यहां तो बुलाया ही नहीं जाता

सिटी के थानों में फील्ड यूनिट को बुलाया भी जा रहा है लेकिन पुलिस के आंकड़े बतातें हैं कि रूरल एरिया के थाने इसकी इंपॉर्टेंस तक नहीं समझते। कई थाने ऐसे हैं, जिन्होंने डेढ़ साल में एक बार भी बड़ी घटना पर फील्ड यूनिट को नहीं बुलाया। 2012 में सिरौली, शीशगढ़, देवरनिया, शेरगढ़ व अलीगंज थाने में एक बार भी फील्ड यूनिट का यूज नहीं किया गया। यही नहीं 2013 में क्योलडिय़ा, हाफिजगंज, फतेहगंज पूर्वी, विशारतगंज, सिरौली व शीशगढ़ में एक बार भी फील्ड यूनिट की टीम को नहीं बुलाया गया। शीशगढ़ व सिरौली थाने दोनों सालों में निल हैं जबकि इन थानों में कई बड़ी घटनाएं हुई हैं।

DGP के आदेश का भी पालन नहीं

डिस्ट्रिक्ट के सिटी व रूरल एरिया में होने वाली हर बड़ी वारदात में फील्ड यूनिट यानी फॉरेंसिक टीम को बुलाने का आदेश डीजीपी ने जारी किया है। हर डिस्ट्रिक्ट में वर्कशॉप कराई जा रही हैं। ताकि इनके द्वारा कलेक्ट किए गए एविडेंसेज से केस सॉल्व करने में मदद मिल सके। फील्ड यूनिट के पहुंचने से पहले घटना स्थल को लोकल पुलिस द्वारा पूरी तरह से कवर किया जाए क्योंकि फॉरेंसिक एविडेंस नष्ट होने की संभावना रहती है। आदेशों के बावजूद ना तो घटनास्थल को कवर किया जाता है और ना ही फॉरेंसिक टीम की जरूरत समझी जा रही है।

बवनखेड़ी नरसंहार का उदाहरण

केसेज वर्कआउट करने में फॉरेंसिक एविडेंस कितने इंपॉर्टेंट हैं, इसके बारे में पुलिस लाइन में एक वर्कशॉप हुई। इसमें डिस्ट्रिक्ट के कई सीओ समेत 56 एसआई यानी आईओ ने ट्रेनिंग ली। वर्कशॉप में अंडर ट्रेनी आईपीएस देव रंजन ने लेक्चर दिया। इस दौरान बताया गया कि किस तरह अमरोहा के बवनखेड़ी नरसंहार में फॉरेंसिक टीम की हेल्प से पुलिस ने दो दिन में ही केस सॉल्व कर दिया था। इसमें एक लड़की ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर फैमिली के 7 लोगों को जहर देने के बाद कुल्हाड़ी से गला काटकर हत्या कर दी थी। वर्कशॉप में नया कानून पोस्को व मालखाना के मामलों के निस्तारण के बारे में भी बताया गया।

Forensic investigation

फॉरेंसिक इंवेस्टिगेशन के तहत फैक्ट्स और एविडेंसेज को लॉफुली स्टैब्लिश किया जाता है। ताकि इन्हें कोर्ट में पेश किया जा सके। केवर मर्डर ही नहीं बल्कि फाइनेंशियल फ्रॉड के केसेज में भी फॉरेंसिक इंवेस्टिगेशन काफी इंपॉर्टेंट होती है। इसके जरिए एविडेंसेज को साइंटिफिकली सबके सामने लाया जाता है, जिन्हें इग्नोर नहीं किया जा सकता। इसमें ब्लड सैंपल्स, हेयर और इंप्रेशंस जैसे फिंगरप्रिंट्स, टायर ट्रैक्स वगैरह की छानबीन शामिल होती है। वहीं वीपन आईडेंटिफिकेशन, माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन ऑफ फायरआम्र्स एंड टूल्स (ताकि घाव से वीपन को मैच किया जा सके) भी किया जाता है। इससे क्राइम में यूज वीपन पहचानने में मदद मिलती है। एविडेंसेज कलेक्ट करने के बाद इन्हें क्राइम लैब में भेजा जाता है।

20 जून को workshop

फॉरेंसिक एविडेंसेज के बारे में डिटेल इंफॉर्मेशन देने के लिए 20 जून को काफी बड़े स्तर पर ट्रेनिंग प्रोग्राम होगा। इसमें रेंज के सीओ, एसओ व आईओ हिस्सा लेंगे। ट्रेनिंग के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ के डिप्टी डायरेक्टर फिजीशियन डॉ। ग्याशुद्दीन खान आएंगे। वह एमएलसी, पोस्टमार्टम व अन्य के बारे में ट्रेनिंग देंगे। इसके अलावा बनारस की विधि विज्ञान प्रयोगशाला के डिप्टी डायरेक्टर कपिल देव डीएनए सैंपल कलेक्शन, डॉ। रवि प्रकाश वैज्ञानिक अधिकारी लखनऊ विसरा मैनेजमेंट, वैज्ञानिक अधिकारी अशोक सिन्हा नारकोटिक्स सैंपलिंग व सीनियर साइंटिस्ट मदन मोहन यादव वेलस्टिक से रिलेटेड ट्रेनिंग देंगे।

'रूरल एरिया में जिन थानों में फील्ड यूनिट का यूज नहीं किया जा रहा है, उन्हें जरूरत के मुताबिक इस यूनिट की मदद लेने के आदेश दिए जाएंगे। इसके बावजूद अगर थानाध्यक्ष फील्ड यूनिट की हेल्प नहीं लेते हैं, तो उन पर एक्शन लिया जाएगा.'

त्रिवेणी सिंह,  एसपी सिटी

Report By- Anil Kumar