कानपुर (दिव्यांश सिंह)। हिंदी मीडियम से 10वीं और 12वीं पास करने वालों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग का राह कठिन है। इस साल नीट और जेईई एडवांस्ड के रिजल्ट मेेें सिटी टॉपर और पास होने वाले स्टूडेेंट्स की संख्या की बात करें तो मैक्सिमम स्टूडेंट सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड से पास होने वाले हैैं। यूपी बोर्ड और हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स इन एग्जाम्स में कुछ खास परफार्मेंस नहीं दे पा रहे हैैं। हालांकि हिंदी मीडियम से पढक़र पास होने वालों की संख्या शून्य नही है। कुछ होनहार ऐसे भी हैैं, जिन्होंने यूपी बोर्ड और हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके अच्छे नंबर पाए और एग्जाम को पास किया है।

कोचिंग संस्थानों में अंग्रेजी वालों का दबदबा
कानपुर में काकादेव एक ऐसा इलाका है, जिसको कोचिंग मंडी के नाम से जाना जाता है। पड़ताल के दौरान पता चला कि कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में अंग्रेजी की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा होने की वजह से दबदबा है। क्लासेज तो दोनों मीडियम में मिक्स चलती हैैं लेकिन स्टडी कंटेंट को मैक्सिमम इंग्लिश में ही पढ़ाया जाता है। हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को टीचर हिंदी भाषा में समझाते हैं लेकिन वह नाकाफी होता है। हालांकि एक से दो कोचिंग वाले हिंदी और अंग्रेजी के अलग अलग बैच चला रहे हैैं। सबसे बड़ी बात यह है कि एग्जाम प्रीपरेशन की बेस्ट बुक्स अंग्रेजी में ही आती है।

इंग्लिश में ही होती है इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई
हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स ने अगर किसी तरह से एंट्रेंस को पास कर लिया तब भी बेड़ा पार नहीं होता है। असली लड़ाई तो कॉलेज में एडमिशन के बाद स्टार्ट होती है। आईआईटी, एचबीटीयू और सीएसजेएमयू समेत इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्टडी इंग्लिश में ही होती है। हिंदी मीडियम वालों को उस दौरान भी परेशानी होती है। कई स्टूडेंट तो डिप्रेशन में चले जाते हैैं या फिर स्टडी को छोड़ देते हैैं।

प्लेसमेंट में कंपनीज भी इंग्लिश में ही लेती हैैं इंटरव्यू
इंजीनियरिंग कॉलेजों में स्टडी के बाद प्लेसमेंट के लिए आने वाली कंपनियां भी इंग्लिश में ही बात करती हैैं। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वालों को मोटे पैकेज पर सिलेक्ट किया जाता है। कोर्स को पूरा करके प्लेसमेंट तक पहुंचने तक हिंदी मीडियम वालों का संघर्ष जारी रहता है।

इंप्रूव कर लेते हैैं अंग्रेजी
सीएसजेएमयू के मीडिया प्रभारी डॉ। विशाल शर्मा का कहना है कि हिंदी मीडियम वालों को परेशानी जरुर होती है लेकिन कुछ स्टूडेंट अपनी अंग्रेजी को समय निकालकर इंप्रूव भी कर लेते हैैं। इंप्रूव करने वालों की अंग्रेजी ऐसी होती है कि वह अंग्रेजी मीडियम वाले को भी पीछे छोड़ देते हैैं।

छोड़ दिया इंजीनियरिंग और मेडिकल की स्टडी का ड्रीम
स्टोरी कवर करते समय काकादेव में हमारी मुलाकात कल्याणपुर के रहने वाले एक स्टूडेंट्स से हुई। उसने जवाहर लाल नेहरु इंटर कॉलेज से 80 परसेंट माक्र्स के साथ 2023 में 12वीं को पास किया है। आईआईटी से बीटेक करने का सपना आंखों में लिए काकादेव की एक कोचिंग में एडमिशन लिया। एक महीने पढ़ाई के बाद उसको लगा कि अंग्रेजी भाषा में उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। स्टडी के प्रेशर की वजह से तबीयत भी बिगडऩे लगी है। वहीं फर्रुखाबाद की रहने वाली एक स्टूडेंट एक नीट की तैयारी कराने वाली कोचिंग के बाहर मिली। चेहरे से परेशान पर हमने जब परेशानी पूछी तो बताया कि यूपी बोर्ड से 84 परसेंट माक्र्स के साथ 12वीं को पास किया है। 45 दिन से नीट की कोचिंग पढ़ रही हूं लेकिन कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। दोनों स्टूडेंट्स कोचिंग से फी रिफंड पाने के लिए चक्कर काट रहे हैैं।

इन्होंने हिंदी मीडियम से पास किया एग्जाम
अंग्रेजी मीडियम वालों के झंडे गाडऩे के बाद भी हिंदी मीडियम वालों ने अपना स्थान बनाया है। नीट के रिजल्ट में 99.51 परसेंटाइल माक्र्स पाने वाली जुबैदा फातिमा ने हलीम मुस्लिम इंटर कॉलेज से हिंदी मीडियम की पढ़ाई करके 12वीं को पास किया है। वहीं चाचा नेहरु स्मारक इंटर कॉलेज से 12वीं पास करने वाले रौनक आनंद ने जेईई एडवांस्ड में 11535 रैैंक लाकर आईआईटी में एडमिशन की दावेदारी को पक्का किया है। इन दोनों के अलावा कई स्टूडेंट्स ऐसे हैैं, जिन्होंने नीट और जेईई एडवांस्ड को पास किया है।


बोले एक्सपर्ट

हिंदी मीडियम वालों में कांफीडेंस की कमी होती है। इसके अलावा कोचिंग क्लास में भी अंग्रेजी मीडियम वाले स्टूडेंट्स ज्यादा होते हैैं। इसके अलावा इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई भी अंग्रेजी में ही होती है। ऐसे में हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाई छोडऩी नहीं चाहिए। इसके अलावा 10वीं से ही अंग्रेजी को भी मजबूत करना चाहिए।
मनीष रिछारिया, टीचर

इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है। इस वजह से कोचिंग वाले अंग्रेजी को वरीयता देते और कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की बुक भी अंग्रेजी में ही आती हैैं। अगर किसी तरह एंट्रेंस पास करके एडमिशन मिल भी गया तो पहले सेमेस्टर से ही दिक्कते स्टार्ट हो जाती हैैं।
मनोज पांडेय, टीचर

इंजीनियरिंग का पढ़ाई मोड इंग्लिश है। वहीं विदेशों से आने वाली किताबें भी इंग्लिश में ही आती हैं। इसलिए इंग्लिश की नॉलेज होना तो जरुरी है। इसके अलावा क्लासेज तो मिलीजुली लैैंग्वेज मेें चलती हैैं। बाकी हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को अगर कोई संशय होता है तो एक्स्ट्रा क्लास देकर प्राब्लम्स सॉल्व की जाती हैैं।
डॉ। बृष्टि मित्रा, डायरेक्टर, यूआईईटी सीएसजेएमयू


सबसे पहली बात तो यह है कि हिंदी मीडियम वाले अंग्रेजी का यूज करने में हिचकिचाएं नहीं। एआईसीटीई ने इंजीनियरिंग की हिंदी बुक्स के आने की शुरुआत कर दी है। इसके अलावा कोर्सेज को भी रीजनल लैैंग्वेज में डिजाइन किया जाना चाहिए। एग्जाम की तैयारी करते समय हिंदी के शब्दों के अंग्रेजी मायनों को भी जाने। हिंदी मीडियम की पढ़ाई कहीं से कमजोर नहीं होती है, आपको सिर्फ अपने अंदर के डर को कम करना है।
कृतिका मिश्रा, यूपीएससी एआईआर 66वीं रैैंक और हिंदी मीडियम से टॉपर