BAREILLY:

पिछले कुछ दिनों से बरेली में हो रही चोरी, लूट और धोखाधड़ी समेत तमाम वारदातों में स्टूडेंट्स के नाम सामने आए हैं। इनमें ज्यादातर माइनर एज के स्टूडेंट्स का शामिल होना सामने आया था, जिन्हे अपनी जिंदगी के इस अहम पड़ाव पर जहां उन्हें कामयाबी की राह पर दौड़ना चाहिए, वे क्राइम की राह पर चल रहे हैं। कैसे इन स्टूडेंट्स को गलत राह पर जाने से रोका जाए। इसके लिए सैटरडे को आई नेक्स्ट ने शहर के बुद्धिजीवी वर्ग से परिचर्चा की। जिसमें यह बात सामने निकल कर आई कि यदि बच्चों की परवरिश और बढ़ती उम्र के साथ उन्हें परिवार, समाज और खुद की जिम्मेदारियों के प्रति वाकिफ करा दिया जाए तो स्टूडेंट्स को क्राइम की राह पर जाने से रोका जा सकता है। हालांकि ऐसा नहीं हो पा रहा है। ऐसा न होने की वजह से ही माइनर्स में 'पीयर प्रेशर' यानि दोस्ती को परिवार से बढ़कर प्रिऑरिटी देने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। जो ऐसी वारदातों को अंजाम देने में अहम रोल अदा कर रही है। परिचर्चा का संचालन आई नेक्स्ट संपादकीय प्रभारी राजकुमार शर्मा ने किया।

परिचर्चा का सार

- पेरेंट्स और स्कूल्स दोनों को ही अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

- माइनर एज के बच्चों को टू व्हीलर्स नहीं चलाने देना चाहिए।

- मेट्रो सिटीज के तर्ज पर शहर में ट्रैफिक रूल्स फॉलो कराने होंगे।

- स्कूलों में मोरल और मोटिवेशनल क्लासेज चलानी होंगी।

- स्टूडेंट्स में कानून के उल्लंघन पर कार्रवाई का डर पैदा करना होगा।

- इंटरनेट से स्टूडेंट्स को दूर करना होगा। ज्यादातर केसेज में इंटरनेट यूज क्र ाइम का जरिया बना है।

- स्टूडेंट्स से फ्रैंडली बिहैवियर अपनाना होगा। अच्छी और बुरे के बीच फर्क बताना होगा।

- बच्चों की अच्छी हरकत पर समझदार तो गलत हरकत पर मासूम समझने की भूल न करें।

- पेरेंट्स पहले अपनी खामियों को दूर करें फिर बच्चों को समझाने का प्रयास करें।

- प्रजेंट में स्कूल पाठ्य सामग्री व्हाट्सएप पर शेयर कर रहे हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए।

- कुछ बातों पर स्टूडेंट्स को इमोशनल सपोर्ट की जरूरत होती है। जिसे पेरेंट्स इग्नोर न करें।

- साइबर क्राइम से बचने के लिए स्टूडेंट्स सोशल साइट्स पर इल्लीगल पोस्ट करने से बचें।

साइबर क्राइम में ज्यादातर माइनर एज के स्टूडेंट्स के नाम सामने आ रहे हैं। पेरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चों को सोशल साइट्स पर फैमिली फोटो अपलोड न करने दें। अननोन फ्रेंड रिक्वेस्ट को इग्नोर कर दें। इंटरनेट यूज के इल्लीगल पहलुओं से अवगत कराएं।

संतोष कुमार यादव, सब इंस्पेक्टर, साइबर क्राइम सेल

प्रजेंट टाइम में बच्चों में कानून का कोई डर नहीं है। उन्हें ट्रैफिक रूल्स, नेट यूज समेत कानून का उल्लंघन करने पर दंड के प्रावधान पता होना चाहिए। ऐसा होने से काफी हद तक क्र ाइम पर अंकुश लग सकता है। बशर्ते उसे फॉलो कराया जाए।

अंकुर गुप्ता, एडम ऑफिसर, माधवराव सिंधिया पब्लिक स्कूल

ज्यादातर समय बच्चे पेरेंट्स के साथ गुजारते हैं। फिर फ्रेंड्स के बाद स्कूल का नंबर आता है। इन पहलुओं पर गौर करें तो स्टूडेंट्स का उचित मार्गदर्शन पेरेंट्स से ही मिल सकता है। पेरेंट्स अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएं तो बच्चे सही टै्रक पर रहेंगे।

हरीश पाल, फिजिकल ट्रेनर, सेंट मेरीज हाई स्कूल

ट्रैफिक रूल्स को स्टूडेंट्स बिल्कुल भी नहीं मानते हैं। उनमें ट्रैफिक रूल्स को तोड़ने पर कार्रवाई का डर खत्म हो चुका है। स्कूल संचालकों को चाहिए कि वह बच्चों को टू व्हीलर लाने से मना करें। फिर भी वह न मानें तो पुलिस को इंफार्म करें।

प्रदीप सिंह, एएसआई, ट्रैफिक

स्टूडेंट्स को मोरल टीचिंग करानी होगी। मानवीय, सामाजिक और व्यवहारिक पहलुओं से उन्हें अवगत कराना होगा। इसमें स्कूल्स और पेरेंट्स की अहम भूमिका है। नेट यूज का बेतहाशा यूज उन्हें क्राइम के लिए प्रेरित करता है। इस पर रोक लगे।

डॉ। विमल भारद्वाज, क्रिटिकल केयर मेडिसिन एक्सपर्ट, मेडिसिटी हॉस्पिटल

महानगरों की तर्ज पर शहर में भी ट्रैफिक रूल्स फॉलो कराने होंगे। स्कूल्स में मोरल वैल्यूज की क्लासेज चलाकर उन्हें नैतिक जिम्मेदारियों और सामाजिक सरोकारों के प्रति अवेयर करना होगा। कोचिंग के बाहर व्हीकल की चेकिंग की जाए।

पारुष अरोरा, चेयरमेन, पदमावती एकेडमी

स्टूडेंट्स का भविष्य संवारने के लिए पेरेंट्स को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। पेरेंट्स पहले खुद की खामियों को दूर करें फिर बच्चों को समझाएं तो ज्यादा इफेक्ट पड़ेगा। पेरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चों को बेहतर नागरिक बनने को मोटिवेट करें।

डॉ। हेमा खन्ना, सायकोलॉजिस्ट

प्रेजेंट टाइम में बच्चों के मनोरंजन का माध्यम इंटरनेट बन चुका है। जिस पर कई अनचाही सामग्री नजरों से होकर गुजरती है। बुरी आदतें और बातें जल्दी टच करती हैं। यहीं से अपराध की शुरुआत होती है। ऐसे में माइनर एज के बच्चों को नेट यूज से रोकें।

शैलेंद्र कुमार, सोशल वर्कर एंड थिएटरिस्ट