(बरेली ब्यूरो)।शराब के अवैध धंधे में लिप्त होने पर शराब माफिया मनोज जायसवाल के जिन चचेरों भाईयों पर गैंगस्टर लगा, मिलीभगत से उनका चरित्र प्रमाण पत्र बनाकर शराब के लाइसेंस जारी कर दिये गए । शहर में शराब माफिया के ङ्क्षसडिकेट में आबकारी, खाकी और अफसरशाही के गठजोड़ की पर्तें हर रोज उधड़ रही हैं। मामले में शुक्रवार को एक और हैरान करने वाला सच सामने आया। वर्तमान में दोनों सगे भाईयों के नाम से बरेली में शराब के तीन लाइसेंस हैं। अब गैंगस्टर के शराब लाइसेंस कैसे जारी हो गए, कैसे उनका चरित्र प्रमाण पत्र बन गया? इस सवाल पर संबंधित हर जिम्मेदार बगले झांक रहे हैं।

अधिकारी झांक रहे बगलें

दरअसल, सहारनपुर की टपरी डिस्टलरी प्रकरण में बीते साल एसटीएफ ने जब करोड़ों रुपये की कर चोरी पकड़ी थी। तभी यह बात पुख्ता हो गई थी कि शराब माफिया आबकारी, खाकी और अफसरशाही के गठजोड़ से ङ्क्षसडिकेट चला रहे हैं। इनामी मनोज जायसवाल व अजय जायसवाल के जेल जाने के बाद बरेली में ङ्क्षसडिकेट के जरिए सिस्टम के भेडि़ए बेनकाब हो रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, शराब माफिया मनोज जायसवाल के चचेरे भाई दिलीप जायसवाल व विशाल जायसवाल दोनों बारादरी के नवादा शेखान के रहने वाले हैं।

कई धाराओं में दर्ज है केस
कोतवाली में दिलीप जायसवाल, विशाल जायसवाल व उसके एक साथी सुरेश ङ्क्षसह निवासी चंपावत के विरुद्ध वर्ष 2008 में आबकारी अधिनियम व अन्य धाराओं में मुकदमा हुआ था। आरोपितों के पास से सौ पेटी से अधिक अवैध शराब बरामद हुई थी। इसी पर शराब का अवैध कारोबार कर आर्थिक लाभ कमाने के आरोपों में दिलीप, विशाल व सुरेश को गैंगस्टर गैंग में पंजीकृत किया गया। तीनों के विरुद्ध साल 2008 में ही कोतवाली में ही गैंगस्टर का मुकदमा हुआ। बावजूद दिलीप व विशाल जायसवाल के मिलीभगत कर चरित्र प्रमाण पत्र बना दिये गए जिसके बाद दोनों को शराब की दुकानें आवंटित कर दी गईं। वर्तमान में दिलीप जायसवाल के नाम जहां कर्मचारी नगर बाइपास पर अंग्रेजी की शराब की दुकान है, वही फरीदपुर में मंडी के पास देशी की दुकान है। इधर, उनके भाई विशाल के नाम शेरगढ़ में देशी शराब की दुकान है। दुकान होने की बात पर खुद दिलीप जायसवाल ने मुहर लगाई।

वित्तीय वर्ष 2018-19 से आवंटित हो रहीं हैं दुकानें
आबकारी विभाग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2018-19 में दिलीप जायसवाल व उनके भाई विशाल जायसवाल के नाम लाइसेंस जारी हुए थे। तब से लगातार हर वित्तीय वर्ष में यह लाइसेंस रिन्यू हो रहे हैं। चार वित्तीय वर्षों के बाद अब पांचवें वित्तीय वर्ष में रिन्यूवल की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। वर्तमान में शराब की दुकानों के रिन्यूवल की प्रक्रिया चल रही है।

कानपुर, उन्नाव, लखनऊ और नोएडा में काम
दिलीप के कानपुर, उन्नाव, लखनऊ और नोएडा में भी शराब के लाइसेंस होने की चर्चा रही। बताया गया कि बीते समय तक लखनऊ और नोएडा में लाइसेंस थे। वर्तमान स्थिति के बारे में इन्कार किया गया। दिलीप जायसवाल ने इन स्थानों पर लाइसेंस की बात से इन्कार किया। सिर्फ बरेली में ही शराब के काम की बात कही।

थाने से लेकर अफसर तक जिम्मेदार?
पूरे मामले में थाने से लेकर तत्कालीन डीएम तक की भूमिका कटघरे में है। शराब के कारोबार के लिए चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य है। चरित्र दागी होने पर लाइसेंस नहीं दिये जा सकते। दिलीप व विशाल दोनों पर पहले से मुकदमे के साथ गैंगस्टर है तो दोनों का चरित्र प्रमाण पत्र कैसे जारी बन गया। चरित्र प्रमाण-पत्र के लिए थाने स्तर से लेकर सीओ, एसपी कार्यालय के बाद डीएम के वहां अंतिम मुहर लगती है। लिहाजा, ङ्क्षसडिकेट अपने इशारे पर पूरा काम कराने में कामयाब रहा और लाइसेंस जारी करा लिये।

लाइजङ्क्षनग कराने वाला सीए माफिया का पार्टनर
माफिया के गठजोड़ में उनके लाइजङ्क्षनग अफसरों के बाद एक सीए की भूमिका भी बतौर लाइजनर आई है। जांच में जुटी टीम के मुताबिक, सीए शराब माफियाओं के कई धंधों में पार्टनर है। पूछताछ में पचास हजार के इनामी अजय जायसवाल ने सीए के बारे में भी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी थीं। लिहाजा, सीए भी जांच टीम के निशाने पर है।

वर्जन

दागी का लाइसेंस निर्गत नहीं किया जा सकता। आबकारी विभाग ने प्रपत्रों के आधार पर ही लाइसेंस जारी किया होगा। प्रपत्रों की दोबारा जांच कराई जाएगी।
- राजशेखर उपाध्याय, आबकारी उपायुक्त

वर्जन
हमारे विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था, जो खत्म हो गया है। मनोज जायसवाल से हमारा कोई लेना-देना नहीं है।
- दिलीप जायसवाल, शराब व्यवसायी