फिजिकल एजुकेशन खो रहा अपना महत्व
70 परसेंट स्कूलों में पीटीआई शिक्षक ही नहीं, दूसरी तरफ ज्यादातर स्कूलों में नहीं प्ले ग्राउंड
BAREILLY:
फिजिकल एजुकेशन स्कूलों में दम तोड़ रहा है। बावजूद इसके कि क्लास 6 से 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए इसकी पढ़ाई अनिवार्य कर दी गई है। फिर भी, इसमें जान नहीं आ पा रही है। वजह बिल्कुल साफ है कि बिना साजो सामान और टीचर्स के स्टूडेंट्स में खेल के प्रति रुचि पैदा हो भी तो कैसे।
एक दशक से हुआ कंपलसरी
फिजिकल एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने करीब दस साल पहले इसे कोर्स में न सिर्फ शामिल किया। बल्कि, कंपलसरी कर दिया। हालांकि, इसका नंबर एनुअल एग्जाम के रिजल्ट में नहीं जोड़ा जाता है। ग्रेड ए, बी, सी के रूप में दर्ज किया जाता है। शायद यह एक बड़ी वजह है कि फिजिकल एजुकेशन को बढ़ावा देने के सरकार की मंशा भी दम तोड़ती नजर आ रही है।
70 परसेंट पीटीआई के पद खाली
फिजिकल एजुकेशन को कंपलसरी होने के बाद प्रत्येक स्कूल में एक टीचर होना अनिवार्य कर दिया गया। अफसोस की बात यह है कि वर्ष 2011 में पीटीआई की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। लिहाजा, स्कूलों में नई नियक्तियां नहीं हो सकी। आज की डेट में बरेली में तकरीबन 70 परसेंट पीटीआई के पद खाली पड़े हैं।
टीचर हैं तो मैदान ही नहीं है
फिजिकल एजुकेशन को कंपलसरी किए जाने की व्यवस्था में सबसे हैरत भरी बात यह है कि तमाम स्कूल ऐसे भी हैं, जिनके पास खेल के ग्राउंड ही नहीं हैं और वह मान्यता प्राप्त हैं। ऐसे में, फिजिकल एजुकेशन की सच्चाई का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि किस प्रकार पढ़ाई हो रही है। इनमें कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जिनके पास पीटीआई के टीचर हैं, लेकिन ग्राउंड के अभाव में वह स्टूडेंट्स को सिर्फ थियरी की ही नॉलेज दे पा रहे हैं।
ग्रांट भी नसीब नहीं
फिजिकल एजुकेशन कंपलसरी है, ताकि स्टूडेंट्स खेलकूद में आगे बढ़ सकें, लेकिन हैरत की बात यह है कि प्रदेश सरकार के बजट में खेल प्रतियोगिताओं को कोई महत्व नहीं दिया गया। ऐसे में, फीस से जमा रुपयों से ही विभाग डिस्ट्रिक्ट लेवल की प्रतियोगिताएं आयोजित कराता है।
विभाग के समक्ष तब मुश्किल और बढ़ जाती है जब, तमाम स्कूल खेल मद का पैसा विभाग को नहीं देते हैं।
स्पोर्ट्स किट नहीं होती नसीब
बजट न होने की वजह से ज्यादातर प्रतियोगिताओं में छात्र बिना स्पोर्ट्स किट के ही खेलने को मजबूर होते हैं। इसके पीछे स्कूल मैनेजमेंट का यह तर्क होता है कि खेल फीस इतनी ज्यादा नहीं है कि वह इससे स्पोर्ट्स के महंगे साजो-सामान की खरीददारी कर सकें।
प्रतियोगिता में नहीं लेते इंट्रेस्ट
स्कूलों को साल में कम से कम दो आयोजन कराने के दिशा निर्देश दिए गए हैं, लेकिन तमाम कालेज खेल प्रतियोगिताओं में भागीदारी ही नहीं करते। ऐसे में डीआईओएस को इन सभी स्कूलों से खेलों में भागीदारी न करने पर जवाब-तलब कर सकते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि किसी भी स्कूल से आज तक विभाग द्वारा खेल आयोजन का कोई ब्योरा न तो मांगा गया, और न ही कोई सवाल किया गया।
फिजिकल एजुकेशन की स्थिति ठीक करने के लिए खेल शिक्षकों की भर्ती बहुत जरूरी है। स्कूलों में खेल मैदानों की कमी भी बड़ी समस्या है। स्थिति में सुधार के लिए शासन, शिक्षा विभाग व स्कूलों को कोआर्डिनेशन से काम करने की जरूरत है।
- जेके वर्मा, डीआईओएस
-जेके वर्मा, डीआईओएस