नहीं समझ सके दिक्कत

डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों पर 2007 में आमिर खान स्टारर सुपरहिट मूवी तारे जमीं पर रिलीज हुई थी। इसमें डेवलपमेंटल रीडिंग डिसऑर्डर यानी डिस्लेक्सिया से जूझ रहे एक बच्चे की कहानी थी। मूवी के रिलीज होने के बाद दुनिया भर के कई पेरेंट्स ने इस प्रॉब्लम से जूझ रहे अपने बच्चों की तकलीफ को महसूस किया, लेकिन उस समय 4 साल के रहे जीत रंधावा की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। कैंटोनमेंट में रहने वाले जीत के पेरेंट्स ने ना यह मूवी देखी थी और ना ही कभी जिक्र सुना। लिहाजा सालों तक वे जीत की प्रॉब्लम को उसकी लापरवाही समझ कर उसके साथ स्ट्रिक्टिली पेश आते रहे।  

तीन बार टेस्ट कराकर माने

जीत के फादर सतनाम सिंह रंधावा ने 2010 में सिटी के एक न्यूरोफिजिशियन से टेस्ट कराया, जहां उसके डिस्लेक्सिक होने की बात सामने आई। हर पेरेंट्स की तरह रंधावा कपल भी इस सच को एक्सेप्ट नहीं कर सका। उन्होंने दिल्ली के एम्स में जीत के स्पेसिफिक लर्निंग डिसऑर्डर टेस्ट कराए। यहां भी डिस्लेक्सिया कंफर्म हुआ। पेरेंट्स इससे खासे परेशान हो गए। रिजल्ट कंफर्म करने के लिए उन्होंने तीसरी बार चाइल्ड क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से टेस्ट कराए। इस बार भी रिजल्ट पॉजिटिव आए, तब उन्होंने माना कि वे अपने बेटे की तकलीफ को लापरवाही समझने की भूल कर रहे थे।

मां बनीं राम शंकर निकुंभ

यह पता चलने के बाद रंधावा कपल ने सबसे पहले मूवी 'तारें जमीं पर' देखी। उन्हें चिंता सालने लगी कि जीत को कैसे लिखना-पढऩा सिखाएं। बरेली में ना तो डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों को एजूकेशन देने के लिए स्पेशल स्कूल हैं और ना ही स्पेशल एजूकेटर्स। मूवी में ईशान को तो राम शंकर निकुंभ का गाइडेंस मिला, लेकिन जीत के सामने ऐसा कोई नहीं था। ऐसे में ये रोल जीत की मां संदीप रंधावा ने निभाया। उन्होंने दिल्ली जाकर साल भर स्पेशल एजूकेटर्स से ट्रेनिंग ली। तब से जीत की मां ही स्कूल के बाद उसकी स्पेशल टीचर बन गईं।

Swimming & athletics को हराया

जीत ने स्पेशल टीचिंग मेथड्स के जरिए डिस्लेक्सिया को हराकर स्विमिंग और एथलेटिक्स को जीत लिया। जीत का बड़ा भाई जयदीप जो खुद स्पोट्र्स और स्टडीज में एक्सीलेंट हैं, वह जीत की जबरदस्त गेमिंग और मैपिंग स्किल्स का फैन है। जयदीप अपने भाई के केयरिंग और लविंग नेचर को ब्लेसिंग मानता है। जयदीप सचिन तेंदुलकर, आइंस्टीन और अभिषेक बच्चन के भी डिस्लेक्सिया के पीडि़त होने की बात कहकर जीत को मोटिवेट करता रहता है।

Parents नहीं aware

मूवी के काफी पॉपुलर होने के बावजूद तमाम पेरेंट्स आज भी डिस्लेक्सिया से अनअवेयर हैं। मिसेज रंधावा खुद को एग्जांपल बताते हुए कहती हैं कि 'तारे जमीं पर' की रिलीज के 3 साल बाद तक वह इस डिसऑर्डर से अंजान थीं। यही हाल कई पेरेंट्स का है जो डिस्लेक्सिया से जूझ रहे अपने बच्चों को समझ नहीं पा रहे। पेरेंट्स के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। इसलिए रंधावा कपल अब ऐसे पेरेंट्स को अवेयर करने की मुहिम शुरू कर रहा है। जीत की मां कहती हैं कि वह सिटी में डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों को डायग्नोज करने के साथ ही उन्हें स्पेशल एजूकेटर्स से सीखे मेथड्स सिखाना चाहती हैं।

काफी sensitive होते हैं

डिस्लेक्सिया से जूझ रहे बच्चे बेहद सेंसिटिव होते हैं। ऐसे बच्चे अपनी कमजोरी को सबके सामने शो नहीं कर पाते। कोई उनकी कमजोरी का मजाक ना उड़ाए, इस डर से वे अपने को एक शेल में ढके रहते हैं। उनसे स्ट्रिक्टिली बिहेव करने पर हाइपर और अग्रेसिव हो जाते हैं। दूसरों से कंपेयर किए जाने पर खुद को इंफीरियर समझने लगते हैं। ऐसे में कई बार वे धीरे-धीरे फैमिली और सोसाइटी से अलग पड़ जाते हैं।

कैसे करें डिस्लेक्सिया की पहचान

1- अल्फाबेट्स को उनकी मिरर इमेज की तरह उल्टा लिखना।

2- सेंटेंस फॉर्मेशन में दिक्कत होना।

3- कई बार पूछने पर या बिना बात के अग्रेसिव हो जाना।

4- नए लोगों से मिलने-जुलने में हिचकिचाना।

5- हिंदी में मात्राओं की गल्ती करना, शब्द उल्टे लिखना।

6- रीडिंग के दौरान प्रोनंसिएशन में काफी गल्ती करना।

7- पुअर हैंडराइटिंग होना, स्पेलिंग्स में गल्ती और स्लो लर्नर होना।

पीडि़त बच्चों से ऐसे करें डील

1- डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों के साथ पेशेंस रखकर बिहेव करने की जरूरत।

2- छोटी-छोटी बातों पर उन्हें एप्रिशिएट करें।

3- उन्हें कभी अकेलेपन का अहसास ना कराएं।

4- डिफिकल्ट वड्र्स और सेंटेंसेज को ब्रेक कर याद कराएं।

5- बच्चों को कभी किसी से कंपेयर ना करें।

6- उनकी एक्स्ट्रा स्किल्स को प्रमोट करें।

7- क्लास में टीचर्स ऐसे बच्चों को एनकरेज करें। बाकी बच्चों के सामने उनका मजाक ना उड़ाएं।

8- बच्चों को डांटकर-पीटकर ना पढ़ाएं।

9- बच्चों को लगातार सिखाने की जरूरत। उनके टीचिंग मेथड्स में गैप ना हो।