- आईएमए ने जारी की एडवाइजरी, बच्चों को मास्क लगाकर ही भेजें स्कूल
- सड़कों पर मास्क लगाकर निकल रहे बच्चे, पेरेंट्स परेशान
केस स्टडी 1
शहर के कुदेशिया फाटक निवासी रुचि कपूर ने बताया कि दिवाली के बाद से ही उनके बेटे को सांस लेने में हो रही थी। थर्सडे को उन्होने शहर के एक निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर से सलाह ली तो डॉक्टर ने बच्चे की जांच कर स्मॉग की वजह से सांस की दिक्कत होना बताया।
केस स्टडी
शहर के मिनी बाईपास निवासी पूनम टंडन ने बताया कि उनका बेटा इन दिनों जब भी पार्क में खेलने जा रहा है तो वापस आने पर काफी देर तक हांफने की दिक्कत बनी हुई है। उसकी आंखों में जलन की भी दिक्कत है। जब डॉक्टर से सलाह ली तो डॉक्टर ने मास्क लगाने के साथ कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी।
बरेली : दिवाली के बाद से इस तरह के केसेज शहर के पीडियाट्रिशियन के पास पहुंच रहे हैं। इसकी मेन वजह है दिवाली पर हुई आतिशबाजी के बाद आसमान में छाया स्मॉग। स्मॉग के चलते शहर में एक्यूआई के ग्राफ में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। फ्राईडे को शहर का एक्यूआई 470 रिकॉर्ड किया गया। इससे सभी एज गु्रप के लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो रहा है। खासतौर पर छोटे बच्चों के लिए स्मॉग खतरा बन गया है। दिवाली के बाद से डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के साथ ही प्राइवेट डॉक्टर्स के पास भी पेरेंट्स बच्चों को लेकर पहुंच रहे हैं।
यह हो रही परेशानी
-सांस लेने में परेशानी
-आंखों में एलर्जी
-थकान होना
-गले में खराश
- बार-बार उल्टी आना
मेमोरी भी हो सकती है वीक
जाकनारों का कहना है कि स्मॉग के कारण बच्चों के फेफड़े, दिमाग और रेसपाइरेटरी सिस्टम पर सीधा असर पड़ रहा है। इससे टीबी और सांस की बीमारी के साथ बच्चे की मेमोरी भी वीक हो सकती है। स्मॉग में घुले बेंजीन, सल्फर व पीएम 2.5 के महीन कणों के कारण बच्चों का डीएनए भी प्रभावित हो सकता है।
खुले में खेलना हो सकता है घातक
खेलने के दौरान तेजी से सांस लेने पर पीएम 2.5 के हानिकारक कण तेजी से बच्चे की सांस नलियों के जरिए फेफड़ों में पहुंचते हैं। स्मॉग अपने साथ बेंजीन, सल्फर, कार्बन मोनो ऑक्साइड सहित पीएम 2.5 के महीन कणों को फेफड़ों तक पहुंचा देता है। लंबे समय तक फेफड़ों में इन कणों के बने रहने और रक्त नलियों से चिपके रहने के कारण कैंसर होने का भी खतरा रहता है।
कैसे होता है पीएम 2.5 का निर्माण
धुंध में ज्यादा मात्रा पीएम 2.5 यानि पार्टिकुलेट मैटर की है। पीएम 2.5 सिर के एक बाल से भी बारीक व हल्के और महीन कण होते हैं। प्रकाश कणों की तरह ही ये कण सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देते लेकिन सांस के माध्यम से फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, जिससे सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
आईएमए ने जारी की यह एडवाइजरी
- बच्चों को स्कूल भेजते समय मुंह पर मास्क लगाएं
- खुले स्थानों पर न खेलने जाने दें
- जहां ग्रीनरी ज्यादा हो, ऐसे स्थानों पर बच्चे खेले लेकिन मास्क लगा होना चाहिए
- समय-समय पर बच्चों को पानी पिलाएं
- ज्यादा समय तक खांसी होने पर फौरन डॉक्टर की सलाह लें।
आज कितना रहा एक्यूआई
स्थान - पीएम 2.5 - पीएम 10
मॉडल टाउन - 250 - 320
रामपुर गार्डन - 250 - 350
डीडीपुरम - 257 - 570
श्यामगंज - 240 - 430
चौपुला - 281 - 572
डीएनए और दिमाग पर असर
स्मॉग में वीओसी, वॉल्टाइल आर्गेनिक कंपाउंड होते हैं जो बच्चों में पेट की परेशानी, व्यवहार में बदलाव और याददाश्त में कमजोरी और फेफड़ों पर असर डालते हैं। सल्फर व बेंजीन क्रोमियम के कारण बच्चों का डीएनए भी प्रभावित हो सकता है।
डॉ। रवि खन्ना, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ।
गल सकती हैं सांस की नलियां
बच्चों की सांस की नलियां बेहद नाजुक होती हैं। पीएम 2.5 के कण नाक के जरिए बच्चों के फेफड़ों की झिल्लियों तक पहुंचते हैं। झिल्ली से चिपके रहने के कारण अंदर ही अंदर ये कण सल्फ्यूरिक एसिड बनाने लगते हैं। इससे बच्चों की सांस की नलियां गलने लगती हैं।
डॉ। करमेंद्र, बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ।
पेरेंट्स से बात
पिछले कुछ दिनों से बच्चे आंखों में जलन की शिकायत कर रहे थे, डॉक्टर को दिखाया तो उन्होने स्मॉग के कारण ऐसा होना बताया।
डॉ। रुचि कपूर।
दिवाली के बाद से आसमान में छाई स्मॉग की चादर के कारण बच्चों को मास्क लगाकर ही स्कूल भेज रहे हैं।
पूनम टंडन।