- 11वीं में एनडीए सेलेक्शन खत्म कर 12वीं करने से टैलेंटेड सेना से हुए हैं दूर

- विषम परिस्थितियों में लीडिंग ऑफिसर के फैसले पर नहीं खड़े किए जा सकते सवाल

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- क्क्वीं में एनडीए सेलेक्शन खत्म कर क्ख्वीं करने से टैलेंटेड सेना से हुए हैं दूर

- विषम परिस्थितियों में लीडिंग ऑफिसर के फैसले पर नहीं खड़े किए जा सकते सवाल

BAREILLY:

BAREILLY:

'एनडीए में सेलेक्शन के लिए क्ख्वीं क्लास पास आउट होना अनिवार्य किए जाने से अब सेना में तेज तर्रार यानि टैलेंटेड स्टूडेंट्स कतरा रहे हैं। जबकि पहले क्क्वीं पास आउट स्टूडेंट भी एनडीए में सेलेक्ट हो सकते थे। इस बदलाव से टॉपर्स के पास सैकड़ों विकल्प हो जाने से वह सेना के बजाय दूसरी फील्ड सेलेक्ट कर रहे हैं। जिसकी वजह से सेना में टैलेंटेड स्टूडेंट्स की कम होती जा रही है। जिसका असर भी ट्रेनिंग के दौरान दिखाई देता है। यह बातें वेडनसडे को कारगिल विजय दिवस सेलिब्रेशन में मौजूद यूबी एरिया मेजर जनरल आरके भारद्वाज और मेजर जनरल जीओसी कबींद्र सिंह ने कहीं।

सैनिक सीख रहे चीनी भाषा

मेजर जनरल आरके भारद्वाज ने कहा कि अब सैनिकों को चीनी भाषा का ज्ञान भी सिखाया जा रहा है। ताकि चीन के सैनिकों या अन्य किसी से बात करने में भारतीय सैनिकों को कोई प्रॉब्लम न हो। कहा कि भारतीय खून तेजी से किसी भाषा को सीख लेता है। साथ ही, कहा कि आर्मी किसी पद पर तैनात सोल्जर को दो पद ऊपर तक की ट्रेनिंग देती है। ताकि किसी आकस्मिक स्थिति में भी वह अन्य को गाइड कर सकें। बताया कि चीन से हुए वर्ष क्9म्ख् के युद्ध में भारत तैयार नहीं था। लेकिन अब सेना किसी भी देश से युद्ध करने में सक्षम हैं। कहा कि अब युवा मोबाइल के प्रयोग से मानसिक और शारीरिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। फुटबाल, क्रिकेट या अन्य टफ गेम्स वह मैदान में नहीं बल्कि मोबाइल पर खेलकर खुद को कमजोर बना रहे हैं।

युवा ज्यादा हो रहे शहीद

सेना में ज्यादातर नौजवानों की मौत पर कहा कि सेना का यह नियम है कि सबसे आगे जवान ही रहेंगे। ऐसे में कैजुअलिटी के सबसे ज्यादा केसेज युवाओं के ही हैं। जम्मू में सेना पर पत्थर फेंकने वाले को सेना की गाड़ी के आगे बांधने के सवाल को मेजर जनरल और जीओसी ने सही ठहराया। कहा कि विषम परिस्थितियों में लीडि़ंग ऑफिसर के फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता। एसी की हवा और चारदीवारी से घिरे आलीशान कमरे में बैठकर उस परिस्थिति को कोई नहीं समझ सकता है। कारगिल वार के अपने अनुभव को शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार उन्होंने भी छलावरण का सहारा लेकर पाकिस्तान की गोलाबारी से जवानों की सुरक्षा की थी। जिसमें वह सफल भी रहे।