बरेली(ब्यूरो)। बंदरों के आतंक से निजात पाने के लिए उन्हें लंगूर के कटआउट से बेवकूफ बनाने का इंतजाम शहर में बहुत दिनों तक कारगर नहीं रह सका। कटआउट बेअसर होने पर लोगों ने जीवित लंगूर का सहारा लेना शुरू कर दिया, पर उन्हें इस सहारे की कीमत जेल जाकर तक चुकानी पड़ सकती है। वन्य जीव अधिनियम के तहत लंगूर को पालतू नहीं बनाया जा सकता है। मंडे को शहर के एक पॉश कॉलोनी में बंदरों को डराने के लिए पाले गए दो लंगूरों का वन विभाग ने रेस्क्यू किया। लंगूरों को बंधक बनाए जाने की शिकायत सांसद मेनका गांधी से किए जाने पर वन विभाग ने यह एकशन लिया। लंगूरों के रेस्क्यू आपरेशन में मेनका गांधी के एनजीओ पीपुल फॉर एनिमल के कार्यकर्ताओं भी शामिल रहे। बाद में इन लंगूरों को जंगल में छोड़ दिया।

पूरे शहर में बंदरों का बोलबाला
बंदर यूं तो वन्य जीव है, पर शहरीकरण के चलते वनों का विनाश होने से बंदर भी जंगली से शहरी हो गए। शहर में प्राकृतिक आवास और भोजन की कमी के चलते ही यह बंदर लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। शहर में बंदरों के आतंक से कोई भी एरिया अछूती नहीं है। पहले इन बंदरों की संख्या सबसे अधिक जंक्शन के आस-पास रहती थी, पर कोरोना काल में यहां खाने की कमी होने से बंदर दूसरी आबादी वाली जगहों पर चले गए। इससे शहर के अधिकाशं जगहों पर बंदरों का आंतक भी शुरू हो गया। बंदरों की आबादी जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी तेजी से इनका आंतक भी बढ़ रहा है।

600 बंदरों को शहर निकाला
बंदरों के आतंक से परेशान शहर के लोग नगर निगम और जिला प्रशासन से इन्हें पकड़े की मांग लंबे समस से करते आ रहे हैं। इसी मांग पर नगर निगम ने वन विभाग से बंदर पकडऩे की परमिशन ली और 600 बंदरों को पकड़वा कर उन्हें खुटार के जंगल में छुड़वा भी दिया। इसके बाद भी शहर में बंदरों की संख्या में कोई खास कमी नहीं दिखाई दे रही है।

जंगल में छोडऩे का प्रावधान
पीपुल फॉर एनिमल संस्था के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक व विक्रांत यादव ने बताया कि कई महीनों से पीलीभीत रोड स्थित ट्यूलिप ग्रांड में लंगूरों को गेट पर बांधा जा रहा था। यहां दो लंगूर के बच्चों को गर्दन में रस्सी बांधकर गेट के पास ही बांध रखा था, जिसकी शिकायत स्थानीय पशु प्रेमियों ने सांसद मेनका गांधी से की, जिसके बाद धीरज ने वन विभाग के रेंजर्स की सहायता से लंगूर के बच्चों का रेस्क्यू किया। धीरज ने बताया कि काफी दिनों से बंधे होने के कारण दोनों डरे हुए थे, जिन्हें सीबीगंज के जंगल में छोड़ दिया।

कटआउट चंद दिनों में ही बेअसर
शहर के कई क्षेत्रों में बंदरों के आतंक से परेशान लोग इनसे बचने के तरह के तरह के जतन करते रहे। तब किसी को लंगूर के कटआउट का आईडिया आया। इसके बाद यह आईडिया शहर में तेजी से वायरल हो गया और घर, गली से लेकर पॉश कॉलोनियों में तक लंगूर के कटआउट दिखाई देने लेगे। कुछ दिनों तक बंदर इन कटआउट से डरे, पर जल्दी ही उन्हें भी असली-नकली की पहचान हो गई। इसके बाद तो कई जगह बंदरों ने ही यह कटआउट फाड़ डाले। इसके बाद वन्य जीव अधिनियम से अंजान कुछ लोगों ने लंगूर के बच्चे को ही अवैध रूप से पालना शुरू कर दिया। कई लोगों ने तो लंगूर को कमाई का जरिया भी बना डाला।


क्या कहता है नियम
लंगूर वन्य जीवन है, उसे बंधक नहीं बनाया जा सकता है। बंदरों से सुरक्षा के लिए उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 के तहत इसे अपराध माना गया है। ऐसा करने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। अक्टूबर 2012 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की थी।

वन्य जीव को अवैध रूप से पालना अपराध है। मंडे को टीम ने दो लंगूरों को रेस्क्यू किया है। वन्य जीवों के घायल या अनाथ होने की स्थिति में वन विभाग में सूचित किया जा सकता है। कोई भी उन्हें बंधक बनाकर नहीं रख सकता है।
समीर कुमार, प्रभागीय वनाधिकारी