Twist in movement

आइए तस्वीरों में जानते हैं कि 16 महीने पुराने अन्ना के जनलोकपाल बिल के लिए हुए आंदोलन के आखिरी पड़ाव पर कैसे उसने अनशन से राजनीति का यू टर्न ले लिया। टीम अन्ना के मेंबर मनीष सिसोदिया कहते हैं कि सरकार के दादागीरी से भरे अहंकार के चलते मूवमेंट ने पॉलिटिकल टर्न लिया है पर क्या सिर्फ यही एक कारण है।

Anna takls to Arvind

ठीक नहीं हैं अरविंद कोई सकेत भी ऐसा नहीं जहां से कोई रास्ता खुलता हो क्या करूं। इस क्षण किरन बेदी के साथ अरविंद केजरीवाल का हाल पूछते अन्ना शायद यही सोच रहे हैं।

Anna thinks

कुछ करना होगा कोई तो उम्मीद की किरण दिखे जिससे आगे बढ़ा जाए।

Anna supporters

फॉलोअर्स की भीड़ कई बार जवाबदेही की मजबूरी बन जाती है। शायद यह भी एक वजह रही हो अन्ना के पॉलिटिकल पार्टी का रास्ता चुनने की, क्योंकि बिना दिशा के अपने साथ जुटी भीड़ को लंबे समय तक कंट्रोल नहीं किया जा सकता। भीड़ की एनर्जी सांत्वना भी होती है और दबाव भी।

Arvind with Anupam

अनुपम खेर की आमद और केजरीवाल से उनकी मुलाकात ही वो किरण साबित हुई जहां से अनशन को रेस्पेक्टफुली खत्म करने की उम्मीद दिखाई दी।

Anupam talks Anna

अन्ना और अनुपम की बातचीत और अनुपम द्धारा दिया गया कई सेलिब्रिटीज का रिक्वेस्ट लेटर जरिया बना और अन्ना को एक नया रास्ता मिला जिस पर चलकर वे अपनी बात या डिमांड को जस्टीफाई कर सकते हैं। सेलिब्रटीज ने दिया मामले को पॉलिटकली हैंडल करने का सजेशन और अन्ना ने उसे इंटरप्रेट किया नयी पॉलिटिकल पार्टी में टर्न करने डिसीजन के रूप में।

Anna and Arvind

हमारा मूवमेंट फिलहाल एक डेडएंड पर है और इसे रिवाइव और सर्वाइव करने के लिए जिस इंवायरामेंट की जरूरत है उसको तैयार करना होगा। उसके लिए टाइम चाहिए और चांस भी पॉलिटिकल पार्टी एक सही ऑप्शन हो सकता है उसे चेक करना ही होगा। अन्ना और अरविंद की आपसी बातचीत में शायद यही डिसाइड हुआ।

Anna, Kiran and Arvind

इस बात पर सहमति की स्टैंप लेकर आयीं किरन बेदी।

Anna and Archna

अनुपम के साथ आयी अर्चना पूरन सिंह ने कहा आगे बढ़िए अन्ना। कुछ और ना भी हो एक नयी बहस तो शुरू होगी।

No candle light now

जो रौशनी लेकर आगे बढ़े थे क्या उसके उजाले बाकी के सफर में इनका साथ देंगे यह कहना मुश्किल है पर हां फिलहाल कुछ अर्से यह माहौल देखने को नहीं मिलेगा।

Is this team Kejriwal

अरविंद, अनुपम, परमीत सेठी और कुमार विश्वास कुछ हुआ के सेटिफेक्शन से भरी ये स्माइल कब तक साथ रहेगी पता नहीं पर फिलहाल हंसना जरूरी है।

Am I right

यह सुकून टंपरेरी तो नहीं, मैंने ठीक किया ना, क्या लोग मेरे इमोशंस को समझ सकेंगे और मैंने जिन लोगों पर फेथ करके यह डिसीजन लिया वही लोग बीच रास्ते में कोई नया टर्न तो नहीं ले आयेंगे, आखिर मैंने ही तो एक बार पॉलिटिक्स को कीचड़ कहा था और उसमें जाना गंदगी को दावत देना जैसा तो नहीं हो जाएगा? डिसीजन और डेक्लेरेशन के बाद भी शायद अन्ना के मन में रहे होंगे यह सवाल।

National News inextlive from India News Desk