गोरखपुर (ब्यूरो) भले ही प्रदेश सरकार जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास का दावा करती है, लेकिन मेडिकल कॉलेज में कई प्रकार की असुविधाओं से जूझ रहे हैं। स्थानीय लोग सरकार और मेडिकल कॉलेज प्रशासन को समय-समय समस्याओं से अवगत कराते हैं। लेकिन किसी ने इसकी सुधि नहीं ली। गुरुवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में मेडिकल कॉलेज की पोल खुल गई। यहां नेहरू चिकित्सालय की रैंप की हालत जर्जर दिखी। पेशेंट्स को ऑपरेशन थियेटर, ओपीडी और अन्य वार्डों तक जाने के लिए दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा था। यही नहीं मेडिकल कॉलेज की तरफ से डिजाइन पर डिजाइन तैयार किया है। इसके बावजूद भी रैंप की हालत जस की तस है।
अचंभित करने वाला दिखा नजारा
टीम गुरुवार दोपहर 1 बजे बीआरडी मेडिकल कॉलेज इंट्री प्वांइट से गलियारे के रास्ते रैंप तक पहुंची। यहां जो देखा हैरान करने वाला दुश्य सामने आया। कुछ मिनट के लिए संवादाता ठहर गया। देखा कि रंैप की छत पूरी तरह से टूट चुकी है। लोहे की सरिया बाहर की तरफ साफ दिखाई दी। इतना ही नहीं लोहे के पाइप के सहारे छत को सपोर्ट दिया गया है। जबकि इसी रास्ते से पेशेंट्स और उनके अटेंडेंट के आने जाने का रास्ता है। फर्श और रेलिंग पूरी तरह से टूट मिली। रास्ते में गढ्डे बन चुके हैं। कुछ जगहों पर तो ईंट लगाकर गड्ढों को भरा गया है। अटेंडेंट अपने पेशेंट को स्ट्रेचर पर लेकर इस रास्ते से ऑपरेशन थियेटर, ओपीडी और अन्य वार्डो में पहुंचते नजर आए। हैरानी की बात तो यह है कि कुछ स्ट्रेचर के पहिए गड्ढे में फंस गए तो अटेंडेंट को स्ट्रेचर को स्पोर्ट देकर बाहर निकलना पड़ रहा है।
झटके से टांका खुलने का डर

रैंप के सहारे पेशेंट्स को आर्थो, स्त्री-प्रसूति, सर्जरी, ईएनटी आदि ऑपरेशन थियेटर तक पेशेंट्स को ले जाया जाता है। ऑपरेशन होने के कुछ देर बाद पेशेंट्स को स्ट्रेचर या व्हील चेयर के सहारे वार्ड में शिफ्ट किया जाता है। रैंप में जगह-जगह बने गड्ढों के चलते टांका भी टूटने की आशंका बनी रहती है। पेशेंट्स को अटेंडेंट का कहना है कि खतरा तो हैं लेकिन मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदार सिर्फ स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा करते हैं लेकिन सच में कुछ और हैं।
हो सकती है बड़ा हादसा
बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है। अब यह बिल्डिंग हल्का झटका तक नहीं झेल सकती है। आलम यह है कि कभी भी हादसा होता है कि कइयों की जान भी जा सकती है। इसके बावजूद भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
प्रपोजल तैयार करते-करते बन गए एक किलो का बंडल
जर्जर बिल्डिंग और रैंप को नए सिरे में बनाने के लिए दर्जनों बार प्रपोजल तैयार किए गए। धीरे-धीरे एक किलो का बंडल बन गया। बावजूद इसके प्रपोजल को हरी झंडी नहीं मिल पाई। मिली जानकारी के अनुसार पहले रैंप की मेंटेनेंस के लिए करीब 22 लाख का प्रपोजल तैयार हुआ। बाद भी इसे फेल कर दिया गया। दूसरी बार इंजीनियर ने डिजाइन बद कर साढ़े तीन करोड़ का प्रपोजल तैयार किया लेकिन शासन से अप्रूवल नहीं मिल सका। इसी तरह से कई प्रपोजल तैयार हुए और उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। आज भी स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं।
महराजगंज निवासी छोटेलाल सिंह हमारे रिश्तेदार है। वह वार्ड नंबर 9 में भर्ती हैं। यूरिन में प्रॉब्लम हैं। डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी है। रैंप और इससे जुड़े बिल्डिंग की हालत खस्ता है। मरीजों को ले जाने के लिए यह मात्र एक रास्ता है। इस रास्ते से जाना खतरे से खाली नहीं है लेकिन मजबूरी भी है।
शैलेंद्र सिंह, भटहट
चार नंबर वार्ड में मेरी एक रिश्तेदार अर्चना भर्ती हैं। उनकी ऑपरेशन हुआ है। जर्जर रैंप और उसमें बने गड्ढे खतरे से खाली नहीं हैं। आने जाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
योगेश चौहान, दोहरीघाट
मेरी मां पार्वती देवी के फेफड़े में प्रॉब्लम हैं। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। स्ट्रेचर से सहारे उन्हें 14 नंबर वार्ड में भर्ती कराया हूं। जर्जर रैंप होने के चलते आने जाने में दिक्कत होती है।
हेमंत विश्वकर्मा, देवरिया
नये सिरे से रैंप की डिजाइन तैयार कर प्रपोजल शासन को भेजा जा चुका है। अप्रूवल मिलने के बाद निर्माण कार्य शुरू करा दिया जाएगा।
डॉ। अशोक यादव, अनुरक्षण प्रभारी बीआरडी मेडिकल कॉलेज