गोरखपुर (ब्यूरो)। वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार, एक मार्च दिन मंगलवार को सूर्योदय सुबह छह बजकर 15 मिनट और चतुर्दशी तिथि का मान रात्रि 12 बजकर 17 मिनट तक, धनिष्ठा नक्षत्र भी संपूर्ण दिन रात्रिशेष तीन बजकर 18 मिनट तक, परिघ योग दिन में 10 बजकर 38 मिनट तक पश्चात संपूर्ण दिन और संपूर्ण रात्रि पर्यंत शिव योग है। इस योग में महादेव का पूजन-अर्चन श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत फलदायी होगा।

व्रत का महत्व

ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। धर्मशास्त्र के अनुसार जिस दिन अर्धरात्रि में चतुदर्शी हो, उसी दिन शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए। जो व्यक्ति शिवरात्रि को निर्जला व्रत रहकर जागरण और रात्रि के चारों प्रहरों में चार बार पूजा करता है, वह शिव की कृपा को प्राप्त करता है। शिवरात्रि महात्म्य में लिखा है कि शिवरात्रि से बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं है।

ऐसे करें पूजन-अर्चन

पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, शिवरात्रि के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। व्रत रखकर किसी शिव मंदिर या अपने घर में नर्मदेश्वर की मूर्ति अथवा पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर समस्त पूजन सामग्री एकत्र कर आसन पर विराजमान होकर मंत्र जप करते हुए स्थापित शिवमूर्ति की षोडशोपचार पूजा करें। आक, कनेर, विल्वपत्र और धतूरा, कटेली आदि अर्पित करें। रुद्रीपाठ, शिवपुराण, शिवमहिम्नस्तोत्र, शिव संबंधित अन्य धार्मिक कथा सुनें। रुद्रभिषेक करा सकें, तो अत्यंत उत्तम है। रात्रि जागरण कर दूसरे दिन प्रात:काल शिवपूजा के पश्चात जौ, तिल और खीर से 108 आहुतियों के साथ मंत्रों से यज्ञशाला में दें। ब्राह्मणों या शिवभक्तों को भोजन कराएं और दक्षिणा देकर विदा करें फिर स्वयं भोजन कर व्रत का पारण करें।