गोरखपुर (ब्यूरो)।रिसर्च के लिए 40 से 60 वर्ष के उम्र वाले लोगों को चुना गया। इस दौरान यह बातें निकलकर आई कि ये लोग जहां पर रहते थे, उनके घर में पिजन अपना घोसला बनाकर रहते थे। पिजन के बीट्स से होने वाले संक्रमण से उन्हें लंग्स फाइब्रोसिस की बीमारी हो गई। इसके साथ ही इनमें कुछ ऐेसे भी थे, जो भूसा के डस्ट की चपेट में आ गए, इस वजह से उन्हेें लंग्स फाइब्रोसिस की बीमारी हुई।

40-60 वर्ष के लोगों पर हुई रिसर्च

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट एंड टीबी डिपार्टमेंट में प्रतिदिन ओपीडी में 250-300 मरीज आते हैैं। लगातार मरीजों की संख्या को देखते हुए चेस्ट व टीबी रोग डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। अश्विनी मिश्र के नेतृत्व में टीम ने दस पेशेंट पर रिसर्च की, उनकी उम्र 40 से 60 साल रही। जिसमें यह पता चला कि लंग्स फाइब्रोसिस के दो मुख्य वजहें हैं। पहली वजह आईपीएफ (इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस) और दूसरी वजह एचपी (हाइपरसेंसटिविटी निमोनाइटिस) रही। स्टडी में आईपीएफ का कारण नहीं पता लगाया जा सका है, लेकिन एचपी की वजह सामने आई है। एचपी में पता चला कि घर में भूसा रखने वाले और पिजन (कबूतर) नजदीक रहने से एचपी बीमारी हो रही है। स्टडी में यह भी पता चला कि घरों में भूसा रखने से उसमें नमी और फफूंदी (मोल्ड) पकड़ लेने की वजह ज्यादातर लोग इसके शिकार हुए।

इंडिया के दूसरे हिस्से ज्यादा इस्ट यूपी में है एचपी के पेशेंट्स

डॉ। अश्वनी मिश्रा बताते हैैं कि बीमारी के शुरुआती दिनों में पेशेंट्स को सांस फूलने की शिकायत होती है, लेकिन कुछ ही दिनों में यह प्रॉब्लम इतनी बढ़ जाती है कि पेशेंट खुद को चलने फिरने में असमर्थ पाता है। इस बीमारी में पेशेंट के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं। इससे ऑक्सीजन लेने की क्षमता कम हो जाती है। मेडिकल साइंस इस बीमारी के निदान में असहाय हैं। सीटी स्केन के जरिए बीमारी शुरुआती चरण में ही पहचानी जा सकती है।

लंग्स फाइब्रोसिस के टाइप्स

लंग्स फाइब्रोसिस के डिफरेंट टाइप्स हैैं। इन्हें दो प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है। पहला आईपीएफ (इडियोपैथिक, पल्मोनरी फाइब्रोसिस) है, जो लगभग 50 परसेंट पेशेंट्स में पाया जाता है। दूसरा नॉन आईपीएफ, जो कि अन्य 50 परसेंट पेशेंट्स में मिलता है।

क्या है सिम्पट्म्स

इस बीमारी के सिम्टम्स टीबी या दमा के लक्षणों से काफी मिलते हैं। इसलिए सामान्य लेाग इस बीमारी को टीबी या अस्थमा समझ लेते हैं।

-सूखी खांसी आना

-लगातार सांस फूलना

-भूख कम लगना

-शरीर का कमजोर हो जाना

होनी चाहिए जांच

पीएफटी (पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट) के दमा और लंग्स फाइब्रोसिस में अंतर किया जा सकता है। फेफड़े की फाइब्रोसिस में अंतर किया जा सकता है। फेफड़े की फाइब्रोसिस का सटीक पता लगाने के लिए सीटी स्कैन कराया जाता है।

इलाज

बीमारी के गंभीर होने पर फेफड़े मधुमक्खी के छत्ते की तरह होने लगते हैं। इस अवस्था में ऑक्सीजन देना ही आखिरी इलाज बचता है।