गोरखपुर (ब्यूरो).दुर्गा पूजा को देखते हुए गोलघर काली मंदिर, कुसम्ही जंगल स्थित बुढिय़ा माता मंदिर, दाउदपुर काली मंदिर, कालीबाड़ी रेती चौक, विंध्यवासिनी मंदिर, मेडिकल रोड, जाफरा बाजार शीतला माता मंदिर समेत सिटी के प्रमुख देवी मंदिरों को सजाया जा चुका है। चुनरी, नारियल आदि पूजन सामग्री की दुकानें भी सज गई हैं। शारदीय नवरात्र के मद्देनजर न सिर्फ मंदिरों में ही साफ-सफाई होती रही, बल्कि घरों में भी साफ-सफाई का कार्य पिछले कई दिनों से चल रहा था। रविवार को साफ-सफाई का कार्य पूरा किया गया। भक्तों ने घरों में कलश स्थापना के लिए जरूरी पूजन सामग्री, फल, मिष्ठान आदि खरीदारी की।

हाथी पर होगा माता का आगमन

पंडित शरद चंद्र मिश्रा के अनुसार, इस बार माता का आगमन हाथी पर हो रहा है। जो अत्यंत ही शुभकारी है। इससे फसलों की अच्छी पैदावार होगी। वहीं लोगों के धन-संपदा में भी वृद्धि होगी। लेकिन दशमी मंगलवार को होने से माता का प्रस्थान मुर्गा पर हो रहा है जो राजनीतिक उथल-पुथल का कारक बनेगा। पंडित बृजेश पांडेय ने बताया कि शक्ति के उपासक पहले दिन माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना करेंगे। मां दुर्गा पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था।

कलश स्थापना मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, इस वर्ष नवरात्रि के प्रथम दिन प्रतिपदा तिथि का अभाव नहीं है। प्रतिपदा तिथि संपूर्ण दिन और रात्रि शेष तीन बजकर 22 मिनट तक है। शुक्ल योग भी दिन में 10 बजकर 12 मिनट तक, उसके बाद ब्रह्म योग और श्रीवत्स नामक औदायिक योग भी है। नवरात्रि के आरंभ के दिन न तो चित्रा नक्षत्र है और न ही वैधृति योग है, इसलिए कलश स्थापन सुबह बजकर दो मिनट से शाम सूर्यास्त पांच बजकर 58 मिनट तक किया जा सकता है। सूर्यास्त के बाद रात मे कलश स्थापना का निषेध है। वहीं अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक है। यह भी कलश स्थापन के लिए अत्यंत उत्तम और श्रेयस्कर माना गया है।

ऐसे करें पूजन-अर्चन

ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, नवरात्रि का पर्व आरंभ करने के लिए मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौ और गेंहू मिलाकर बोएं। उस पर विधि पूर्वक कलश स्थापित करें। कलश पर देवी जी मूर्ति 'धातु या मिट्टीÓ अथवा चित्रपट स्थापित करें। नित्यकर्म समाप्त कर पूजा सामग्री एकत्रित कर पवित्र आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें तथा आचमन, प्राणायाम, आसन शुद्धि करके शांति मंत्र का पाठ कर संकल्प करें। रक्षादीपक जला लें।