हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली)। मां, अगर लोक लाज का ही डर था तो रोड किनारे मरने के लिए मुझे क्यों फेंक दिया। जीवन पर तो सब का ही अधिकार है, खुद से दूर ही करना था तो किसी सुरक्षित जगह छोड़ देती। शायद उस नवजात के मन में यह ही विचार रहे होंगे, जब उस के परिजनों ने उसे अपनी झुठी शान या बेटी होने के कारण रोड किनारे फेंक दिया होगा। जबकि ऐसे शिशु के लिए सरकार की ओर से जिला महिला अस्पताल में पालना लगाया है, जो जीवन देता है और नवजात को लावारिस छोडऩे वाले की पहचान भी गोपनीय रखता है।

2018 में लगा था पालना
जिला महिला अस्पताल के अल्ट्रासाउंड सेंटर लॉबी में लावारिस, अनाथ नवजात शिशुओं को सुरक्षित वातावरण, सुरक्षा व संरक्षा देने के लिए संचालित समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत &पालाना&य यानी शिशु स्वागत केंद्र को वर्ष 2018 में जिला महिला अस्पताल में स्थापित किया गया था। लेकिन तब से यह खाली पड़ा हुआ है, जबकि जिले में विगत पांच सालों में 10 से अधिक बच्चों को रोड, तालाब किनारे या अन्य स्थानों पर मारने के लिए फेंका गया है। लेकिन लोक लाज का डर के कारण सुरक्षित जीवन देने वाले इस पालना से लोगों ने दूरी बना रखी है।

चली जाती है जान
चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर बताते हैैं कि शहर में जो लोग नवजात शिशु को फेंक देते हैं, उन्हें चाइल्डलाइन के माध्यम से अपने संरक्षण में ले कर जिला महिला अस्पताल में उपचार कराने के बाद बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। समिति द्वारा नवजात को एडॉप्शन एजेंसियों में भेजा जाता है। इस प्रकरण में कुछ बच्चों की जान भी चली जाती है, क्योंकि बच्चे के माता-पिता बच्चे को फेंक देते हैं और उसे आवारा जानवर काट लेते हैं या किसी और कारण से बच्चे की जान चली जाती है। इसलिए सरकार के माध्यम से इन सभी घटनाओं को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी वीरेंद्र कुमार सिंह व जिला प्रोबेशन अधिकारी नीता अहिरवार के निर्देशन में जिला महिला अस्पताल में पालना लगवाया गया था।

तालाब में फेंका बच्चा
जन्म देने के बाद अपनों ने तो बच्चे को मरने के लिए कहीं रोड किनारे तो कहीं तालाब में फेंक दिया। लेकिन, किस्मत से कुछ बच गए तो किसी को यह दुनिया रास नहीं आई। 2022 में रहपुरा इच्जत नगर क्षेत्र में किसी ने नवजात को फेंक दिया था, उसे रेस्क्यू किया गया। मगर जान नहीं बचाई जा सकी। वहीं गुरुवार को नवाबगंज के खतौआ गांव में एक नवजात बच्ची मिली, जिसे तालाब मारने के उद्देश्य से तालाब में फेंक दिया था। लेकिन, तालाब में फैली हुई जलकुंभी बच्ची के लिए जीवनदान साबित हुई। बच्ची का सिर जलकुंभी पर था और पैर पानी में, जिसे समय रहते रेस्क्यू कर लिया गया। जिससे उसकी जान बच गई।

अब तक मिले नवजात बच्चे
-2019 में मीरगंज में खेत में मिली बच्ची
-जुलाई 2020 में डेलापीर मंडी पर लावारिस छोड़ गया बच्ची को
-2021 में सिरौली के हरदासपुर गांव में खेत में मिली बच्ची
- 2021 में शाही थाना क्षेत्र के दोनों का गांव में मेरी बच्ची जिसको चीटियों ने बुरी तरीके से पैरों में कांटा
-2019 में किला थाना क्षेत्र में एक बच्ची मटके में मिली थी, जिसे इलाज के बाद भी बचाया नहीं जा सका था।
-2022 में सेटेलाइट पर मिला नवजात
-2022 में रहपुरा इच्जत नगर क्षेत्र में फेंक दिया नवजात बच्चा, डॉक्टर नहीं बचा पाए जान
-2022 में बच्ची बिथरी चैनपुर में मिली थी, जिसका जिला अस्पताल, केजीएमयूव सैफई में इलाज कराया गया था। लेकिन, वह नहीं बच सकी।
-2023 में नवाबगंज की खटौआ हुआ गांव में तालाब में पड़ी मिली बच्ची

जिला महिला अस्पताल में एक पालना लगवाया गया था। जिस में कोई भी व्यक्ति जो अपने नवजात शिशु का पालन-पोषण करने में असमर्थ है। वह किसी गलत जगह पर न फेंके, इस पालने में रख सकता है। जिस में उस व्यक्ति पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, साथ ही बच्चों की जान भी बच सकेगी।
सौरभ गंगवार, जिला कोऑर्डिनेटर, चाइल्डलाइन