-कई इलाकों में हो रही है वॉटर लॉगिंग
-स्वास्थ्य महकमें ने अपनी बेड्स कर रखी हैं रिजर्व
- वहीं सोमवार से शुरू हो जाएगा दस्तक अभियान
GORAKHPUR: मलेरिया, जिसका नाम हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। अवेयरनेस बढ़ी, लोगों को बीमारी के बारे में जानकारी भी हुई, लेकिन इसके बाद भी हम इसकी चपेट में आ जा रहे हैं। साल बीतने के साथ ही इसका आंकड़ा भी बढ़ रहा है। अब तो हालत यह है कि हर साल बरसात के मौसम से ठीक पहले इसके लिए अवेयरनेस प्रोग्राम और चलाए जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी बीमारी नहीं थम सकी है। डेवलपिंग कंट्रीज में सबसे कॉमन बीमारी 95 परसेंट से ज्यादा एरिया में पाई जाती है। इसकी अगर कोई अहम वजह है तो वह है निगम की लापरवाही, जिसकी वजह से इसके पैरासाइट पनपते हैं और हम अक्सर ही बीमारी की चपेट में आकर परेशान होते हैं। हालांकि प्रभावित पेशेंट्स का इलाज कराने और लोगों को इन बीमारियों से बचाने के लिए सोमवार से स्वास्थ्य विभाग का अभियान चलेगा, जिसमें लोगों को अवेयर ि1कया जाएगा।
वॉटर लॉगिंग सबसे बड़ी मुसीबत
सड़क पर चलने वाले लोगों के लिए जहां वॉटर लॉगिंग सबसे बड़ी मुसीबत है, तो वहीं मलेरिया के पैरासाइट भी यहीं जिंदगी पाते हैं। गड्ढो में रुके पानी में ही में इस मच्छर के लारवा पनपते हैं और मच्छर के जरिए लोगों की बॉडी में एंट्री करते हैं। एबसल्यूट मॉस्कीटो बाइट ही इसके इंफेक्शन कॉज का एक मात्र तरीका है, जो फीमेल एनाफ्लीज के जरिए लोगों की बॉडी में पहुंचता है। 70 परसेंट लोग इस बीमारी से मरते नहीं हैं, लेकिन 30 परसेंट लोग लैक ऑफ ट्रीटमेंट, नॉलेज, निगलिजेंसी, सीवियर इनफैक्शन की वजह से जान से हाथ धो बैठते हैं।
निगम नहीं करता प्रॉपर ड्रेनेज का इंतजाम
यूं तो कई अहम इलाकों में वॉटर लॉगिंग की प्रॉब्लम आम है, लेकिन कुछ जगह ऐसी हैं, जहां छोटे-छोटे गड्ढे बने हुए हैं, जिनकी वजह से पानी वहीं रुक जा रहा है। ऐसे कई मोहल्ले और कॉलोनी है, जहां वॉटर लॉगिंग की समस्या काफी दिनों से है, लेकिन जिम्मेदार न तो वॉटर लॉगिंग की प्रॉब्लम से निजात दिला रहे हैं और न ही फॉगिंग या दवाओं का छिड़काव ही हो रहा है। ऐसे में इन मच्छरों के बढ़ने के चांजेस बढ़ गए हैं, जिससे लोगों की मुसीबत भी बढ़ सकती है।
टेंप्रेचर से नहीं है कोई डर
मलेरिया के वायरस ऐसे हैं, जो साल भर एक्टिव रहते हैं और कभी भी अटैक कर सकते हैं। यही वजह है कि इसके अवेयरनेस प्रोग्राम भी लगातार चलते हैं। वॉटर लॉगिंग, बरसात, म्वायस्ट वेदर, इस पैरासिटिक डिजीज के लिए काफी फेवरेबल है। इसके बैक्टेरिया में एक बात जो अलग है, वह यह कि यह 16 डिग्री सेल्सियस टेंप्रेचर में भी अपना असर दिखा सकते हैं, तो वहीं 40 डिग्री टेंप्रेचर में भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। बाकी कीटाणु के लिए 16 से 32 टेंप्रेचर फेवरेबल होता है। यही वजह है कि राजस्थान और एमपी जैसे गर्म इलाकों में भी इसके पेशेंट पाए जाते हैं। गवर्नमेंट की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 67000 मरीज सिर्फ मलेरिया से मौत, वहीं 2018 में भी इनकी तादाद बढ़ी है।
यह है वजह -
पानी का कलेक्शन
डीफोरेस्टाइजेशन
एटमॉस्फियर में ह्यूमिड
अवेयरनेस में कमी
गंदगी का फैला होना
लाइफ साइकिल मनुष्य और मच्छर में पूरी होती है
1. प्लाजमोडियम वाइवैक्स
- 60 परसेंट पेशेंट, इससे ही अफेक्टेड होते हैं।
- इससे मौत नहीं होती
- सीवियर इलनेस जॉनडीस, एनिमिया, सीवियर डायरिया,
बोन मैरो का डिप्रेशन पैदा कर देता है।
- ठंड के साथ बुखार और जोड़ और शरीर में दर्द इसके अहम सिंप्टम हैं।
प्लाजमोडियम ओवेल
- यह सिर्फ 10 परसेंट केस में पाया जाता है।
- 12 महीने नहीं, बल्कि 3-4 महीने ही असर दिखता है।
- कटाणु घुस गए तो चार साल तक कभी भी इंफेक्शन कॉज कर सकते हैं।
- इसमें भी एनिमिया कॉज, हाई ग्रेड फीवर, जाड़ा देकर बुखार आता है।
प्लाजमोडियम मलेरी
- इसके पेशेंट सिर्फ 1-2 परसेंट ही मिलते हैं।
- घातक नहीं, मौत नहीं
- इसकी वजह से शारीरिक दुर्बलता, कमजोरी, एनिमिया कॉज, हाई ग्रेड फीवर, ठंडक
प्लाजमोडियम फैलसीफेरम -
- यह सबसे घातक किस्म का मलेरिया वायरस है।
- इसमें सिर्फ 5 परसेंट लोग बचते हैं।
-2-3 परसेंट लोग ही अफेक्टेड होते हैं।
- अर्ली डायग्नोसिस न होने से मेनेंजाइटिस कॉज करते हैं
- हार्ट, लंग, जैसी जगह चले जाते हैं और सिस्टम को फेल कर देते हैं।
- ठंड लगकर बुखार, बहुत थकान, अनकांशसनेस जैसी स्थिति, पेट और मांसपेशियों में दर्द, लीवर और किडनी बढ़ जाता है, जोड़ों में दर्द, उल्टी मालूम होती है। तेज सर में दर्द, खून की कमी और जॉन्डिस, झटके आने लगते हैं।
- यह शरीर में घुसे तो 14-15 दिन में ही पेशेंट्स को मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं।
- पेशेंट बचता है तो पैरालिसिस हो जाती है।
कैसे थमेगी बीमारी -
- पूरे बाह का कपड़ा पहले और मच्छर दानी लगाकर सोए।
- ठंड लगकर बुखार चढ़े तो दो गोली क्लोरोक्वीन की खा लें, इसके बाद फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
- घर के आसपास पानी न जमा होने दें, लारवा वहीं डेवलप होते हैं।
- इनके मच्छर रात में घरों में घुस जाते हैं। शाम होते ही घर के खिड़की दरवाजे बंद कर दें।
- मॉस्कीटो रिपलेंट, वेपोराइजर मशीन, नॉन इलेक्ट्रिक या इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल करें।
- इनडोर रेसिडुअल स्प्रे करें यानि कि गेट की एंट्री पर स्प्रे कर दीजिए, जिससे मच्छर एंट्री ही न करें।
मलेरिया क्योरेबल डिजीज है। सिर्फ प्लाजमोडियम फैलसीफेरम के केस में मुश्किल हो सकती है। अगर किसी को जाड़े लगने के साथ बुखार आए, तो फौरन ही क्लोरोक्वीन की दो गोलियां खाकर डॉक्टर की सलाह लें और तुरंत मलेरिया की जांच कराए।
- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, सीनियर फिजिशियन