गोरखपुर (ब्यूरो).उन्होंने कहा कि 1767 में ब्रिटिशर्स के खिलाफ पहले प्रतिरोध का संयोजन तमकुहीराज के तत्कालीन स्थानीय जमीदार फतेह बहादुर शाही ने किया था। फतेह बहादुर शाही की सेना में प्रमुख रूप से नाथ पंथ के सन्यासी उनके अनुयायी, दसनामी साधुओं से संबद्ध गोंसाई तथा नागा साधु प्रमुख रूप से शामिल थे। 1803 तक चले इस प्रतिरोध में हजारों की संख्या में साधु-सन्यासी वीरगति को प्राप्त हुए। 1835 में प्रयागराज में प्रयागवाला संत समुदाय ने भी अंग्रेजों के अन्याय के विरुद्ध मोर्चा खोला था। 1857 की क्रांति की भूमिका भी इसके एक साल पहले हरिद्वार कुम्भ में संतों ने ही तैयार की थी। प्रो। हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि 4 फरवरी 1922 को हुए ऐतिहासिक चौरीचौरा जनाक्रोश की अगुवाई की जिस चिमटहवा बाबा ने की थी, वह कोई और नहीं बल्कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ थे। जनाक्रोश में जब उनका नाम आया तो उनके लिए मदन मोहन मालवीय खड़ेे हुए और साक्ष्य के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत के बंटवारे का भी ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने विरोध किया था।
मौके पर मौजूद रहे शिक्षक व स्टूडेंट्स
व्याख्यानमाला में महायोगी गोरखनाथ यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ। प्रदीप कुमार राव, गुरु गोरक्षनाथ कॉलेज ऑफ नर्सिंग की प्रिंसिपल डॉ। डीएस अजीथा गुरु श्रीगोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) के प्रो। गणेश बी पाटिल डॉ। प्रज्ञा सिंह, डॉ। सुमित कुमार, डॉ। दीपू मनोहर, डॉ। पीयूष वर्षा, डॉ। एसएन सिंह, डॉ। जसोबेन, डॉ। प्रिया नायर आदि की सक्रिय सहभागिता रही। मंच संचालन वैभव दूबे व जाह्नवी राय ने किया। व्याख्यान का शुभारंभ बीएएमएस की छात्राओं साक्षी सिंह, मंपी राय व दीक्षा द्वारा प्रस्तुत धनवंतरी वंदना एवं सरस्वती वंदना से तथा समापन साक्षी श्रीवास्तवा, मधुलिका सिंह, अंशिका जायसवाल, कहकशा, आसमा खातून के वंदे मातरम गान से हुआ। इस अवसर पर सभी शिक्षक व बीएएमएस फस्र्ट इयर के स्टूडेंट्स उपस्थित रहे।