गोरखपुर (ब्यूरो)। नाटक में पीडि़त से संबंधित व आस-पास के किरदारों का अभिनय कराया जाता है, जिससे वह समस्याओं से रूबरू होकर उसका समाधान भी खोज लेते हैं।

बढ़ा आत्मविश्वास

एक 18 वर्षीय कलाकर पढ़ाई में कमजोर था, जिस कारण उसका मजाक उड़ाया जाता था और टीचर्स भी उस पर ध्यान नहीं दे रहे थे। इससे बालक तनाव में रहने लगा। परिजनों में बालक को डांस, ड्रामा, म्यूजिक में भाग दिलवाया। बालक के लिए नाटक का मंचन किया गया, जिसमें उसने मुख्य किरदार निभाया। थेरेपी के जरिए बालक में आत्मविश्वास बढ़ा, जिससे यह पढ़ाई के साथ अन्य गतिविधियों में अच्छा करने लगा।

करता था दुव्र्यवहार

गोरखपुर शहर का 16 वर्षीय किशोर आक्रामक स्वभाव का था। वह माता-पिता को अपशब्द बोलने के साथ दुव्र्यवहार करता था। पिता ने ड्रामा थेरेपी के जरिए उसे आत्मबोध कराने का निर्णय लिया। उसके लिए रिश्तों के दायरे नामक नाटक का मंचन किया गया, जिससे किशोर ने अपने पिता का किरदार निभाया। इस नाटक से बच्चे का अहसास कराया गया कि माता-पिता के जीवन में क्या अहमियत है। जिसके बाद किशोर को अपनी गलतियों का अहसास हुआ और उसने क्रोध पर भी काबू पा लिया।

रचनात्मक तरीकों से चिकित्सा

कहानी

खेल

अभिनय

इम्प्रोवाइजेशन

भूमिका निभाना

लेखन

व्यायाम

विजुअलाइजेशन

रचनात्मकता को बढ़ावा

मनोचिकित्सक का कहना है कि ड्रामा थेरेपी भी अब मनोचिकित्सा के रूप में साबित हो रही है। यह थेरेपी लोगों को यह पता लगाने का अवसर देती है कि यह कैसे महसूस कर रहे हैं और वह किस दौर से गुजर रहा है। थियेटर थेरेपी के जरिए कल्पना और रचनात्मकता को भी बढ़ावा मिलता है। यह थेरेपी पारंपरिक चिकित्सा से काफी अलग होती है, जो लोग इसमें हिस्सा लेते हैं। उनका तनाव कम होगा और उनके व्यवहार में सकारात्मकता आती है।

थियेटर किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करता है। प्रतिकार करना सिखाता है। लड़कियों के लिए तो यह वरदान का काम करता है। मनुष्यों में संवेदनशीलता का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। इसे सभी शैक्षणिक केंद्रों में लागू किया जाना चाहिए। बच्चों के अंदर तनाव को दूर भी करता है और पढऩे को प्रेरित भी करता है।

श्रीनारायण पांडेय, अध्यक्ष, अभियान थियेटर ग्रुप