- कालाबजारी से दालों के रेट छू रहे आसमान, पब्लिक परेशान

-सिस्टम आंख मूंद कर बैठा हुआ, नहीं हुई कोई छापेमारी

<- कालाबजारी से दालों के रेट छू रहे आसमान, पब्लिक परेशान

-सिस्टम आंख मूंद कर बैठा हुआ, नहीं हुई कोई छापेमारी

BAREILLY:

BAREILLY:

बेमौसम हुई बारिश से बढ़ी महंगाई ने पहले से ही आम आदमी की थाली को खाली कर दिया था। बची हुई कसर दाल के आसमान छू रहे रेट ने पूरी कर दी है। ऐसे में आम आदमी के सामने अब क्या खाए जैसा सवाल खड़ा कर दिया है। महीने भर के भीतर दालों के रेट में चौंकाने वाली बढ़ोत्तरी हुई है। चिंता की बात यह बढ़ोत्तरी सिर्फ मौसम की मार से नहीं बल्कि सिस्टम की लापरवाही से भी हुई है। दालों की कालाबजारी भी इसके रेट को सौ का आंकड़ा पार कराने में अहम है। उसके बाद भी इस जिनके ऊपर इस कालाबजारी को रोकने की जिम्मेदारी है, वह खामोश हैं और आंख बंद किए हुए हैं। आखिर क्यों आसमान पर पहुंच गए दालों के रेट की आई नेक्स्ट ने की पड़ताल।

सिर्फ दो महीने में बढ़ गए रेट

व्यापारी बताते हैं कि दाल के रेट जितने पिछले कई वर्षो में नहीं बढ़े थे, उससे ज्यादा दो महीने में बढ़ गए हैं। 70 से 80 रुपए प्रति किलो बिक रही दालें अब क्00 से क्ख्0 तक पहुंच गई हैं। वैसे तो सभी दालों के रेट में बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली अरहर ने लोगों को सबसे ज्यादा चौंकाया है। अरहर की दाल में ही प्रति किलो में फ्0-फ्भ् रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं मसूर, मूंग, उड़द और चना के दालों के रेट में भी काफी उछाल आया है।

क्या है इसका कारण

यूं तो व्यापारियों से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि फसल खराब होने के चलते ऐसा हुआ है। लेकिन, आई नेक्स्ट की तहकीकात में यह बात सामने आई है कि सिर्फ फसल का खराब होना नहीं, बल्कि कालाबजारी भी इसका मेन कारण है। कुछ व्यापारियों ने बताया कि बिचौलिए ने दाल को होल्ड कर रखा है, जिससे मार्केट में दाल की कमी हो गई है, जो कि रेट बढ़ाने का काम कर रही है। इसका कारण यह है कि बिचौलियों को इस बात का अंदाज लगाए हुए हैं कि अरहर की दाल का रेट अभी क्भ्0 तक पहुंच सकता हैं। ऐसे में बड़ी मात्रा में उन्होंने दाल को परचेज करके होल्ड कर ली है।

सिस्टम सुस्त तो क्यूं न हो

समस्या इस बात की है की जिन जिम्मेदारों पर बिचौलियों को रोकने की जिम्मेदारी है, वह हाथ पर हाथ धरे हुए बैठे हैं। अब लापरवाह सिस्टम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब तीन महीने पहले एडमिनिस्ट्रेशन ने बिचौलियों को रोकने के लिए कमेटी बनाई थी, लेकिन चंद दिनों बाद ही यह कमेटी खुद लापता वाली कंडीशन में आ गई। उस दौरान दो-चार दिन एक्टिव रही, उसके बाद आज तक इस कमेटी ने कोई कार्रवाई नहीं की। स्थिति यह है कि बिचौलिये बेखौफ होकर अपना काम कर रहे हैं, जिसका परिणाम पब्लिक को भुगतना पड़ता है।

दो महीने में एवरेज ख्0 प्रतिशत तक बढ़ा रेट

कालाबाजारी का असर यह है कि, दाल के प्राइस में दो महीने में ही ख्0 परसेंट तक की एवरेज ग्रोथ हुई है। अप्रैल-मई में जिन दाल के दाम 70 से 80 रुपए था वह बढ़कर क्00 से क्08 रुपए प्रति केजी पहुंच गया है। अरहर का रेट इन सबसे आगे भाग रहा है। व्यापारियों की मानें तो बरेली में पर डे दालों का करीब दो करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर है।

मसूर की दाल का बड़ा सेंटर बरेली

शहर में दाल तैयार करने वाले मिलों की संख्या करीब भ्0 है। जो कि, माधोबाड़ी में है। इसके अलावा हाथरस, ललितपुर, कानपुर, इंदौर, महाराष्ट्र से भी होलसेलर दाल को इंपोर्ट करते हैं। फिर, यहां से आस-पास एरिया के रिटेलर दालें खरीदकर ले जाते हैं। शहर में होलसेलर की संख्या करीब ख्0 है। होलसेल का सबसे बड़ा मार्केट श्यामगंज है। पश्चिम की बात करें तो, बरेली एक मात्र ऐसा शहर है, जहां पर सबसे अधिक मसूर की फसल पैदा होती है। यहां तैयार की गई मसूर की दाल को देश के कई स्टेट और शहरों में सप्लाई किया जाता है।

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पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ

जानकार लोगों ने बताया कि फसल बर्बादी कई बार पहले भी हुई है, लेकिन उस दौरान भी दाल के रेट 80 तक पहुंच पाए थे, लेकिन इस बार फसल बर्बादी के नाम पर ऐसा खेल किया गया कि दालों के रेट ने शतक का आंकड़ा भी पार कर लिया है। जानकार इसके पीछे का मेन कारण कालाबजारी को ही बताया जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं बिचौलिये ऐसा माहौल भी तैयार कर रहे हैं कि दालों के रेट क्भ्0 पार करेंगे, जिसके चलते पब्लिक ने भी दाल की खरीददारी को बढ़ाकर यूज होने वाली दाल स्टोर कर ली है।

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यह देखिए सरकारी कमेटी का हाल

तीन महीने पहले महंगाई पर हो हल्ला मचने के बाद एडमिनिस्ट्रेशन थोड़ा बहुत एक्टिव हुआ था। आनन-फानन में एडमिनिस्ट्रेशन ने व्यापार मंडल, ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन, गल्ला व्यापारी और फल व्यापारियों के साथ बैठक की थी। दुकानदारों को अधिकारियों ने कई दिशा निर्देश भी जारी किए थे। दुकानदार अपनी मनमानी न कर सकें, इसके लिए कमेटी का गठन भी किया गया था। जिसमें एसीएम, खाद्य सुरक्षा विपणन अधिकारी, पूर्ति निरीक्षक, बाट-माप, मंडी समिति, खाद्य सुरक्षा अधिकारी को शामिल किया गया था। इस कमेटी की स्थिति यह रही की एक दो बार छापेमारी कर इसने अपने जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली, लेकिन उसके बाद पिछले तीन महीने में कमेटी ने दोबारा कभी भी मॉनीटरिंग करने की जहमत तक नहीं उठाई, जिसका नतीजा हम सबके सामने है।

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मनमाना बढ़ रहे हैं रेट

बैठक में यह भी तय हुआ था कि, व्यापारी थोक भाव के सापेक्ष रिटेलर में पक्के उत्पाद जैसे दालें, गेहूं और चावल पर प्रति क्विंटल ख्भ् परसेंट और कच्चे उत्पाद जैसे फल और हरी सब्जियों पर प्रति क्विंटल पर भ्0 परसेंट तक मुनाफा ले सकते है। शॉप ओनर्स को इसके लिए रेट लिस्ट भी टांगनें के निर्देश दिए गए थे। लेकिन आप श्यामगंज, कुतुबखाना, नगर निगम, आईवीआरआई, सेटेलाइट, कोहाड़ापीर, चौपुला कही भी चले जाइए रेट लिस्ट नहीं दिखने वाली है।

बॉक्स

- दाल मिल - भ्0

- होलसेलर की संख्या - ख्0

- दो महीने में ख्0 परसेंट तक बढ़ गया दाल का रेट

- शहर में रोजाना दो करोड़ रुपए है दाल का टर्नओवर

- एडमिनिस्ट्रेशन ने पक्के उत्पाद पर प्रति क्विंटल ख्भ् परसेंट मुनाफा लेने की कही थी बात

होलसेल रेट प्रति क्विंटल रूपए में

दाल - तीन महीने पहले - अब

अरहर - 7,000 - 8,क्00 - क्0,000-क्0,800

उड़द - म्,000 - 8,भ्00 - 8,भ्00 - क्0,फ्00

मसूर - 7,000 - 7,भ्00 - 8,00 - 9,000

चना - ब्,000 - भ्,ख्00 - भ्,म्00 - भ्,800

मूंग - 7,000-8,000 - 8,000-9,000

समय-समय पर छापेमारी कर कार्रवाई की जाती है। फिलहाल मैं लखनऊ मीटिंग में हूं। मीटिंग से आने पर दोबारा छापेमारी की जाएगी।

एसएस यादव, सचिव, मंडी समिति

शहर में माधोबाड़ी में दाल मिल की संख्या करीब भ्0 है। यहां पर खड़ी मसूर को दाल बनाने का काम होता है। दाल की फसलों के बर्बाद होने से दाम बढ़ रहे है।

राजेंद्र गुप्ता, महानगर अध्यक्ष, यूपी उद्योग व्यापार मंडल बरेली

हम लोग ज्यादातर दालें दूसरे स्टेट से ही मंगातें है। पिछले दो महीनें में ख्0 परसेंट तक दाल के दाम बढ़ें है।

मनोज खंडेलवाल, होलसेलर

होलसेल से दाल लाने के बाद ख्-फ् रुपए प्रति केजी मुनाफा लेकर हम लोग बिजनेस करते है। स्टॉक में रखने के चलते भी प्राइस में बढ़ोतरी हो रही है।

टीटू, रिटेलर