- 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारत के विजय पर सेना ने धूमधाम से मनाई स्वर्ण जयंती

- गरुण डिविजन के युद्ध स्मारक पर आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किए गए रणबांकुरे और वीर नारियां

BAREILLY:

अद्वितीय शौर्य, वीरता, पराक्रम, जोश और जज्बे से वर्ष 1965 के युद्ध में पाकिस्तान पर मिली विजय को भारतीय सेना ने गोल्डन जुबिली सेलीब्रेट के रूप में सेलीब्रेट किया। इस मौके पर गरुण डिविजन, जेआरसी व अन्य युनिट व बटालियन में इस यादगार युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि दी। साथ ही, वीर नारियों और युद्ध में शामिल रणबांकुरों को सम्मान से नवाजा गया। इसमें गरुण डिविजन में जीओसी मेजर जनरल वीपीएस भाकुनी, वीसीएम और जेआरसी के कारगिल हाल में जीओसी यूबी एरिया लेफ्टीनेंट जनरल विशम्भर सिंह ने 1965 वॉर पर अपने विचार प्रकट किए। डॉक्युमेंट्री और प्रोजेक्टर के जरिए भी युद्ध के यादगार पलों को सैनिकों के साथ साझा ि1कया गया।

आधा पाकिस्तान था कब्जे में

वर्ष 1965 में पाकिस्तान के 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' के चलते भारत-पाक युद्ध हुआ, जो अप्रैल से सितंबर तक लड़ गया, जिसमें पाक के 7 हजार घुसपैठियों ने जम्मू कश्मीर के निवासियों को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश की थी, लेकिन कश्मीरी आवाम भड़कने की बजाय भारत के साथ खड़े हो गए। योजना फेल होते देख पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी इलाकों में हमला कर दिया। युद्ध में दोनों तरफ के हजारों की संख्या में सैनिक मारे गए। पहली बार इस युद्ध में अमेरिका की मदद से पाक ने युद्ध में टैंकों का इस्तेमाल किया था। भारत और पाकिस्तान की सीमा पर लड़े गए इस युद्ध में भारत के कब्जे में आधा पाकिस्तान आ गया था। बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार कोई युद्ध जमीन और आसमान दोनों तरफ से लड़ा गया।

सम्मानित हुए रणबांकुरे और वीरनारियां

गरुण डिविजन ने युद्ध में शामिल रिटायर्ड ओनररी कैप्टन ओम प्रकाश, ओनररी कैप्टन एमपी खंडूरी, ओनररी कैप्टन हनुमान प्रसाद, सूबेदार सूरजभान, एएससी होशियार सिंह व वीरनारी बसंती भंडारी को सम्मानित किया। जेआरसी में रिटायर्ड एअर मार्शल एके गोयल, कर्नल बलजीत सिंह, कर्नल केके शर्मा, वीरनारी हमीदा बेगम, कर्नल डॉ। केके सक्सेना, नायक बच्चन सिंह, हवलदार प्रेमलाल समेत 19 रणबांकुरों और 2 वीरनारियों को सम्मानित किया।

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युद्ध की यादों को किया साझा

युद्ध हुए 50 वर्षो से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन युद्ध की टीस आज भी रणबांकुरों और वीरनारियों को उद्वेलित कर रही है। क्योंकि युद्ध में जीत-हार चाहे जिसकी हुई, लेकिन इसमें किसी का साथी शहीद हुआ, तो किसी का सुहाग। जिन्हें जंग का नाम सुनाई पड़ते ही उनकी आंखों में युद्ध का नजारा कौंध जाता है। बातचीत में वीरनारियों ने जब युद्ध के अनुभव साझा कि ए तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। आइए आपको बताते हैं कि जंग के दौरान हालात क्या थे और जंग के बाद क्या हासिल हुआ।

फरवरी 65 में गए फिर नहीं लौटे - बसंती भंडारी, वीरनारी

मूलत गढ़वाल के तलवाड़ी निवासी और एमएच बरेली की रिटायर्ड हेड नर्स बसंती भंडारी ने बताया कि उनकी शादी फरवरी 1965 में हुई थी। शादी के चार माह बाद गरुण डिविजन में रायफल मैन पति किशन सिंह भंडारी को लाहौर में युद्ध के लिए भेजा दिया गया। सितंबर में दुश्मनों से जंग करते हुए वह शहीद हो गए। दूसरी शादी करने की बजाय मैंने शहीद की विधवा बने रहना स्वीकार किया।

दुश्मनों को नाश्तेनाबूद करो ताकि दोबारा अटैक न कर सकें - रिटायर्ड एअर मार्शल एके गोयल

युद्ध के दौरान एअर मार्शल गोयल पठानकोट में तैनात थे। उन्होंने बताया कि युद्ध शुरू होने के साथ ही भारतीय सेना मुख्यालय ने कश्मीर पर दुश्मनों का कब्जा न होने देना, उन्हें नुकसान पहुंचाने और दुश्मनों की टेरिटरी पर कब्जा जमाने के निर्देश दिए गए थे। जिसका एअरफोर्स ने अक्षरश: पालन किया।

ग्रेव यार्ड में बदल गया दलदल - रिटायर्ड ओनररी कैप्टन ओमप्रकाश

कैप्टन ओमप्रकाश ने बताया कि आज की तारीख में ग्रेवयार्ड के नाम से जाने जाने गुजरात दर्रे के पास उन्हें इनफैंट्री के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बताया कि दर्रे के तीन तरफ पाकिस्तान का डेरा और केवल एक ओर भारत के सैनिक थे। पाकिस्तानी नहीं जानते थे कि मार्च से सितंबर के बीच यहां दलदल हो रहता है। उन्होंने पैटन टैंक लेकर भारत की सीमा में जैसे ही घुसे टैंक दलदल में धंस गए। तीन ओर से घिरा होने की वजह से भारत के ज्यादातर सैनिक मारे गए। लेकिन वीर अब्दुल हमीद ने इसका फायदा उठाया और कई पैटन टैंकों को गन्ने की फसल की आड़ से नष्ट कर दिया। केवल 3 नॉट 3 गन और इंफीरियर टैंक के जरिए सुपीरियर टैंक को नष्ट करने की सूचना ने अमेरीकियों में खलबली मचा दी थी।