गोरखपुर (ब्यूरो). उनसे बात कर उनके हाईस्कूल और इंटर के नंबर्स भी पता किए गए, जो ये बयां कर रहे हैं कि सक्सेज की सीढ़ी एग्जाम में मिले सिर्फ अच्छे नंबर नहीं होते हैं। बल्कि ठोस इरादों से कामयाबी हासिल की जाती है और जहां को जीतकर प्रेरणा की मिसाल लिखी जाती है। बीते दिनों छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अवनीश शरण ने भी अपनी दसवीं की मार्कशीट ट्विटर पर शेयर की थी।

हार से सबक और जीतते रहे एडीजी

एडीजी जोन अखिल कुमार को 10वीं में 78 परसेंट माक्र्स मिले। जबकि 12वीं में 87 परसेंट हासिल किए। सीबीएसई बोर्ड से पढ़़ाई करने वाले अखिल कुमार पढ़ाई के दौरान क्रिकेट के उभरते सितारे भी थे। अच्छे खेल की बदौलत इनका सेलेक्शन सीके नायडू में हुआ। अखिल कुमार ने बताया कि खेल ने मुझे हारना सिखाया, जिसके बाद मुझे हारने से डर ही नहीं लगता। उन्होंने बताया कि जो भी स्टूडेंट्स इस थॉट के साथ चलेगा एक ना एक दिन उसे कामयाबी जरूर मिलेगी। कामयाबी कभी मार्कशीट में छपे अच्छे नंबर के बदौलत नहीं मिलती है।

पहले डॉक्टर, फिर कप्तान

गोरखपुर के एसएसपी डॉ। गौरव ग्रोवर को 10वीं में 86 परसेंट मिले। जबकि 12वीं में 78 परसेंट माक्र्स मिले। सीबीएसई से पढ़ाई करते हुए वो सबसे पहले डॉक्टर बने। इसके बाद भी उनकी तैयारी जारी रही। आज कई बड़े शहरों से होते हुए सीएम सिटी के कप्तान हैं। एसएसपी ने बताया, कोई भी स्टूडेंट ठोस इरादों के साथ उतरता है तो उसे कामयाबी पाने से कोई रोक नहीं सकता है। वो चाहता है वो सब पूरा होगा, केवल उसे थोड़ा धैर्य रखकर कदम आगे बढ़ाना होगा।

सिर्फ सफलता की सीढ़ी हैं नंबर

एसपी सिटी कृष्ण कुमार बिश्नोई को 10वीं में 87.33 परसेंट नंबर मिले। जबकि राजस्थान बोर्ड से पढ़ते हुए 12वीं में 91.25 माक्र्स हासिल किए। इंटर पास कर उन्हें ये नहीं पता था कि वो एक दिन आईपीएस भी बन पाएंगे। बिना टेंशन लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। एक दिन उन्हें अपनी मेहनत का फल आईपीएस के रूप में मिला। एसपी सिटी ने बताया कि ये जरूरी बिल्कुल भी नहीं है कि बहुत अच्छे नंबर आपको आईएएस या आईपीएस बना दें। कम नंबर वाले हों या फिर अधिक माक्र्स हासिल किए स्टूडेंट। दोनों के लिए हाईस्कूल और इंटर के नंबर आगे बढऩे की सीढ़ी मात्र है। जो स्टूडेंट्स सारी बातों को दरकिनार कर अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ता है, उसे कामयाबी जरूर मिलती है।

सफलता के लिए गोल से 'प्रेमÓ करना होगा

जीडीए वीसी प्रेम रंजन सिंह को 1999 में हाईस्कूल में 75 परसेंट माक्र्स मिले। जबकि 2001 में 73 परसेंट माक्र्स के साथ इंटरमीडिएट किया। जीडीए वीसी ने कहा, बच्चों को लगन के साथ मेहनत करनी चाहिए। गोल से प्रेम करना चाहिए, ताकि सफलता सुनिश्चित रूप से मिले। यदि दृढ़ इच्छा रहे तो अपने आप रास्ता बन जाता है। इसलिए स्टूडेंट को चाहिए कि वह मेहनत और लगन से अपने मुकाम को सफल बनाएं। इधर-उधर की बात सुने बगैर अपने गोल पर फोकस रहना चाहिए।

लक्ष्य प्राप्ति के लिए जारी रखें प्रयास

एम्स डायरेक्टर डॉ। सुरेखा किशोर के हाईस्कूल में 78 परसेंट और इंटरमीडिएट में 86 परसेंट माक्र्स आए थे। एम्स डायरेक्टर ने कहा, कम माक्र्स या फिर अपनी अल्पकालिक असफलता को अपने आप पर हावी न होने दें। हर इंसान अपने आप में खास है जैसे किसी को कला पसंद है तो किसी को संगीत या कुछ और। किसी से खुद की तुलना कभी न करें। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना प्रयास निरंतर जारी रखें। अच्छे अंक या डिग्री मात्र ही जीवन में सफल होने के लिए जरूरी नहीं है। फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग, माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स जैसे अन्य लोग इसके जीवंत उदाहरण हैं। क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर 10वीं में फेल हुए हैं। सदी के महानायक अभिनेता अभिताभ बच्चन को शुरुआती समय में असफलता का सामना करना पड़ा था। हैरी पार्टर किताब की लेखिका को उसकी किताब को प्रकाशित करने में 12 प्रकाशकों ने मना किया था। अल्बर्ट, चार्ली चैपलिन को भी असफलता का सामना करना पड़ा था।

'सेकेंड-सेकेंड' से प्रथम नागरिक तक

मेयर सीताराम जायसवाल ने 1962 में हाईस्कूल और 1964 में इंटरमीडिएट किया। दोनों में सेकेंड डिवीजन रहे। अच्छे माक्र्स के लिए लगन से पढ़ाई की और 70 परसेंट में ग्रेजुएशन (इकोनॉमिक्स) कंप्लीट किया। मेयर सीताराम जायसवाल ने बताया कि बच्चे अच्छे नंबरों के गणित के चक्कर में न रहें। उन्हें बाहरी नालेज की भी जरूरत होती है। केवल नंबर के लिए ही पढ़ाई नहीं करनी चाहिए। सफलता के लिए उन्हें अन्य जानकारियां भी होना बेहत जरूरी है। गार्जियन को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को बाहरी ज्ञान दें, ताकि उनका बच्चा सफलता को छू सके। साथ ही अनवरत बुलंदियों को छू सकें और अपने देश का नाम रोशन कर सकें।

बेस्ट के लिए करें तैयारी

मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो। जेपी पाण्डेय को 10वीं में 72 परसेंट नंबर मिले। जबकि 12वीं में 68 परसेंट माक्र्स मिले। आज एमएमएमयूटी में 100 परसेंट प्लेसमेंट की गारंटी मिल रही है। ये सब वीसी प्रो। जेपी पाण्डेय ने ही करके दिखाया है। वीसी ने बताया कि कभी स्टूडेंट्स को हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। हाईस्कूल या इंटर में नंबर कम हैं, इसको लेकर स्टूडेंट कभी परेशान ना हो। अभी तो कई एग्जाम से गुजरना है, तब जाकर सक्सेज मिलेगी। इसलिए रिजल्ट देखने के बाद नंबर की तुलना छोड़ बेस्ट करने के लिए आगे की तैयारियों में स्टूडेंट्स को जुट जाना चाहिए।

इंग्लिश, मैथ और साइंस करें फोकस

डीएम कृष्णा करुणेश ने बताया कि 2009 में मैंने लॉ ग्रेजुएशन किया था। इससे पहले 2006 में ग्रेजुएशन किया। वहीं, 2003 में 12वीं पास किया। जबकि सन 2001 में 10वीं पास किया। मैने 10वीं और 12वीं सीबीएसई बोर्ड से किया है। दोनों क्लास में फस्र्ट डिवीजन क्वालिफाई किया। उन्होंने कहा, बच्चों के रिजल्ट डिक्लेयर हो रहे हैैं, बच्चों को ढेर सारी शुभकामनाएं। बच्चे आगे की पढ़ाई जारी रखें, लेकिन इंग्लिश, मैथ और साइंस के सब्जेक्ट पर फोकस रखें। आज की डेट में इंग्लिश किसी भी कॉम्पीटीटिव एग्जामिनेशन के लिए बेहद जरूरी है। इंग्लिश और मैथ पर कमांड होना चाहिए। इसके बगैर किसी भी कॉम्प्टीशन में आप सफलता अर्जित नहीं कर सकते।

मेहनत के लिए सदा आगे बढ़ते रहें

ऐश्प्रा गु्रप के डायरेक्टर अतुल सराफ ने कहा, जिस साल मैं हाईस्कूल में था। उसी वक्त पिताजी का एक्सीडेंट हो गया था। पढ़ाई के साथ मुझे बिजनेस भी देखना पड़ता। रिजल्ट आया तो हम सेेकेंड डिवीजन पास हुए थे। हम रिजल्ट से निराश थे। तब मेरी मां स्व। प्रकाशनी देवी ने कहा, बेटा तुम्हारा सेकेंड डिवीजन हमारे लिए फस्र्ट डिवीजन से ज्यादा है। मां की यह बात सुनकर खुशी हूई और आगे और बेहतर करने का संबल मिला। आज मैं ज्वेलरी और रियल स्टेट के कारोबार को बखूबी आगे बढ़ा रहा हूं। हम यही कहना चाहते हैं कि मार्क सफलता की निशानी नहीं है। बहुत से ऐसे लोग हैं, जो टॉपर थे, लेकिन आज किसी काम के नहीं है। बहुत से ऐसे लोग है हाईस्कूल, इंटर में ज्यादा अच्छे नंबर नहीं ला सके थे, लेकिन आज अच्छे ओहदे पर हैं या बिजनेस कर रहे हैं। इसलिए यदि अपेक्षित नंबर नहीं आते हैं तो घबराना नहीं चाहिए। मेहनत के बल पर निरंतर आगे बढ़ते रहें।

अंक की मोहताज नहीं होती प्रतिभा

नगर आयुक्त अविनाश सिंह ने बताया कि छात्र कम आने पर परेशान न हों। कई बार किसी परिस्थितिवश ऐसा हो जाता है। छात्र आगे की पढ़ाई पर ध्यान दें और आगे बढ़ें। उन्होंनेे बताया, उनके हाईस्कूल में 75 प्रतिशत माक्र्स थे, लेकिन इंटरमीडिएट में सेकेंड डिवीजन पास हुए। इसके बाद वह निरंतर पढ़ाई में जुटे रहे और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले पीसीएस, फिर 2014 में आईएएस में बन गए। बताया कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए और एमए में प्रथम श्रेणी से पास हुए। जेआरएफ नेट में उनको स्कॉलरशिप भी मिली।

माक्र्स कम तो स्वयं को कम मत आंकिए

अपनी थर्ड डिवीजन की मार्कशीट शेयर करने वाले छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अवनीश शरण वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार में डायरेक्टर तकनीकी शिक्षा हैं। उनके पास स्किल डेवलपमेंट का भी चार्ज है। उन्होंने कहा, आप कोई भी एग्जाम देते हैं अथवा बिजनेस, खेलकूद या म्यूजिक के फील्ड में होते हैं तो अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं। यदि किसी क्लास में माक्र्स कम आते भी हैं तो स्वयं को कम मत आंकिए और यह अंतिम मौका नहीं है। बल्कि इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करिए। 10वीं में माक्र्स कम आए तो हैं तो 12वीं में बेहतर करिए और 12वीं में कम आए हैं तो ग्रेजुएशन या फिर कॉम्पटीटिव एग्जाम में बेहतर करिए। बस अपने गोल के प्रति अडिग रहिए। इस गोल से ही सफलता के शिखर तक पहुंचेंंगे।