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मनुष्य का मन स्थिर नहीं होता। वह सदैव गतिशील होता है। जीवन को समझने के लिए स्थिर मन का होना जरूरी है। उक्त बातें सहजनवां एरिया के अलगटपुर स्थित ओशो केंद्र पर ऑर्गनाइज ध्यान शिविर में स्वामी शैलेंद्र सरस्वती नवसन्यास उपस्थित सन्यासियों को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को एक झील की भांति शांत होना चाहिए। जिस पर कोई लहर न उठती हो। लेकिन मनुष्य के मन की दशा मधुमक्खियों के छेड़े गए छत्ते की भांति है। विचारों की भिनभिनाहट मक्खियों की तरह मनुष्य के मन को घेरे रहते हैं। जिसके कारण मनुष्य अशांत तनाव और चिंता में जीता है। ओशो आश्रम पर ध्यान शिविर के साथ-साथ पुस्तक मेले का भी आयोजन किया गया था। नेपाल से आश्रम में आए संयासी पुस्तक खरीद उनके विचारों का अध्यन करेंगे।

विदेशों में भी होता है शिविर का आयोजन

स्वामी शैलेंद्र सरस्वती नवसन्यास ने बताया कि मुझे ओशो के विचारों से जो शांति मिली है। हम चाहते है वह शांति सबकों मिले। इसके लिए हम भारत ही नहीं अमेरिका, जापान, इग्लैंड, यूरोप, मास्को जैसे कई देशों में ध्यान शिविर के माध्यम से ओशो के विचार रखते है।