गोरखपुर (ब्यूरो)। जांच में टीबी की पुष्टि होते ही फ्री दवा शुरू कर दी गई। वह बताती हैं कि दवा खाने में कोई दिक्कत नहीं हुई, न ही कोई प्रतिकूल प्रभाव हुआ। शुरुआती लक्षण आने पर समय से जांच व इलाज शुरू हो जाने से महज पंद्रह दिन में लक्षण आने बंद हो गए, लेकिन चिकित्सक की सलाह पर उन्होंने दवा जारी रखा। छह महीने तक दवा पूरा किया। इस दौरान पोषण के लिए प्रति माह 500 रुपए की दर से उन्हें छह माह में इलाज के दौरान कुल 3000 रुपए भी मिले।

सात पेशेंट्स की मदद

ज्योति जब ठीक हो गईं तो उन्हें सहजनवां सीएचसी से ट्रीटमेंट सपोर्टर बन कर टीबी पेशेंट्स की मदद करने का अवसर मिला। उन्होंने सात पेशेंट्स को दवा खिलाकर उनकी मदद शुरू की। ज्योति की मदद से टीबी की दवा खाकर ठीक हो चुकी रूही (18) (बदला हुआ नाम) ने बताया कि जब उन्हें टीबी हुई तो पहले उन्होंने प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करवाया, लेकिन जब कोई फायदा नहीं हुआ तो जानने वाले की सलाह पर जिला क्षय रोग केंद्र में दिखाया जहां से उन्हें इलाज के लिए सहजनवां सीएचसी भेजा गया। सीएचसी पर ही उनकी ज्योति साहनी से मुलाकात हुई और ज्योति ने उन्हें बताया कि नियमित दवा खाने और पौष्टिक भोजन लेने से वह छह महीने में ठीक हो गई थीं। इससे रूही का आत्मविश्वास बढ़ गया। ज्योति उनको दवा खिलाने लगीं। लॉकडाउन में दवा घर पहुंचाती थीं और काफी मदद की। जब भी रूही निराश होती, ज्योति उनका मनोबल बढ़ातीं। इस तरह रूही भी छह महीने में ही स्वस्थ हो गईं।

टीबी पेशेंट्स और टीबी चैंपियंस के प्रति भय और भ्रांति के वातावरण को बदलना होगा। पेशेंट के साथ मास्क लगाकर सावधानी से मिला जा सकता है। कोविड नियमों का पालन करते हुए टीबी पेशेंट से मिला जाए तो बीमारी का प्रसार नहीं होगा। टीबी का लक्षण दिखने पर बिना भयभीत हुए सरकारी अस्पताल में फ्री जांच करवाएं। नियमित दवा लें और पौष्टिक आहार का सेवन करें। टीबी का इलाज संभव है।

डॉ। रामेश्वर मिश्र, जिला क्षय रोग अधिकारी, गोरखपुर