-ट्यूजडे यानि 1 सितम्बर से शुरू हुए हैं कनागत, ध्यान रखे कुछ अहम बातें

बरेली: श्राद्ध पक्ष यानि कानागत एक सितम्बर से शुरू हो गए। श्राद्ध सभी व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में अपने पितृगणों के नियमितत श्राद्धकर्म का कार्य करते हैं। धर्म ग्रन्थों में श्राद्ध पक्ष और पितृगणों की विशेष महत्ता बताई गई है। उनकी प्रसन्नता अत्यन्त आवश्यक होती है। अत: श्राद्ध पक्ष के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशिष्ट बातों को श्रद्धा पूर्वक ध्यान में रखकर श्राद्ध का कार्य सम्पन्न करने से पितृगण अति प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषा चार्य पं। राजीव शर्मा का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में दिन का आठवां मुहुर्त कुतप काल कहलाता है, इसका समय 11:36 बजे से 12:24 बजे तक लगभग होता हैं। यह श्राद्ध में विशेष प्रशस्त होता है इसमें किया गया श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है।

शास्त्रों में मनुष्य के तीन ऋण कह गए हैं

देव ऋण, ऋषी ऋण व पितृ ऋण इनमे से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। ब्रह्मपुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे अपनी संतानों तथा वंशजों से पिंडदान लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण ही आश्विन मास के कृष्णपक्ष का नाम 'कनागत' पड़ गया क्योंकि सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पृथ्वी पर आकर अमावस्या तक घर के द्वार पर ठहरते हैं। भाद्र पद शुक्ल पूíणमा से प्रारम्भ करके आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिन पितरों का तर्पण और विशेष तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। इस प्रकार करने से यथोचित रूप में 'पितृ व्रत' पूर्ण होता है।

शास्त्रों में 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन मिलता है:-

नित्य-श्राद्ध, नैमित्तिक- श्राद्ध , काम्य-श्राद्ध , वृद्धि-श्राद्ध, सापिण्ड-श्राद्ध, पार्वण-श्राद्ध , गोष्ठ-श्राद्ध, शुद्धि-श्राद्ध , कर्माग-श्राद्ध, दैविक-श्राद्ध, औपचारिक-श्राद्ध तथा सांवत्सरिक-श्राद्ध।

सभी श्राद्धों में सांवत्सरिक श्राद्ध सबसे श्रेष्ठ है, इसे मृत व्यक्ति की तिथि पर करना चाहिए।

श्राद्ध में 7 महत्वपूर्ण चीजें आवश्यक हैं

दूध, गंगाजल, मधु, तसर का कपड़ा, दौहित्र, कुतप काल(दिन का आठवां मुहूर्त) और तिल।

श्राद्ध में लोहे के पात्र सर्वथा निषेध:-

श्राद्ध में लोहे के पात्र का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। सोने,चांदी, कांसे और तांबे के पात्र पूर्ण रूप से उत्तम हैं। केले के पत्ते में श्राद्ध भोजन सर्वथा निषिद्ध है। मुख्य रूप से श्राद्ध में चांदी का विशेष महत्व दिया गया है। मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार अपराह्न पितृ कार्यो के लिए,पूर्वाह्न देव कार्यो के लिए प्रशस्त माना गया है। एकोदिष्ट श्राद्ध में मध्याह्न तथा पार्वण श्राद्ध में अपराह्न को ग्रहण किया जाता है। यही कारण से श्राद्ध पक्ष में अपराह्न व्यापिनी तिथि को ग्राह्म किया जाता है। पितरों की प्रतिमा की प्रतिष्ठा मघा, रोहिणी, मृगशिरा एवं श्रवण नक्षत्र में रविवार, सोमवार एवं गुरुवार में तथा वृषभ, सिंह एवं कुम्भ लग्न में प्रशस्त माना गया है।

श्राद्ध में ध्यान रखने योग्य बातें

-कम्बल, चांदी, कुशा, काले तिल, गौ और दोहित्र की श्राद्ध में विशेष महत्ता बताई गई है।

-श्राद्ध में पिण्ड दान करते समय तुलसी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।

-श्राद्ध में गौ निíमत वस्तुयें जैसे- दूध, दही, घी आदि काम में लेना श्रेष्ठ होता हो, सभी धान्यों में जौ, तिल, गेंहू, मूंग, सावा, कंगनी आदि को उत्तम बताया गया है।

-आम, बेल, अनार, बिजौरा, नीबू, पुराना आवंला, खीर, नायिल, खालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, परवल, चिरौंजी, बैर, इन्द्र जौ, बथुआ, मटर, कचनार, सरसों इत्यादि पितृों को विशेष प्रिय होती हैं। अत: भोजन आदि में इनका प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है।

-श्राद्ध के निमित्त ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है, यदि ब्राह्मण नित्य गायत्री का जाप करता हो, सदाचारी हो तो उसे करवाये गये भोजन का विशेष फल प्राप्त होता है।

-श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राह्मण को यथा सम्भव मौन रखना चाहिए।

-पितृ पक्ष में तम्बाकू, तेल लगाना, उपवास करना, दवाई लेना, दूसरों का भोजना करना, दातून करना आदि वíजत माना गया है।

-श्राद्ध के निमित्त आये ब्राह्मणों को भोजन पकाते व खिलाते समय लोहे के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

-श्राद्ध पक्ष में मांस एवं मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

-श्राद्ध पक्ष में गाय का दान श्रेष्ठ माना गया है, यदि पितृों के निमित्त इस अवधि में गो दान किया जाये तो पितृगणों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

-श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृसूक्त का पाठ करने से पितृगण अत्यन्त प्रसन्न होते है। ब्राह्मण भोजन के समय पितृसूक्त का पाठ करने से इसका तुरन्त फल प्राप्त होता है।

-सम्पूर्ण श्राद्ध पक्ष में निम्नलिखित पितृ गायत्री नित्य पाठ करना चाहिए।

मंत्र:- ऊं देवताभ्य: पितृभ्यच्क्ष महायोगिभ्य एव च

नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:

-पितृगणों का मुख सुई की नोक के बराबर बताया गया है, इसी कारण वह अधिकांशत: असंतिृप्त एवं भूखे-प्यासे रहते हैं। श्राद्ध पक्ष के दौरान एवं नान्दी श्राद्ध के समय पितृगणों का मुख ऊखल के समान बड़ा हो जाता है। ऐसे समय में उनके निमित्त जो भी भोज्य सामग्री प्रदान की जाती है वह पूर्णरूपेण उन्हें प्राप्त होती है।