरफ बसे गांव अपनी छोटी मोटी जरूरतों के लिए इन्हीं पेड़ों पर डिपेंड रहते हैं। वन विभाग के आकड़ों के मुताबिक, इस हाईवे पर 7,544 पेड़ों को काटना प्रस्तावित है।

लखनऊ-दिल्ली हाईवे जैसा हाल

ऐसा नहीं है कि बरेली में सड़कों को नंगा करने की तैयारी पहली बार है। थोड़ा सा फ्लैश बैक में जाइए। लखनऊ-दिल्ली हाईवे याद आया। वहां भी फोर लेन करने के लिए सड़क के दोनों तरफ खड़े छायादार पेड़ों को बेदर्दी से काट दिया गया था। फॉरेस्ट ऑफिस सोर्सेज के अकॉर्डिंग, 2 साल पहले लखनऊ दिल्ली हाईवे का टू लेन का प्लान आया था। तब भारी संख्या में पेड़ों को काटा गया। फिर प्लान में फेरबदल हुआ और हाईवे को फोर लेन में तब्दील करने पर रजामंदी हुई। तब फिर जगह चिन्हित करके भारी संख्या में पेड़ काटे गए। फॉरेस्ट ऑफिस के आकड़ों को सच मानें तो बरेली रामपुर हाईवे पर टोटल 7,193 पेड़ों को काटा गया।

 

मानकों की अनदेखी

सरकारी शासनादेश के मुताबिक, अगर शहर के बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पेड़ों को काटा जाता है, तो पर्यावरण संतुलन के लिए दूसरी जगह चिन्हित कर तीन गुना पौधारोपण होना चाहिए। इन मानकों की भी अनदेखी कर दी गई है। लखनऊ-दिल्ली हाईवे के लिए 7,193 पेड़ों को काटा गया लेकिन उसकी जगह तीन गुना तो दूर की बात आधे पेड़ भी नहीं लगाए गए। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ये कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि काम प्रोग्रेस मोड में है।

कागजों पर ही लग जाते हैं पेड़

वन विभाग की मानें तो हर साल वह लाखों की संख्या में प्लांटेशन करता है। अगर फॉरेस्ट ऑफिस के रिकॉर्ड सही हैं तो ये पेड़ आखिर जाते कहां हैं? ग्रीन बेल्ट के नाम पर सिफर क्यों है? इस सवाल का जवाब फॉरेस्ट ऑफिस के पास भी नहीं है। हां, दबी आवाज में कर्मचारी एक्सेप्ट करते हैं कि कुछ पेड़ तो कागजों पर ठिकाने लगते हैं और कुछ जमीनी स्तर पर लग भी जाएं तो उनकी देखभाल नहीं की जाती।

 

Protection की जरूरत

फॉरेस्ट ऑफिस सोर्सेज के अकॉर्डिंग हर शहर में दो कैटेगरी की लैंड होती है। पहला प्रोटेक्टिव फॉरेस्ट और दूसरा रिजर्व फॉरेस्ट। बरेली मंडल में रिजर्व फॉरेस्ट नहीं है। प्रोटेक्टिव लैंड पर पीडब्लूडी का स्वामित्व है, मगर प्लॉटिंग के लिए यह लैंड फॉरेस्ट ऑफिस को हैंडओवर है। हालत ये है कि शहर की प्रोटेक्टिव लैंड को खुद प्रोटेक्शन की जरूरत है।

क्या है नियम?

वन संरक्षण अधिनियम 1980 में प्रावधान है कि कॉलोनी स्टेब्लिश करने के लिए, कॉलोनाइजर्स को डिस्ट्रिक्ट के फॉरेस्ट ऑफिसर के माध्यम से भारत सरकार से अनुमति लेनी होती है। निरीक्षण में विभागीय संतुष्टि के बाद ही डिपार्टमेंट एनओसी जारी करता है। इसके तहत कॉलोनाइजर्स को एरिया की 25 परसेंट ग्रीनरी मेंटेन करनी होती है।

सजा का प्रावधान

सरकारी पेड़ के केस में भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 33 के तहत आरोपी पर मुकदमा दर्ज होता है। दोषी पाने पर कैद और जुर्माने का प्रावधान है। वहीं निजी पेड़ की अवैध कटान पर उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 के तहत धारा 4 और 10 के अंतर्गत मुकदमा चलाया जाता है।

हजारों लगे ठिकाने, इन्हें खबर नहीं

प्रकृति को नुकसान पहुंचाने में शहर के कॉलोनाइजर्स ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। कॉलोनी कंस्ट्रक्ट करने से पहले नक्शा बीडीए से पास होना चाहिए। साथ ही एरिया में लगे पेड़ों को काटने के लिए फॉरेस्ट ऑफिस से एनओसी लेनी होती है। पर कॉलोनाइजर्स ने न तो बीडीए से एनओसी ली और न ही फॉरेस्ट ऑफिस से। ऐसी तमाम कॉलोनी हैं। अब इस पर सोचने वाली बात ये भी है कि कॉलोनी बनने के लिए जब पेड़ काटे गए होंगे तो क्या वन विभाग को पता नहीं चला होगा? चला होगा, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई। आप खुद ही तय कर लीजिए। फाइनली पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और खामियाजा बरेलियंस को फेस करना पड़ रहा है।

नहीं है green belt

आपको बता दें कि हमारे शहर में कोई ग्रीन बेल्ट नहीं है। जबकि नियमानुसार क्षेत्रफल की 33 परसेंट ग्रीनरी होनी चाहिए। आखिर पर्यावरण की दूषित वायु को शुद्ध करने के लिए हम इन्हीं पेड़ों पर निर्भर रहते हैं। पेड़ों के कम होने का असर हम शहर की जलवायु पर महसूस कर भी रहे होंगे। ज्यादा गर्मी, कम बारिश, ये सब प्रकृति से छेड़छाड़ का ही परिणाम है।

सरकारी आंकड़ों में कब कितने पेड़ लगे

year           area          No। of trees

2009-10    255 हेक्टेयर      1,59,330

2010-11    319 हेक्टेयर      2,44,150

2011-12    279 हेक्टेयर      3,11,141

2012-13    160 हेक्टेयर      104,000 प्रस्तावित लक्ष्य

नेशलन हाईवे प्लान 24 के तहत ये पेड़ कटे थे। हाईवे चौड़ीकरण के लिए नैनीताल बरेली हाईवे पर पेड़ों का कटान प्रस्तावित है। ये शासन स्तर पर तय होता है कि किस हाईवे पर कितने पेड़ काटे जाने हैं। जहां तक ग्रीन बेल्ट की बात है, बरेली में यह ना के बराबर है।

-धर्म सिंह यादव, डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर 

विकास के नाम पर पेड़ काटे जाते हैं तो उसके दोगुना पेड़ लगाने की व्यवस्था भी गवर्नमेंट को करनी चाहिए। ऐसा न करने पर हमारी आने वाली पुश्तों को भारी कीमत अदा करनी पड़ेगी। इसके लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए।

-प्रदीप कुमार, सोशल वर्कर

Report by Abhishek Mishra