- कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगों को फाइब्रोसिस की समस्या से मरीजों की हालत सीरियस

- मेडिकल कॉलेज में इकमो मशीन न होने से रेफर किए जा रहे हैं सीरियस पेशेंट्स

GORAKHPUR: 'आपके मरीज के लंग्स खराब हो चुके हैं। इनको इकमो मशीन की जरूरत है। ऐसे में इसका इलाज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में संभव नहीं है। ऐसे में आप लखनऊ के किसी बड़े हॉस्पिटल में ही इलाज करवा लीजिए.' यह वाक्या दिव्यनगर के रहने वाले अनिल के पिता देवी शरण मिश्रा के साथ पेश आया। देवी शरण कोरोना के की चपेट में आने से उनके लंग्स पूरी तरह से संक्रमित हो गए और उन्हें फाइब्रोसिस ने घेर लिया। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बेहतर उपचार की सुविधा न मिलने की वजह से उन्हें डॉक्टर्स ने लखनऊ ले जाने की सलाह दी। फैसिलिटी न होने की वजह से वह अनिल अपने पिता को लखनऊ ले जाने के लिए मन बना चुके हैं।

बीआरडी में नहीं है मशीन

कोरोना की दूसरी लहर में डेल्टा वैरिएंट ने जहां तबाही मचाई। वहीं इसका सबसे ज्यादा असर कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगों के लंग्स पर पड़ा है। ऐसे कई मरीजों की मौत बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल में हो चुकी है। 80 से 90 प्रतिशत लंग्स से प्रभावित थे। एक्सपर्ट की मानें तो लंग्स के खराब होने को विज्ञान की भाषा में लंग्स फाइब्रोसिस कहते हैं। इस तरह के मरीज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में डेली आ रहे हैं। वजह यह है कि इस तरह के मरीजों का इलाज काफी महंगा है। इन मरीजों के इलाज के लिए इकमो मशीन की जरूरत पड़ती है, जो बीआरडी में नहीं है। डॉक्टर्स की माने तो ऐसे मरीजों के बचने की पांच से 10 प्रतिशत ही गुंजाइश रहती है। बचाने फेफेड़ों का बदला जाना ही बेहतर है।

20 से अधिक पेशेंट्स हो चुके हैं रेफर

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ.अश्विनी मिश्रा ने बताया कि लंग फाइब्रोसिस बीमारी में लंग्स के भीतर मौजूद ऊतक यानी टिश्यू सूजने लगते हैं। इसकी वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने शुरू हो जाती है। इससे खून का बहाव शरीर में कम होने लगता है। स्थिति गम्भीर होने पर दिल ढंग से काम नहीं करता। नतीजा मल्टी ऑर्गन फेल्योर, हार्ट अटैक या गंभीर अवस्था में मौत हो जाती है। इस तरह के कई केस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दूसरी लहर में आए। ऐसे 20 से अधिक मरीजों को रेफर भी किया गया, जो आर्थिक रूप से मजबूत थे। इस तरह के मरीजों को इकमो मशीन पर रखा जाता है। इसे लाइफ सपोर्टटिंग मशीन भी कहा जाता है।

केस वन

सिटी के रहने वाले एक 44 साल के डॉक्टर कोरोना संक्रमित हुए। परिजन इलाज के लिए दिल्ली के एक बड़े हॉस्पिटल में ले गए। जहां पर जांच के दौरान पता चला कि उनका लंग्स 80 प्रतिशत से अधिक खराब हो चुका है। ऐसे में लंग्स बदलना पड़ेगा। इसकी तैयारी के लिए परिजन किसी तरह तैयार हुए। लेकिन इससे पहले उनकी जान चली गई। बताया जाता है कि वह भी कई दिनों तक इकमो मशीन के सपोर्ट पर थे।

केस टू

डीडीयूजीयू के प्रो। डॉ। मानवेंद्र प्रताप सिंह कोरोना संक्रमण का शिकार हुए थे। संक्रमण का असर ऐसा रहा कि कुछ ही दिनों में उनके 80 प्रतिशत से अधिक फेफडे खराब हो गए। लखनऊ में कुछ दिनों तक वह इकमो मशीन पर रहे। इस बीच हैदराबाद में लंग्स ट्रांसप्लांट के बात चली। एयर एंबुलेंस तक की व्यवस्था हो गई थी। लेकिन मशीन का सपोर्ट हटते ही कुछ ही घंटों बाद उनकी मौत हो गई।

डेढ़ करोड़ से ज्यादा है लंग्स ट्रांसप्लांट का खर्च

बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एंड चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ। अश्वनी मिश्रा ने बताया कि लंग्स ट्रांसप्लांट का खर्च काफी महंगा है। एक ट्रांसप्लांट में डेढ़ करोड़ से ज्यादा का खर्च है। देश में हैदराबाद के अलावा पीएमएस वेल्लोर में ट्रांसप्लांट होता है। इसके अलावा इकमो मशीन की सुविधा भी पीजीआई में है। ऐसे मरीजों को हर हाल में इकमो मशीन पर रखना पड़ता है।

महंगा है इकमो मशीन से ट्रीटमेंट

आईएमए के सेक्रेटरी व चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ। वीएन अग्रवाल ने बताया कि दूसरी लहर में लंग्स फाइब्रोसिस की चपेट में आने से कई मरीजों की मौत हुई है। कई मरीजों को लखनऊ रेफर किया गया है, जिनका इलाज इकमो मशीन के जरिए हुआ है। यह मशीन मरीज का ब्लड बाहर निकलकर यंत्र के माध्यम से ऑक्सीजेनेशन कर वह ब्लड को फिर से बॉडी के भीतर पहुंचा देती है। यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है। इसमें शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाता है। लेकिन इसका इलाज काफी महंगा है। इस मशीन के इलाज के लिए एक से डेढ़ लाख रुपए प्रतिदिन खर्च करना पड़ता है।

दूसरी लहर में ज्यादातर लोगों के लंग्स खराब हो चुके हैं। संक्रमण से भले ही स्वस्थ हो गए, लेकिन अभी भी जो मरीज आ रहे हैं। उनमें जो सीरियस हैं, उन्हें रेफर करना मजबूरी है। रेफर परिजनों की मर्जी से किया जाता है।

- डॉ। गणेश कुमार, प्रिंसिपल, बीआरडी मेडिकल कॉलेज