शहर में ड्रेनेज सिस्टम की हालत चिंताजनक, 60 लाख का बजट भी नाकाफी

शहर में 8 बड़े नालों से सीवर का कनेक्शन, बारिश में जलभराव का सबब

BAREILLY:

चेन्नई में आई भयंकर बाढ़ ने एक ओर जहां भारत में दक्षिण के इस महानगर की कई खामियां उजागर कर दी। वहीं देश के अन्य छोटे-बड़े शहरों के सामने भी अपने ड्रेनेज सिस्टम को समय रहते सुधारने की चुनौती खड़ी कर दी है। बरेली की ही बात करें तो स्मार्ट सिटी बनने के लिए देश के टॉप 98 सिटीज की कतार में खड़ा यह शहर बरसों से बदहाल ड्रेनेज से जूझ रहा। बाढ़ तो दूर कुछ घंटों की तेज बारिश में ही आधा शहर के डूबने की आशंका बन जाती है। इस दिक्कत को दूर करने को नगर निगम की ओर से पिछले तीन साल में हर बार बजट तो बढ़ाया गया। बावजूद इसके तेज बारिश में शहर के डूबने का खतरा कम न हुआ।

2013 ने दी डर की दस्तक

शहर के खराब व खस्ताहाल ड्रेनेज सिस्टम की बानगी का नजदीकी नमूना साल 2013 में दिखा। मानसून सीजन की पहली तेज बारिश ने ही नगर निगम परिसर समेत कई सरकारी विभागों और पुलिस थानों को जलमग्न कर दिया था। जलभराव से एक ओर जहां शहर के कई इलाकों में हजारों घरों में घुटनों तक पानी भर गया। वहीं नगर आयुक्त तक का कैम्प हाउस भी डूबा नजर आया। शहर के ओल्ड सिटी ही नहीं बल्कि पॉश इलाके माने जाने वाले सिविल लाइंस व रामपुर गार्डेन भी जलभराव की चपेट में आए। जिसके चलते साल भर निगम लोगों के निशाने पर रहा।

नालों से जुड़े हैं शहर के सीवर

शहर के ड्रेनेज सिस्टम के फेल्योर के दो बड़े कारण हैं। पहला तो इस शहर की करीब 42 साल पुरानी जर्जर सीवर लाइन। दूसरा सीवर लाइन का शहर के नालों से कनेक्टेड होना। बरेली में सीवर लाइन व नालों की शहर से बाहर निकासी के अलग अलग जरिए नहीं है। शहर में छोटे बड़े कुल 133 नाले हैं। जिनकी अनुमानित लम्बाई करीब 1,14,410 मीटर है। जिनमें से 8 मुख्य नाले है जो अमूमन चोक रहते हैं। शहर में कई जगहों पर सीवर को इन्हीं बड़े नालों से जोड़ दिया गया है। भारी बारिश के दौरान सीवर लाइन के लिए बनाए गए डिप से सड़क का पानी सीवर लाइन में चला जाता है। जिससे जर्जर सीवर लाइन से उफनाने वाला पानी लोगों के घरों व कॉलोनीज में जलभराव की समस्या बन जाता है।

बजट बढ़ा पर राहत नहीं

2013 की बारिश से पानी में डूबे करीब आधे शहर को राहत देने में निगम नाकाम रहा। शहर के चोक नाले और सीवर लाइन इस जलभराव की बड़ी वजह माने गए। इसके लिए निगम की ओर से 2013 में जहां नालों की सफाई के लिए सिर्फ 20 लाख क ा बजट पास किया गया था। वहीं 2014 में इसे दोगुना कर 40 लाख कर दिया गया। लेकिन बढ़े बजट को जिम्मेदार मानसून सीजन खत्म होने तक पूरा खर्च भी न कर सके। 2015 में एक बार फिर ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर करने को नालों की सफाई पर जोर दिया गया। इस बार बजट 40 लाख से बढ़ाकर 60 लाख कर दिया गया। शुरुआत में नाला सफाई में तेजी भी दिखी, लेकिन फिर पार्षदों व जनता ने शिकायतें कर इस मुहिम पर सवाल खड़े कर दिए।

नालों के ऊपर अवैध कब्जा

शहर में पानी की निकासी के लिए जो 7 बड़े नाले हैं, उनमें सिकलापुर से सुभाषनगर की राजीव कॉलोनी तक 6000 मीटर लंबा नाला, जाटवपुरा से रेलवे पुलिया किला नदी तक 5000 मीटर लंबा नाला, मढ़ीनाथ से बदायूं रोड करगैना तक 5000 मीटर लंबा नाला, बुखारपुरा से हरुनगला नकटिया तक 5500 मीटर लंबा नाला, हजियापुर से संजयनगर होते हुए तुला शेरपुर तक 4000 मीटर लंबा नाला, नवादा शेखान से हरुनगला पवन विहार तक 4000 मीटर लंबा नाला और शहामतगंज से सैटेलाइट चौराहा तक करीब 1100 मीटर लंबा नाला है। इन सभी नालों पर अवैध रूप से कब्जा बना हुआ है। इससे नालों की पूरी तरह न तो मशीनों से और न ही मैनुअली सफाई हो पाती है। जिससे बारिश में पानी का बहाव न होने से पानी सड़कों पर ही ठहर शहर को डूबोता है।

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