गोरखपुर (ब्यूरो).एम्बुलेंस स्टाफ की इस तरह के मिसमैनेजमेंट की सर्वाधिक शिकायते जिला अस्पताल व बीआरडी मेडिकल कॉलेज से हैं। जहां पेशेंट को ले जाने पर स्ट्रेचर या बेड नहीं होने का बहाना बनाकर एम्बुलेंस स्टाफ को घंटों रोककर रखा जाता है। एम्बुलेंस की ही व्हील स्ट्रेचर पर पेशेंट का इलाज शुरू करके दूसरे जरूरतमंद पेशेंट के लिए रवानगी बाधित की जाती है।

3 से 4 घंटे लग जाता है समय

बता दें, 102 एम्बुलेंस सेवा केवल गर्भवती महिलाओं और 108 की सेवा अन्य गंभीर पेशेंट्स या घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए है। शहर एरिया में 50 एम्बुलेंस 102 नंबर की और 46 एंबुलेंस 108 नंबर की हैं, पर जिले में केवल 96 एम्बुलेंस संचालित है। नियमत: पेशेंट अपनी सुपुर्दगी में लेने के बाद अस्पताल प्रशासन की ओर से एम्बुलेंस को दूसरे पेशेंट्स के लिए छोड़ देना चाहिए, लेकिन जिला अस्पताल व बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऐसा नहीं हो रहा है। एंबुलेंस कर्मियों की शिकायत है कि इमरजेंसी मे पेशेंट ले जाने के बाद उन्हें घंटों फंसाए रखा जाता है। वहां बेड या स्ट्रेचर खाली न होने का बहाना बनाकर एम्बुलेंस की ही स्ट्रेचर पर लिटाकर पेशेंट का इलाज किया जाता है। इसमें तीन से चार घंटे और कभी-कभी इससे अधिक समय भी लग जाता है। ऐसे में दूसरे जरूरतमंद पेशेंट के लिए लखनऊ से कॉल आने पर वे समय पर नहीं पहुंच पाते।

एक साल से है प्रॉब्लम

एम्बुलेंस प्रोग्राम मैनेजर प्रवीण द्विवेदी ने कहा, इस प्राब्लम से सीएमओ को कई बार अवगत करा चुके हैं। वैसे तो पेशेंट को सीएचसी और पीएचसी पर ले जाते हैं, लेकिन गंभीर हालत वाले पेशेंट या घायलों को तुरंत जिला अस्पताल और बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही भेजना होता है और एम्बुलेंस की स्ट्रेचर को घंटों फंसाए रखने से प्रॉब्लम होती है।

मामला मेरे संज्ञान में आया है। इस संबंध में एसआईसी से बात की गई हैं और उनसे कहा गया है कि एंबुलेंस के स्ट्रेचर से पेशेंट्स को इमरजेंसी या वार्ड में न भेजा जाए। अस्पताल के स्ट्रेचर से ही उन्हें शिफ्ट किया जाए ताकि तत्काल एंबुलेंस सेवा समय से रवाना हो सके। मेडिकल कॉलेज में स्ट्रेचर की पर्याप्त व्यवस्था है।

डॉ। गणेश कुमार, प्रिंसिपल बीआरडी मेडिकल कॉलेज

हमारे पास स्ट्रेचर और व्हील चेयर पर्याप्त मात्रा में हैं। अगर एंबुलेंस चालक शिकायत कर रहे हैं तो गलत हैं। जैसे ही पेशेंट शिफ्ट होता है। उसके सात मिनट के अंदर एंबुलेंस को रवाना कर दिया जाता है। यदि ऐसा है तो इसकी जांच कराई जाएगी।

डॉ। जेएसपी सिंह, एसआईसी जिला अस्पताल