कानपुर (ब्यूरो)। हटिया खुली बजाजा बंद, झाड़े रहो कलेक्टर गंज अगर कोई ठेठ कनपुरिया है तो इस लाइन से जरूर वाकिफ होगा। कलेक्टर शहर के सबसे बड़े अधिकारी का एक पद है, जिसको आज के समय में डीएम(डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) के नाम से जाना जाता है। अब सवाल है कि शहर के बीचो बीच स्थित कलेक्टर गंज का यह नाम कैसे पड़ा। डीएवी कॉलेज के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के रिटायर्ड एचओडी डॉ। समर बहादुर सिंह बताते हैैं कि इस जगह को कानपुर के पहले कलेक्टर अब्राहम वेलांड ने बसाया था। वो भी यहीं पर रहा करते थे। यही वजह है कि इस जगह का नाम कलेक्टर गंज पड़ गया। उस स्थान पर जूही की रानी कुंवर का तालाब था, जिस जमीन को सुखाकर वहां बाजार लगवाई गई। शुरुआत में वहां पर गल्लामंडी लगी जो कि अभी तक लग रही है।

अंग्रेजों ने तैयार किए थे आढ़ती
प्रो। समर बहादुर बताते हैैं कि मंडी उस समय एक नया कांसेप्ट था। मंडी के लिए अंग्रेजों ने एक नया दलाल पूंजीपति वर्ग तैयार किया, जिसे आढ़ती कहा जाता था। आढ़तिया को कुछ नहीं करना होता था। वह केवल जमीन मुहैया कराता था, जहां पर लोग अपना माल बेचने और खरीदने वाले आ सकें। इस मंडी में अनाज सस्ता मिलता था। आज भी यहां आसपास के कई जिलों से व्यापारी खरीददारी करने आते हैं।

ऐसे पड़ा झाड़े रहो कलेक्टर गंज
मंडी में बिक्री के समय अनाज साफ करने के लिए छन्ना लगाया जाता था। छन्ने से जो अनाज नीचे गिरता था उसको जरूरतमंद और लाचार लोग बाजार बंद होने पर बटोरकर ले जाते थे। उसी अनाज से उनका घर चलता था। बताया जाता है कि एक दिन सामान बटोरने वाले लोग शाम होने और सन्नाटा होने का इंतजार कर रहे थे, तभी एक पान वाले ने झाड़े रहो कलेक्टर गंज की आवाज लगा दी। उसी दिन से यह लाइन मशहूर हो गई।

अब ऐसा है माहौल
अंग्रेजों के समय से लग रही गल्लामंडी आज भी यहां लग रही है। इसके अलावा अब यहां पर गल्ले के साथ साथ अन्य चीजों की दुकानें भी लगने लगी हैैं। लेकिन अभी भी शहर के बड़े गल्ला आढ़ती यहां पर अपना ठिकाना बनाए हुए हैैं। हालांकि आढ़तियों ने अपना स्वरूप अब बिजनेसमैन के रूप मेें बदल लिया है। लेकिन आज भी दिन से लेकर रात आठ बजे तक कलेक्टर गंज की सडक़ों से निकलना दूभर रहता हैैं। यहां व्यापारिक गतिविधियों के कारण खासा जाम लगता है।