- गोरखपुर में ऑर्गनाइज साहित्य समागम में परमवीर चक्र विजेता ने शेयर किए अपने एक्सपीरियंस

- कारगिल में छह गोली खाने के बाद भी चार लोगों को मौत के घाट उतारने वाले हैं योगेंद्र यादव

GORAKHPUR: सुबह हो या शाम, आंधी आए या तूफान, बर्फ गिरे या आग बरसे। हर मौसम में देशवासी सुकून की नींद सो सकें, इसके लिए बॉर्डर पर हमारे जवान तैनात रहते हैं। बड़ी-बड़ी लड़ाइयों में देश का झंडा बुलंद करने वाले वीर सपूतों की कमी नहीं है। इस लिस्ट में शामिल कारगिल टाइगर टॉप हिल के हीरो और 15 गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के चार सिपाहियों को मौत के घाट उतारने वाले परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव रविवार को गोरखपुर में थे। साहित्य समागम में शामिल होने पहुंचे योगेंद्र ने कारगिल वार के दौरान के अपने अनुभव को शेयर किया, जिससे वहां मौजूद सभी के रोंगटे खड़े हो गए और भारत के इस वीर सपूत को सभी ने स्टैंडिंग अवेशन भी दिया।

16 साल की उम्र में ज्वाइन की आर्मी

बच्चों के अंदर काफी क्यूरेसिटी होती है। मेरे अंदर भी थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे लगा कि पिता के पद चिह्नों पर चलकर सेना में भर्ती होना चाहिए। मुझे देखना चाहिए कि जो पिता जी बोलते हैं कि बॉर्डर पर लड़ाई के दौरान बहुत सारी मुश्किलात आती हैं, खाना नहीं मिलता है और पानी नहीं मिलता है। उस समय लोग पीने के पानी में भी जहर डाल देते हैं इस तरह की परिस्थिति आती है। मैं इसको लेकर सपने देखने लगा। मुझे यह नहीं मालूम था कि मुझे 16 साल पांच माह की उम्र में मेरे सपने पूरे हो जाएंगे और युद्ध लड़ने का मौका मुझे मात्र 19 साल की अवस्था मिल जाएगा।

शादी के बाद जानलेवा 22 दिन

जब यह युद्ध शुरु हुआ तो मैं शादी करने के लिए छुट्टी लेकर आया था, पांच मई को शादी थी और 20 मई को जब मैं जयपुर ट्रांजिट कैंप में पहुंचता हूं तो मुझे पता चलता है कि मेरी बटालियन कश्मीर वैली के अंदर टेरररिस्ट के खिलाफ कार्रवाई कर रही थी। सैनिक होने के नाते बड़ा सौभाग्य था कि सर्विस के दौरान मुझे युद्ध लड़ने का मौका मिल गया। अपनी मातृभूमि की सेवा करने का मौका मिल गया। उस समय मेरी बटालियन पहाड़ी के ऊपर लड़ाई लड़ रही थी। मैं वहां पहुंचा। 22 दिन तक हमने उस पहाड़ी पर लड़ाई लड़ी। 22 दिन के अंदर दो ऑफिसर, दो जूनियर ऑफिसर और 21 जवानों की शहादत के बाद 12 जून 1999 को हिंदुस्तान ने पहली सफलता के रूप में दुरुलिक पहाड़ी को प्राप्त किया।

परिस्थितियां कम कर देती हैं डर

यह एक ऐसा युद्ध था जो पहले कभी नहीं लड़ा गया था, दुश्मन इतनी हाइट पर था, उतना ही बड़ा उसके पास एडवांटेज था। कहीं 13 हजार फुट पर थे, कहीं 16 हजार और कहीं 18 हजार, उसके पास बहुत बड़ा एडवांटेज था, लेकिन यह हिंदुस्तान की मिट्टी है कि यहां पर जन्म लेने वाला वीर और वीरांगना है। उसका शरीर गोलियों से छलनी क्यों न हो जाए, अगर आखिरी सांस भी बची होती है, तो भी उसके कदम दुश्मन की ओर ही बढ़ते हैं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है कि जिसे जान जाने का डर न हो, लेकिन जब परिस्थिति ऐसी होती है तो वह खुद ब खुद खत्म हो जाता है। डर मुझे भी लगा, क्योंकि शादी करके गया था, पूरा परिवार ऐसा था। लेकिन जो साथ थे, वह उस परिवार से भी बढ़कर थे। हम एक दूसरे से आपस में लड़ते हैं तब जाकर दुश्मन को मौत के घाट उतारते हैं।

राशन पहुंचाने का मिला था जिम्मा

कारगिल की 22 दिन लड़ाई के दौरान मुझे जो वहां काम मिला था, वह था नीचे से ऊपर आर्मेशन और राशन पहुंचाना। हम सुबह साढ़ पांच बजे चलते थे और रात को ढाई बजे पहुंचते थे और दो घंटे वहां रुकने के बाद फिर वापस लौट आते थे। 22 दिन चलने वाली जंग में हम तीन जवाब ऐसे थे, जो कॉन्टीन्यू चले। उसी काम की बदौलत पहचान बनी। तीनों लड़के फिजिकली और मेंटल बहुत स्ट्रांग हैं और इनको कमांडर टुकड़ी के अंदर शामिल कर दिया जाए। क्योंकि तभी हमारी बटालियन को टास्क मिला था टाइगर हिल।

तीन रात, एक दिन में चढ़े ऊपर

जो उस सेक्टर की सबसे ऊंची चोटी थी, जिसकी ऊंचाई थी 16,500 फीट। उस पहाड़ी पर हम सिर्फ रात को चल सकते थे दिन में नहीं, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह हमें कमांड कर रहे थे। एक अफसर, एक जेएसओ और 19 जवानों की टुकड़ी, हम तीन रात और एक दिन उस पहाड़ी पर चलते रहे, मुझे आज भी याद है कि तीसरी रात सुबह का वक्त रहा होगा जब हम रस्सियों के सहारे एक दूसरे का हाथ पकड़कर ऊपर की ओर चढ़ रहे थे, तभी दुश्मन का दोनों तरफ से फायर आना शुरू हो गया। पूरा रास्ता क्रॉस हुआ, तो सिर्फ सात जवान ऊपर पहुंच पाए।

मार कर मरेंगे

वहां पहुंचे तो देखा कि दुश्मन के दो बंकर्स, आधा दूर जाकर हमने फायरिंग किया, और उसमें बैठे पाकिस्तान के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। दुश्मन वहां से 50-60 मीटर दूर पर होगा, जो टाइगर हिल टॉप का मेन डिफरेंस था। दुश्मनों ने देखा कि जवान यहां तक पहुंच गए, इतना जबरदस्त फायरिंग हुआ था कि अगर एक कदम आगे बढ़ते हैं तो मौत और अगर कदम पीछे करते हैं तो भी मौत थी। मरना तो निश्चित था, तब हमने प्रण किया कि मरना ही तो है, लेकिन मरने से पहले जितने दुश्मनों को मौत के घाट उतार सकते हैं उतारेंगे।

कर दिया फायर बंद

पांच घंटे तक हम लड़ाई लड़ते रहे। हमारे पास कोई सपोर्ट नहीं था, बिल्कुल कटा हुआ था। धीरे-धीरे जब हमारा आर्मेशन खत्म होता जा रहा था, तो हमने प्लान बनाया कि फायर बन कर देते हैं ताकि दुश्मन को लगे कि हम मारे जा चुके हैं। वह प्लान हमारा कामयाब हुआ। हमने अचानक से फायर बंद किया और 20-25 मिनट तक हमारी तरफ से कोई जवाबी फायर नहीं हुआ तो उन्हें लगा कि हम मारे जा चुके हैं। तो 10-12 पाकिस्तान के जवान सिर्फ यह देखने के लिए यहां पर आए कि हिंदुस्तान के जवानों की संख्या कितनी है। दिन का 11-सवा ग्यारह बज रहा होगा। हम एक साथ बाहर आए और अटैक कर दिया, सिर्फ एक-दो बचे होंगे बाकि सब को हमने मौत के घाट उतार दिया। लेकिन एक-दो जो बचे थे, उन्होंने जाकर अपने कमांडर्स को बताया कि वहां पर तो हिंदुस्तान के आठ या दस ही जवान हैं।

फिर नहीं दिया मौका

फिर उन्होंने हमें मौका नहीं दिया। विदइन 30 मिनट पाकिस्तान के 35 से 40 जवान वहां पहुंचे और दोबारा हमला कर दिया। हमला इतना जबरदस्त कि जितने भी उनके पास हेवी वेपंस थे, सब कुछ इस्तेमाल करने लगे। हमें सर नहीं उठाने दिया और धीरे-धीरे करके सबको मारना शुरू कर दिया। उन्होंने सबसे पहले हमारी एलएमजी थी, उसे निशाना बनाया। उसको चलाने वाले जवानों को जब आकर पत्थर लगे। हमारे साथ हवलदार मदन था, हमें उनके आखिरी शब्द अब भी याद हैं। उन्होंने मुझे एकदम से आवाज दी योगेंद्र इसको उठाकर फेंक, दुनिया में इस वेपन के सिवा कोई बचाने वाला नहीं है।

ऊपर ही खड़े थे जवान

मैंने वेपन को उठाकर उनकी तरफ फेंका तो देखा कि जिस पत्थर से हम फायर कर रहे थे, उसी के ऊपर सात पाकिस्तान के जवान खड़े हुए थे। वह सिर्फ चार-पांच मीटर दूर रहे होंगे। मैंने कहा, सर यह तो बहुत नजदीक आ गए हैं, उन्होंने जैसे ही आवाज सुनी, मेरे ऊपर ग्रेनेड फेंका, उस समय साथ में मेरे नाम का योगेंद्र सिंह यादव भी था। उसके हाथ पर लगा और उसकी उंगली कटकर दूर जा गिरी, उसने बोला मेरा हाथ कट गया है, मैंने बोला नहीं सर, हाथ नहीं, उंगली कटी है। उनको फ‌र्स्ट एड दिया। तभी दुश्मनों ने हमारे स्नाइपर वेपन को निशाना बनाना शुरू कर दिया। मुझे और मेरे साथ अनंतराम को आगे बढ़ने का निर्देश हुआ, जैसे ही मेरा मूवमेंट हुआ, उन्होंने देखा होगा। वैसे ही उन्होंने एक ग्रेनेड और फेंक दिया। ग्रेनेड का टुकड़ा आकर मेरे घुटने के नीचे लगा, मुझे लगा कि मेरा भी पैर कट गया है। फिर मैंने हाथ लगाकर देखा तो मेरा पैर तो नहीं कटा था, लेकिन इस बीच एक और ग्रेनेड का टुकड़ा आकर लगा और नाक के पास से काट दिया। इसके बाद चेहरा बिल्कुल सुन्न हो गया था। दिखाई देना बिल्कुल बंद हो गया।

सबकुछ हो गया खत्म

जब आंखे खुली तो ऊपर से नीचे तक लहु-लुहान और नाक से खून की धार बह रही थी। फिर मैं अपने साथ के सामने पहुंचा और पहाड़ से पीठ लगाकर बैठ गया। मैंने कहा सर मेरा फ‌र्स्ट एड कर दीजिए, उन्होंने बोला पहले फायर कर, मैं फायर करने लगा, कुछ देर के बाद जब उन्होंने अपनी पट्टी निकली, वैसे ही उनके सर पर गोली लग गई थी। इसके बाद दूसरे बंदे को भी सीने में गोली लग गई। देखते ही देखते उन्होंने एक साथ हम पर हमला कर दिया और कुछ ही दिनों में सबकुछ खत्म हो गया। मेरे तमाम साथी शहीद हो चुके थे। उनके कमांडर ने बोला देख, कोई जिंदा तो नहीं है। फिर वह मरे लोगों को गोलियां मारने लगे। मैं इतना बेहोश नहीं था और सबकुछ देख रहा था, सबकुछ सुन सकता था। डेडबॉडी में वह गोलियां उतार रहे थे, तो डेड बॉडियां उछल रहीं थीं। मेरे बगल वाले को मारा, मैं भी ऐसे ही पड़ा हुआ था। मेरे पास पहुंचा और मेरे बाजू में गोली मारी, जांघ में गोली मार और फिर पैर में गोली मारी।

कैसे दे दूं सूचना?

जो हमारा नीचे पेास्ट था उसको कैप्चर करने के लिए बगल में ही एक घाटी है, जहां उनका बेस कैंप था, उन्होंने उनको मैसेज दिया कि नीचे जो हिंदुस्तान का पोस्ट है, उस पर आकर हमला कर दो। जब वह आवाज मेरे कानों तक पड़ी तो मुझे लगा कि मेरे साथी भी आज नहीं बचेंगे। मैंने भगवान से प्रार्थना की कि किसी तरह मैं नीचे पहुंच जाऊं और अपने साथियों को इसकी सूचना दे सकूं। चुप चाप पड़ा रहा और एक मौके की तलाश में था, चुनौती बहुत कड़ी थी और उनका बचना भी बिल्कुल मुश्किल था। फिर उनके कमांडर ने कहा कि इनके वेपन उठा लो, फिर उनका एक जवान आकर दोबारा से गोलियां चलाने लगा। उसने मुझे भी गोली मारी, लेकिन बाह, जांघ और पैर में ही गोली लगी। एक कदम बढ़ने के बाद वह दोबारा वापस आया, मुझे तब लगा कि अब नहीं बचूंगा। उसने मेरे सीने में गोलियां तो दाग दीं, लेकिन कहते हैं न कि जाको राके साइंया, मार सके न कोए, मेरी ऊपरी जेब में पर्स रखा हुआ था और उसमें पांच-पांच के कई सिक्के भी पड़े हुए थे। गोलियां उन्हीं सिक्कों से टकराकर रह गई। मुझे लगा कि मैं मर गया, लेकिन वापस दूसरा पाकिस्तानी सैनिक पहुंचा और जब उसने मेरी एके-47 उठाई, तो मुझे अहसास हुआ कि मैं जिंदा हूं।

इधर-उधर से की फायरिंग

मेरे पास एक हैंडग्रेनेड बचा हुआ था, मैंने अपना हैंडग्रेनेड निकाला और उसके ऊपर फेंक दिया। उसने कोट पहनी हुई थी, उसी के अंदर ग्रेनेड गिरा। वह पीछे की ओर मुड़ा और देखा, लेकिन पीछे की ओर कोई था नहीं, जब तक वह ग्रेनेड को निकालता, तब तक वह फट गया। उसका सर उड़ गया। वह मेरे ऊपर गिरा, उससे पाकिस्तानी सैनिकों में खलबली मची कि कोई जिंदा है, लेकिन कुछ बोले जिंदा नहीं है नीचे से रीइंफोर्समेंट आ गई है। वही एक मौका था मेरे पास मातृभूमि के लिए कुछ करने का, मैंने राइफल उठाने की कोशिश की, लेकिन हाथों पर गोली लगने की वजह से मैं उसे उठा नहीं सका। फिर मैंने दूसरे हाथ से किसी तरह राइफल उठाई और फायरिंग की। तीन-चार जगह बंकर और इधर-उधर जाकर फायरिंग की, तो उन्हें लगा कि इनफोर्समेंट आ गई है। वहां से वह भाग निकले और टाइगर टॉप हिल खाली करवा लिया। फिर वापस लुढ़कता हुआ नीचे पहुंचा, तो मुझे लगा कि कोई मेरी तरह यहां भी जिंदा होगा। लेकिन आकर देखा तो किसी का सर उड़ा हुआ था, कोई खून से लहु-लुहान था, कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं।

नीचे नजर आ गए साथी

उम्र का भी अनुभव नहीं था और सर्विस का भी कोई अनुभव नहीं था। बस एक जुनून था, एक लगाव था, देश के प्रति। हिंदुस्तान की मिट्टी को मां बोलते हैं और मां के अंदर बहुत ताकत होती है, वह अपने बच्चों को लड़पता हुआ नहीं देख सकती है। तो उसी ने मुझे रास्ता दिखाया कि बेटा इस नीचे की तरफ चले जाओ। मैं वहीं से लुढ़क गया, एक हाथ पहाड़ पकड़कर लटक गया। मुझे लगा कि मैं पाकिस्तान की तरफ आ गया हूं लेकिन जब मैं नीचे की तरफ आ गया तो देखा कि मेरे साथी खड़े हैं। जब मैं नीचे पहुंचा तो मैंने उन्हें पूरी कहानी बताई। कामंडर थे होशियार चंद ठाकुर, मुझे उनके पास पहुंचाया गया। तब तक इतना ब्लड निकल चुका था कि मुझे दिखाई देना बंद हो गया।

गोलियों की होती है भूख

मेरी आंखें बंद हो गई। मुझसे पूछा गया कि कुछ बता सकते हो, तो मैंने ऊपर की तमाम घटनाक्रम बताया। तो उन्होंने मुझसे पूछा बेटा, जवान की रिक्वायरमेंट बता सकता है। मुझे 72 घंटे से ज्यादा का वक्त हो गया था सिर्फ आधा पैकेट बिस्कुट खाया था। मैंने कहा कि सर, भूख सिर्फ जवान को गोलियों की है, जितनी ज्यादा दे सकते हैं, उतनी ज्यादा से ज्यादा दे दीजिए। इसके बाद मेरे होश पूरी तरह से खो गए। जब होश आया दो देखता हूं कि ऊपर पंखा चल रहा है और मैं श्रीनगर में हूं। उसी दिन पता चला कि बटालियन ने टाइगर हिल टॉप के ऊपर जाकर विजय पताका फहरा दिया है।