गोरखपुर (ब्यूरो)। साथ ही उसका सफल इलाज कर रिसर्च भी की। यह रिसर्च इंटरनेशनल जर्नल ऑफ करेंट फार्मास्यिूटिक रिव्यू एंड रिसर्च में प्रकाशित भी हुई है।

सीआईडीपी से जूझ रहा था पेशेंट

इस बीमारी में नसों के गुच्छे में सूजन आ जाने के कारण किसी प्रकार का बॉडी में मूवमेंट न होना और सुन्न पड़ जाने के कंडीशन में व्यक्ति पूरी तरह से असहाय हो जाता है। बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। सुमित कुमार ने बताया कि रोल ऑफ एमआरआई इन द डायग्नोसिस ऑफ सीआईडीपी पेशेंट्स विथ इनकॉन्क्लूसिव कोर क्राइटेरिया के तहत डॉ। सुमित, डॉ। गणेश कुमार, डॉ। वेद प्रकाश शुक्ला, डॉ। आशुतोष तिवारी ने मिलकर न्यूरो के एक मरीज पर रिसर्च की। रिसर्च के दौरान मरीज को न सिर्फ ट्रीटमेंट दिया गया। बल्कि उसके स्वस्थ होने के बाद इस बीमारी का इंटरनेशनल जर्नल ऑफ करेंट फार्मास्यिूटिकल रिव्यू एंड रिसर्च में प्रकाशित भी हुआ है।

प्राइवेट हास्पिटल में निराशा

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ। सुमित कुमार ने बताया, कुशीनगर के हाटा निवासी शमीम अहमद (43) को दो साल से तमाम तरह की बीमारी थी। वह सऊदी अरब में रहते थे, लेकिन बीमारी होने के कारण गोरखपुर लौटकर आने के बाद प्राइवेट में कई डाक्टर्स को दिखाया, लेकिन कोई रिस्पांस नही मिला। वह जब बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में आए तो उन्हें पांव से बार-बार चप्पल छुट जाना, टॉयलेट में बैठकर उठने में सहारा लेना, दोनों हाथ और पांव में झनझनाहट व सुनापन होना जैसी समस्या हो रही थी। उन्होंने बताया कि जब शमीम हमारे पास आए तो इन्होंने बताया कि इनकी कमजोरी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। और अब हाथों में भी कमजोरी आ गई है। लेकिन इनके इस बीमारी के बाद से बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल व रेडियो डायग्नोसिस डिपार्टमेंट के प्रो। गणेश कुमार के नेतृत्व में चार डाक्टर्स की टीम ने इलाज के डायग्नोसिस के साथ-साथ रिसर्च भी शुरू कर दिया था।

नसों की बॉयोप्सी

डॉ। सुमित ने बताया कि शमीम के बीमारी की डायग्नोसिस के लिए नर्व कंडक्शन वेलोसिटी टेस्ट हुआ। इसमें इनके नस में कुछ रिकार्ड नहीं हुआ। रीढ़ की हड्डी से पानी निकाला गया और उसकी भी जांच में नार्मल पाया गया। फिर नसों के बायोप्सी हुई, सैंपल एनआईएमएचएएनएस, बेंगलुरू भेजा गया। जो जांच में इनकंलूसिव यानी निगेटिव रिपोर्ट आई। बीमारी ट्रेस नहीं हुई। फिर इतना करने के बाद पुरानी पद्धति, जिसमें नस के गुच्छे की एमआरआई कराई गई, जिसमें सूजन पाया गया और 'सीआईडीपीÓ (क्रानिक इंफ्लामेट्र्री डेमीइलाइटिंग पॉलीरेडिक्लून्यूरोपैथी) डायग्नोस हुआ। उन्होंने बताया कि आजकल सीआईडीपी के बीमारी में डाक्टर्स एमआरआई नहीं करवाते हैैं जो कि ऐेसे सैचुएशन में बहुत हेल्पफुल होता है। पेशेंट्स को काफी महंगी इजेक्शन यानी इलाज के लिए नस के गुच्छे में लगाने के लिए आईवीआईजी (इंट्रवेनस इम्यूनोग्लोबुलिन) शुरू की गई। इस इंजेक्शन की कीमत 2-2.50 लाख रुपए होती है। लेकिन एमएलए फंड से रिलीज कराकर इलाज हुआ। मरीज अब अपने पैर पर खड़ा होकर चल पा रहा है।