- दो घंटे में भूल जाते हैं फिर भी सीजीपीए में अच्छा खासा पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को भी पछाड़ा

- डीपीएस आजाद नगर में पढ़ते हैं दोनों दोस्त, रीटेनिंग की प्रॉब्लम से ओवरकम किया, अब है आसमां छूने का लक्ष्य

KANPUR: गुरुवार को सीबीएसई के रिजल्ट्स आए। जिनके बच्चों ने टॉप किया उनके पैरेंट्स को जो खुशी हुई उससे कहीं ज्यादा खुशी उन दो बच्चों के पैरेंट्स को हुई जिन्हें इस बात का भी भरोसा नहीं था कि उनका बच्चा पास हो जाएगा। अपने बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए वह खुद आगे आए और एक टीचर की भूमिका निभाई, क्योंकि कुछ कमियों की वजह से इनकी याद करने और समझने की क्षमता सामान्य स्टूडेंट्स से कम थी। मेडिकल टर्म में इसे डिसलेक्सिया कहा जाता है, लेकिन इनके साथ ऐसा नहीं है इन्हें लर्निग प्रॉब्लम है। कुछ भी याद ही नहीं रहता। डीपीएस आजाद नगर में पढ़ने वाले इन दोनों दोस्तों की सफलता की कहानी दूसरे टॉपर्स से थोड़ी अलग है। क्योंकि ये असली तारे हैं। इनकी तकलीफ को पैरेंट्स ने समय रहते समझ लिया और अपने स्नेह और मेहनत से उन्हें आगे बढ़ने का भरोसा दिया। आज इनकी नजर फलक पर है, क्योंकि छूने को अब इसके आगे सारा आसमां है

ये है राहुल- अंचित की कहानी

डीपीएस आजाद नगर में पढ़ने वाले राहुल श्रीवास्तव के पिता दीपक महोबा में एलआईसी ऑफिस में ब्रांच मैनेजर हैं। घर में मां श्रृद्धा राहुल का पूरा ख्याल रखती हैं। राहुल की प्रॉब्लम है कि वह जो पढ़ता है उसे याद नहीं रहता। स्कूल जाता था तो बैग नहीं लगा पाता था। जिस सब्जेक्ट का पीरियड होता था उसकी बुक घर पर भूल आता था। ज्यादा देर एक जगह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता था। इस वजह से कई बार उसे स्कूल में टीचर्स की डांट भी खानी पड़ी। स्कूल वालों के ही कहने पर उन्होंने बच्चे को उर्सला में दिखाया तो एक्सप‌र्ट्स ने उसका आईक्यू लेवल नार्मल बच्चों से कम बताया। कुछ ऐसी ही प्रॉब्लम विकास नगर में रहने वाले अंचित शुक्ला को भी थी। उसकी बहन तो स्कूल टॉपर थी, लेकिन वह पढ़ने में उतना अच्छा नहीं था। मां ज्योति शुक्ला ही उसे पढ़ाती हैं। उसका आईक्यू लेवल भी राहुल जैसा ही है, गुरुवार को जब 10वीं का रिजल्ट आया तो राहुल का सीजीपीए 6.6 था वहीं अंचित का 6.8 था। पढ़ने लिखने में नार्मल बच्चों से थोड़े कमजोर इन दोनों ने कई पढ़ाकू बच्चों को भी पछाड़ दिया।

डिस्लेक्सिया नहीं ये है लर्निग डिफिकल्टी

तारे जमीं पर फिल्म में मुख्य किरदार ईशान अवस्थी को डिस्लेक्सिया का शिकार बताया गया था। क्योंकि वह ठीक से कुछ लिख नहीं पाता था। उसे सब्जेक्ट से रिलेटेड चीजें आसानी से याद नहीं होती थीं। लिखने में मात्राओं की गलतियां होती थीं। वाक्य नहीं बना पाता था और उसकी राइटिंग बेहद खराब थी, लेकिन राहुल और अंचित का केस फिल्मी ईशान से थोड़ा अलग है। इन्हें प्रॉब्लम है कि सब्जेक्ट से रिलेटेड चीजें पढ़ने के थोड़ी देर बाद ही याद नहीं रहती। दो घंटे के दौरान पिछला पढ़ा हुआ सब भूल जाते हैं। दोनों ही पढ़ने में बेहद औसत हैं। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ। आराधना गुप्ता इसे डिस्लेक्सिया नहीं मानती। उनका कहना है कि यह तो एक बीमारी है, लेकिन ऐसे ही लक्षण लर्निग डिफिकल्टी से परेशान बच्चों के भी होते हैं।

इन 'तारों' को अब छूना है आसमां

अंचित के पिता देवेंद्र शुक्ला सर्जन थे, लेकिन उनकी डेथ हो गई। मां ज्योति की मेहनत है कि पढ़ाई में बेहद औसत अंचित की प्रॉब्लम को समझा और खुद उसे दूर किया। नाना एसके अवस्थी बताते हैं कि अंचित को फुटबॉल खेलना पसंद है और वह टीवी भी खूब देखता है। बहुत मिलनसार है। अंचित अब अपने पापा की तरह ही सर्जन बनना चाहता है। स्कूल में उसे कॉमर्स लेने के लिए कहा गया है, लेकिन वह साइंस ही पढ़ना चाहता है। कुछ ऐसी ही सोच राहुल की भी है। वह बड़ा होकर आईपीएस अफसर बनना चाहता है। क्रिकेट खेलना, कार्टून देखना उसे बहुत पसंद है।

बच्चों में लर्निग डिफिकल्टी को ऐसे समझें

- हर बच्चे की एज के हिसाब से वोकेब्लरी डेवलप होती है। अगर एक निश्चित उम्र में बच्चे की वोकेब्लरी कमजोर है तो उस पर ध्यान देने की जरूरत है।

- लिखते समय स्पेलिंग मिसटेक करता है। मात्राओं में गड़बड़ी होती है

- वाक्य बनाने में दिक्कत होती है

- इन बच्चों का सामाजिक व्यवहार अपेक्षाकृत अच्छा होता है

- 10-15 मिनट से ज्यादा एक जगह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता

- ऐसे बच्चों की मैथ और कम्प्यूटर नॉलेज अच्छी होती है, वैसे विशेषज्ञों के मुताबिक यह अभी प्रमाणित नहीं है

- जो याद करके जाता है, उसे कुछ ही देर में भूल जाता है।

इन्हें पढ़ाते समय इन चीजों का ध्यान रखें

- किसी विषय को हाईलाइट करके पढ़ाए

- पढ़ाते समय अलग-अलग रंगों का प्रयोग करें

- पढ़ाई में टाइम मैनेजमेंट का खास ध्यान रखें, उसी के हिसाब से पढ़ाएं

- हेडिंग और व्यावहारिक उदाहरणों के जरिए बच्चों को समझाएं

- ज्यादा लिखने की पै्रक्टिस कराएं

'जिन बच्चों का आईक्यू लेवल 80 या 90 से थोड़ा सा कम होता है, उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट देने और ज्यादा ध्यान देने से उनकी प्रॉब्लम को दूर किया जा सकता है। लर्निग डिफिकल्टी से परेशान बच्चों की साइकोलॉजिकल टेस्टिंग भी करानी चाहिए.'

- डॉ। आराधना गुप्ता, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट