गोरखपुर (ब्यूरो)। सूत्रों की मानें तो पिछले चार महीने से उपकरणों को लगाने का कार्य चल रहा है जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है। मशीनों के जरिए सीरिंज, कैथेटर, वीगो और प्लास्टिक बोतलों का ट्रीटमेंट किया जाना है। बताते चलें कि मेडिकल कॉलेज के विभिन्न वार्डो से रोजाना बड़ी तादाद में मेडिकल वेस्ट निकलता है। इसे निस्तारित करने के लिए खलीलाबाद प्राइवेट एजेंंसी को भेज दिया जाता है।

निस्तारण के लिए ऑटोक्लेव मशीन

मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकित्साल के ऑपरेशन थियेटर और वार्डो से कई कुंतल कचरा निकलता है। जिसका निस्तारण खलीलाबाद की एक प्राइवेट एजेंसी करती है। वह रोजाना मेडिकल कॉलेज से इसे कलेक्ट करती है और खलीलाबाद स्थित फैक्ट्री पर ले जाकर इसका प्रॉपर डिस्पोजल करती है। जबकि सीरिंज, कैथेटर, वीगो और प्लास्टिक बोतलों के ट्रीटमेंट के लिए परिसर में ऑटोक्लेव मशीन और कटर मशीन लगाई गई हैं। मगर अब तक मशीनों को स्टॉल तक नहीं किया जा सका है, इसलिए वेस्ट की री-साइकिल भी नहीं किया जा रहा है।

पालन में बरती जा रही कोताही

मेडिकल वेस्ट निस्तारण को लेकर जितने सख्त नियम है। उसको पालन कराने में उतनी ही कोताही बरती जाती है। मेडिकल कॉलेज का उदाहरण ले तो परिसर रैनबसेरा के पास कचरे को डंप किया जाता है। इससे उठने वाली दुर्गंध की वजह से आसपास के लोग भी परेशान रहते हैं।

नहीं हो रहा कचरे का री-साइकिलिंग

मेडिकल कॉलेज में मेडिकल वेस्ट निस्तारण की जिम्मेदारी लखनऊ की एक फर्म के जिम्मे था, लेकिन सरकार बदलने के बाद एजेंसी भी बदल गई। अब खलीलाबाद की फर्म को इसकी जिम्मेदारी दी गई हैं जो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण कराती है। उधर, मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने री-साइकिलिंग प्लांट बना रहा है। हालांकि उपकरण तो मंगवा लिए गए लेकिन अभी तक उसे चालू नहीं किया जा सका है।

मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लाट लगाया जा रहा है। सीरिंज, कैथेटर, वीबो और प्लास्टिक की बोतलों को री-साइकिल किया जाएगा। मशीनों को स्टाल करने का कार्य चल रहा है। जल्द ही चालू कर दिया जाएगा।

- डॉ। अशोक यादव, अनुरक्षण विभाग मेडिकल कॉलेज