कानपुर (ब्यूरो)। बीते एक सप्ताह में सिटी में कम उम्र के यूथ के सुसाइड के दो मामले सामने आए है। दोनों मामलों में जिंदगी खत्म करने की वजहों का पता नहीं चल सका है। न तो कारण फैमिली मेंबर बता सके और न ही पुलिस पता लगा सकी। चुन्नीगंज स्थित मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र के मनोवैज्ञानिक बीते सालों में आए केसेस के आधार पर इसे अकेलापन का शिकार मान रहे है। मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ। नरेश चंद्र गंगवार का कहना है कि आजकल के बच्चे अपने मां पिता और फैमिली मेंबर्स को पराया मान रहे है वह उनसे अपनी कोई समस्या शेयर नहीं करना चाहते है। यहीं वजह डिप्रेशन का कारण बनती है और बच्चे सुसाइड जैसे आत्मघाती कदम उठा रहे है। उन्होंने बताया कि बीते एक साल में 20 से ज्यादा परेशान बच्चे सेंटर में काउंसिलिंग के लिए आ चुके है

जहां मात पिता दोनो वर्किंग
डॉ। नरेश चंद्र ने बताया कि अकेले रहने वाले बच्चे इंपल्सिव मूमेंट में आकर चिड़चिड़े हो रहे है। वह अपने मां पिता को पराया मान रहे है। यह समस्या उन परिवारों में ज्यादा है जहां पर मां पिता दोनों नौकरी करते है या फिर जहां मां पिता एक दोस्त की तरह बच्चों से बात नहीं करते है। ऐसे में अकेलेपन की वजह से बच्चे उद्दंड भी हो रहे है, जिससे वह फैमिली मेंबर्स से मिसबिहेव भी करते है। कुछ मामलों में बच्चों को लगता है कि परिवार के लोग उनकी केयर नहीं करते है।

दोस्तों से शेयर कर रहे प्रॉब्लम
मनोविज्ञान केंद्र में बीते सालों में कुछ ऐसे मामले भी आए है, जिनमें बच्चे अपनी प्रॉब्लम्स फैमिली के बजाय दोस्तों से शेयर कर रहे है। इस मामले में सामने आता है कि फैमिली मेंबर बच्चों को समय नहीं देते या फिर बच्चे अपनी प्रॉब्लम उनसे बताने में इनसिक्योर फील करते है।

ओसीडी के शिकार हो रहे
मनोवैज्ञानिक संध्या शुक्ला ने बताया कि कुछ लोग आफसेसिव कंपल्सिव डिसाआर्डर (ओसीडी) के शिकार हो रहे है। यह ऐसी बीमारी है, जिसमें दिमाग में खुद से विचार आते है। अगर वह काम वहीं करो तो हेजिटेशन होता है। वहीं कुछ मामले ऐसे भी सामने आ रहे है, जिनमें पास्ट की किसी बात को लेकर इंसान परेशान रहता है। सभी मामलों में काउंसिलिंग करके पेशेंट को सामान्य स्थिति में लाया जाता है।

मनोवैज्ञानिकों की सलाह
- पेरेंट्स बच्चों से दोस्तों की तरह करें बात।
- अपने विचारों को न थोपें, उनकी बात भी सुनें।
- हर समय डांट फटकार न लगाएं। उत्साहï भी बढ़ाएं
- प्रतिदिन कुछ समय साथ में बैठकर बातचीत करें
- मुमकिन हो तो एक वक्त साथ में खाना जरूर खाएं।
- बच्चों के दोस्तों की सोसाएटी पर नजर बनाए रखें।
- मोबाइल के अलावा बच्चों को आउटडोर गेम्स खिलाएं।
- लड़का और लड़की में भेद न करें, उनको बराबरी का प्यार दें।
- बच्चों को कोई कठिन टास्क न दें, जिससे वह परेशान हो।

फ्री में करा सकते काउंसिलिंग
यदि आप किसी मेंटल प्राब्लम से परेशान है तो चुन्नीगंज स्थित मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र में फ्री में अपनी काउंसिलिंग करा सकते है। यहां पर मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ। नरेश चंद्र गंगवार और मनोवैज्ञानिक संध्या शुक्ला आपकी समस्या सुलझाने के लिए मौजूद है। आने का समय वर्किंग डेज में सुबह 10 से शाम 4 बजे तक है।

केस स्टडी
केस 01 - 10वीं की एक स्टूडेट को लगता है कि परिवार वाले उसकी केयर नहीं करते, उस पर पैसा खर्च नहीं करते है। वह अपनी प्राब्लम अपनी एक फ्रेंड से शेयर करती है। वह उद्दंड भी हो गई है। उसको लगता है कि मां उसके भाई को ज्यादा प्यार करती है। इस मामले में पिता अपनी पुत्री को लेकर आए थे।
केस 02 - मां पिता दोनों सरकारी टीचर है। फैमिली में मां पिता के अलावा दो बेटी और एक बेटा है। मां पिता के पूरे दिन बिजी रहने के कारण बड़ी बेटी को लगता है कि मां पिता उसको प्यार नहीं करते। वह गुमसुम सी रहती है।
केस 03 - 12वीं पास करने के बाद एक स्टूडेंट अपने करियर को लेकर परेशान है। उसको लगता है कि अगर उसने सही करियर का सिलेक्शन नहीं किया तो उसकी लाइफ बर्बाद हो जाएगी। इस प्रॉब्लम को लेकर वह परेशान है। मां और पिता बच्चे को लेकर काउंसिलिंग के लिए सेंटर पर आए।