गोरखपुर (ब्यूरो)। डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर से प्रचार की अनुमति लेकर ही लोग कार्यक्रम कर पाएंगे। इसलिए नेता और उनके कार्यकर्ता डिजिटल एप्रोच में जुट गए हैं। भाजपा,

कांग्रेस, सपा, बसपा और निषाद पार्टी के अलावा निर्दली उम्मीदवार भी डिजिटली एक्टिव हो गए हैं और पब्लिक तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं। कैंपेनिंग का वीडियो लोगों तक

पहुंचाकर संभावित प्रत्याशी, कार्यकर्ता और समर्थक अपनी मनुहार कर रहे हैं।
बिल्ला लूटने के लिए दौड़ पड़ते थे बच्चे
चुनाव प्रचार के पारंपरिक तरीके धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं। हर इलेक्शन में प्रचार का तरीका बदलता जा रहा है। यूपी विधानसभा इलेक्शन में इस बार पूरी तरह से डिजिटल मोड

पर प्रचार हो रहा है। इसलिए अब सड़कों पर पहले की तरह प्रचार गाडिय़ां नजर नहीं आती हैं। प्रचार गाडिय़ों के पीछे बच्चों की टोली घूमती थी, जो उसमें रखा झंडा, बैनर और

बिल्ला मांगती रहती थी। बच्चों के बीच इसे पाने की होड़ मची रहती थी। बच्चों के सहारे ही सही, पार्टी और प्रत्याशी की पहुंच लोगों के घर तक हो जाती थी। कागज पर छपी हुई

सामग्री घर में रखे होने से अलग अट्रैक्शन बना रहता था।
गलियों में सन्नाटा, अब नहीं कोई आता-जाता
चुनाव करीब आते ही गली-मोहल्लों में धूम मचती थी। लेकिन अब गलियों में सन्नाटा है। पूर्व के चुनावों में प्रत्याशी पहुंचे या ना पहुंचें। उनकी प्रचार गाडिय़ां लिए हुए कार्यकर्ता पहुंच

जाते थे। गाना बजाने से लेकर अपनी अपील तक लोगों के कानों में पहुंचाने की होड़ मची रहती थी। सुबह से लेकर देर रात तक यह सिलसिला चलता रहा था। इससे मालूम होता कि

इलेक्शन का सीजन चल रहा है। जनसभा, पदयात्रा, साइकिल रैली, बाइक रैली और रोड शो के जरिए भी पब्लिक तक पहुंचने का प्रयास करते थे।
पूर्व में चुनाव प्रचार का तरीका
- सड़कों पर नेताओं के व्हीकल लाउडस्पीकर लगाकर चलते थे।
- गाडिय़ों से बैनर, बिल्ला, झंडा, स्टीकर सबकुछ बांटा जाता था।
- गाडिय़ों के आने पर छोटे बच्चों का हुजूम उनके पीछे लगता था।
- जगह-जगह कपड़े वाले बैनर लगाने के लिए होड़ मची रहती थी।
- पहले से ही कार्यकर्ता जगह का निर्धारण कर लेते थे, ताकि लोगों की नजर उन पर पड़े।
अब यह तरीका अपना रहे नेता
- पार्टी, नेता और समर्थक अब सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूज कर रहे हैं।
- अपने तरीके से पोस्ट लोगों तक पहुंचा रहे हैं। लोग उनकी पोस्ट शेयर और लाइक करके आगे बढ़ा रहे हैं।
- प्रत्याशियों और नेताओं ने अपने लिए कंटेंट राइटर भी नियुक्त कर दिए हैं। ताकि अधिक से अधिक पब्लिक को प्रभावित किया जा सके।
- सोशल मीडिया पर नए नारे, स्लोगन और कंटेंट से वोटर्स को लुभाने की कवायद चल रही है।
- बूथ स्तर तक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर लोगों तक पहुंचने की कोशिश में कार्यकर्ता जुटे हैं।
- डिजिटल माध्यमों में वीडियो, आडियो, पोस्टर और बैनर बनाकर अपना प्रचार किया जा रहा है।
- फेसबुक, यू-ट्यूब, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर सहित अन्य माध्यम अपनाए जा रहे हैं।
इस वजह से सोशल मीडिया भी प्रभावी
- सोशल मीडिया के जरिए टारगेट कैटेगरी तक पहुंचने में आसानी होती है।
- उम्र और जेंडर के अनुसार भी अपने वोटर्स का सेलेक्शन हो जाता है।
- एक ही बात को डिजिटली महिलाओं, बच्चों, पुरुषों तक एक ही समय में शेयर किया जा सकता है।
- फिजिकल रैली की अपेक्षा डिजिटल माध्यम काफी सहज, सुलभ और सस्ते भी हैं।
वर्जन
कोरोना संक्रमण काल में हो रहे चुनावों में प्रचार का तरीका भी बदला है। नेता, पार्टी, कार्यकर्ता सभी अब डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए हर

किसी तक पहुंचने की कोशिश हो रही है। वायरल वीडियो के जरिए लोगों को लुभाया जा रहा है।
डॉ। अमित उपाध्याय, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विभाग, डीडीयूजीयू