गोरखपुर (ब्यूरो)। शहर में दौड़ रही प्राइवेट एम्बुलेंस को कही से भी मॉनिटर नही किया जाता है। यह मनमाना किराया वसूलते हैं। साथ ही इनकी कोई फिक्स स्पीड भी नही है। अपने फायदे के लिए यह पेशेेंट के साथ-साथ अटेंडेंट की जान को भी खतरे में डाल देते हैं।

सरकारी के लिए हर 6 महीने पर ट्रेनर, प्राइवेट का कुछ नही

सरकारी एम्बुलेंस के ड्राइवर हेड ऑफिस से टे्रंड होकर आते हैं और साथ ही इनके लिए हर 6 से 8 महीने में एक ट्रेनर हेड ऑफिस से अपॉइंट होकर आते हैं, जो ड्राइवर और गाड़ी में बैठने वाले मेडिकल टेक्नीशियन को ट्रेनिंग देते हैं, जिससे यह अप-टू-डेट रहें। वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट एम्बुलेंस के ड्राइवर की कोई ट्रेनिंग नही होती है। जिसको गाड़ी चलानी आती हो वही एम्बुलेंस ड्राइवर बन जाता है।

सरकारी स्पीड से आ जाता है अलर्ट का सिग्नल

102 और 108 सरकारी एम्बुलेंस के लिए एक स्पीड निर्धारित है। यह 60 किमी/घंटा की स्पीड से आगे नही चल सकते। इस लिमिट को क्रॉस करते ही इनके पास हेड ऑफिस से अलर्ट का सिग्नल आ जाता है और अटेंडेंट के मोबाइल पर अलार्म बजना शुरू हो जाता है। यह तब तक बंद नही होता जबतक स्पीड 60 के नीचे नही हो जाती। प्राइवेट एम्बुलेंस के लिए ऐसा कोई कंट्रोलिंग सिस्टम नही बना है वह अपने हिसाब से स्पीड को कंट्रोल करते हैं। प्राइवेट एम्बुलेंस 80 किमी/घंटा से अधिक की स्पीड पर ही चलते हैं।

केस 1: UP53BT8595 नंबर की गाड़ी का फिटनेस 19 मई को ही एक्सपायर हो चुका है इसके बाद भी इसके चालक पेशेंट को लखनऊ ले जाने के लिए तैयार हो गए और साथ ही 4 घंटे से पहले पहुंचाने का दावा भी किया।

केस 2: UP53CT7312 नंबर एम्बुलेंस के चालक ने सीरीयस पेशेंट को लखनऊ पहुंचाने के लिए साढ़े चार से पांच घंटे का समय मांगा। जल्दी पहुंचाने की बात पर बोला कि हम पेशेंट के साथ बाकी लागों की जिंदगी के साथ रिस्क नहीं लेंगे।

102 और 108 एम्बुलेंस के लिए एक स्पीड फिक्स है। वह 60 द्मद्व/द्ध की स्पीड से ऊपर नहीं जा सकते। इससे तेज चलाने पर उनको अलर्ट किया जाता है। साथ ही हर 6 महीने पर ड्राइवर और ईएमटी की ट्रेनिंग करवाई जाती है।

निखिल रघुवंशी, ऑपरेशन हेड, जीवीकेएमआरआई

प्राइवेट एम्बुलेंस ऑपरेटर्स को नोटिस दिए गए हैं। उन्हें एम्बुलेंस का नियमानुसार फिटनेस कराने को कहा है। साथ ही निर्धारित गति में चलने की हिदायत दी गई है।

अनीता सिंह, आरटीओ गोरखपुर