गोरखपुर (ब्यूरो)।यह बातें फेमस साहित्यकार और राइटर अनामिका ने कहीं। वह गोरखपुर लिटफेस्ट के सेकेंड सेशन में 'साहित्य में नॉस्टेल्जियाÓ टॉपिक पर अपनी बातें रख रहे थे। उन्होंने कहा कि आज का साहित्य स्थानीयता के पुट से रंजीत है। अनेक बार ऐसे हालात होते हैं कि हम अपनी स्मृतियों से भागते हैं। हमें सुकून मिलता है कि हम उन स्मृतियों या उनसे जुड़ी चीजों से दूर हैं। स्मृतियों के स्रोत भी साहित्य में किसी एक बिंदु पर केंद्रित नहीं होते। इस दौरान उपन्यासकार हृषीकेश सुलभ और साहित्यकार एवं लेखक चन्द्रशेखर वर्मा उपस्थित रहे।

स्मृति के बिना जीना असंभव

उपन्यासकार व साहित्यकार हृषीकेश ने कहा कि वह दरिद्र है जिसके पास स्मृतियां नहीं हैं। नई पीढ़ी स्मृतिविहीन हो रही है। आज के विकास में मानवीय पक्ष कमजोर होता जा रहा है। स्मृति के बिना जीना असंभव है। वह साहित्य के यथार्थ की नींव रखती है। बिना स्मृति के यथार्थ की कल्पना बेबुनियाद है। स्मृतियों में पीढिय़ों के खान पान, पहनावा, संस्कृति, रीति रिवाज की झलक देखने को मिलती है। ऐसी स्मृतियों को हमें छोड़ देना चाहिए जो हमारी मानवीय संवेदना को दूषित करें। स्मृतियों में हमने सुखों और दुखों की एक बड़ी यात्रा की है। हमारे जीवन मे जो कुछ भी घटता है वह सब हमसे ही उपजता है।

वर्तमान को समझना नहीं चाहती नई पीढ़ी

प्रख्यात साहित्यकार व कहानीकार चन्द्रशेखर वर्मा ने कहा कि नई पीढ़ी के पास अतीत को लेकर उदासीनता है। वे वर्तमान को समझना नहीं चाहते। बाजारवाद ने पढऩे की प्रवृत्ति को आलस्य से भर दिया है और चिंतन की प्रवृत्ति अब स्मृतियो से हीन होकर वर्तमान की समस्याओं पर केंद्रित होती जा रहीं हैं। इस वजह से साहित्य में अतीत के खूबसूरत चित्र देखने को नहीं मिल पा रहे। उन्होंने यादों को मानव मस्तिष्क का एक जरूरी काम बताते हुए कहा कि यादें अगर रुक जाए तो इंसान में संवेदनशीलता खत्म हो जाएगी। सेशन की शुरुआत में लेखक मृत्युंजय उपाध्याय नवल की कृति ख्वाहिशों का जंगल का लोकार्पण किया गया। सत्र का मॉडरेशन आकृति विज्ञ अर्पण ने किया।