गोरखपुर (ब्यूरो)। शिब्बन लाल सक्सेना पहली लोकसभा में महराजगंज और अलगू राय शास्त्री आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। संविधान के लिए तैयार किए गए दस्तावेजों में इन महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के हस्ताक्षर हैं और इन दस्तावेजों को स्मृति स्वरूप दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिर्टी में संजोकर रखा गया है।

संविधान सभा का किया गया गठन

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट के को-आर्डिनेटर प्रो। जितेंद्र मिश्र ने बताया, आजादी मिलने से पहले ही स्वतंत्रता सेनानियों के बीच संविधान निर्माण की बात होने लगी थी। तब उन्होंने एक संविधान सभा का गठन किया। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में हुई। संविधान सभा के कुल 389 सदस्य थे, लेकिन उस दिन 200 से कुछ अधिक सदस्य ही बैठक में उपस्थित हो सके। हालांकि, 1947 में देश के विभाजन और कुछ रियासतों के संविधान सभा में हिस्सा ना लेने केकारण सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 हो गई।

तैयार किया गया था मसौदा

बता दें, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए संविधान निर्माण कोई आसान काम नहीं था। इसके निर्माण में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। इस दौरान 165 दिनों के कुल 11 सत्र बुलाए गाए। देश की आजादी के कुछ दिन बाद 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉं। भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया। 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान स्वीकार किया गया और 24 जनवरी 1950 को 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे अपनाया। इसके बाद जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू किया गया तो उसके साथ ही संविधान सभा भंग कर दी गयी।

महराजगंज के मसीहा कहलाए शिब्बन लाल सक्सेना

प्रो। जितेन्द्र मिश्र बताते हैं कि प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना भारत के शिक्षाविद्, स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे। वे संविधान सभा के सदस्य तथा सांसद रहे। पेशे से डिग्री कॉलेज के अध्यापक शिब्बन लाल सक्सेना ने 1932 में महात्मा गांधी के आहवान पर राष्ट्रीय आन्दोलन में हिस्सा लिया। महराजगंज के किसानों और मजदूरों के सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए कार्य किया। आज भी उनकी पहचान महराजंगज के मसीहा के रूप में की जाती है। उन्हें पूर्वांचल का गांधी और लेनिन कह कर संबोधित किया जाता है। शिब्बनलाल सक्सेना जीवन भर अविवाहित रहे और दलितों, शोषितों के उत्थान के लिए संघर्षरत रहे। अपने 58 वर्ष के राजनीतिक जीवन में वे 17 बार गिरफ्तार किए गए। कुल 13 वर्ष तक विभिन्न जेलों में बिताए, जिसमें से 10 वर्ष कठिन श्रम के साथ कारावास की सजा थी। सन 1930 में शिब्बनलाल गोरखपुर के सेन्ट एण्ड्रयूज कॉलेज में गणित के प्रवक्ता के रुप में नियुक्त हुए। उन्होंने बताया कि 1957 में वे पहली बार वह निर्दल सांसद चुने गए। वहीं, आखिरी बार वे 1977 में रघुबर प्रसाद का हराकर सांसद बने।

अपने वाक चातुर्य से अलगू राय ने किया था सबको प्रभावित

प्रो। मिश्र ने बताया, अलगू राय शास्त्री भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद् एवं कानूनविद् थे। वे पहली लोकसभा के आजमगढ़ पूर्व से सदस्य थे, जिसे अब घोसी कहा जाता है। वे संविधान सभा के सदस्य थे। संविधान सभा में उन्होंने अपने वाक-चातुर्य से सबको प्रभावित किया। हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के सवाल पर उनकी वक्तव्यता ने राष्ट्रभाषा के गौरव को स्थापित किया। 1920 में असहयोग आंदोलन में विद्यार्थी होते हुए भी जेल यात्रा किए। जेल से छूटने के बाद 1923 में विद्यापीठ से शास्त्री की डिग्री प्राप्त कर सक्रिय राजनीति में भागीदारी की। इन्होंने राजनीति के आलवा साहित्य के क्षेत्र में भी काम किया।