अगर बेटे की उंगली पकडक़र उसे चलना सिखाना पिता की जिंदगी का सबसे खुशी का मौका होता है तो बूढ़े बाप के कंधे को जब सहारे की जरूरत पड़ती है तो बेटा पीछे क्यों हट जाता हैफादर्स डे के मौके पर आईनेक्स्ट टीम ने जाना ऐसे ही कुछ बांगबां का दर्द जो अपने चमन से दूर किए जाने पर भी शिकायत नहीं करते, जिनकी जुबां पर आज भी अपनी औलाद के लिए सिर्फ दुआएं है

जगह: स्वराज वृद्ध आश्रम, पनकी

टाइम: चार बजकर दो मिनट

मुझे अपनों ने लूटा

 आश्रम में घुसते ही एक जगह उदास बैठे दिखे 76 साल के ओम प्रकाश कत्याल को देखकर साफ लग रहा था कि जिंदगी कितनी कठिन है। ओम प्रकाश का हाल जानकर आंखें नम हो गईं। ओम प्रकाश के दो बेटे हैं पर उनको अपने बेटों का नाम ही नहीं याद है। रिपोर्टर ने एक बार नहीं कई बार उनसे बेटों का नाम पूछा पर हर बार उन्होंने काफी सोचने के बाद यही कहा कि मुझे बेटों का नाम याद नहीं आ रहा है। ओम प्रकाश का लेदर का बड़ा कारोबार था। पैसे की कोई कमी नहीं थी। पर बेटों ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा और जिंदगी के इस मोड़ पर लाकर छोड़ दिया कि वो अब सिर्फ जी रहे हैं। वो कहते हैं कि बेटों ने भतीजों के साथ मिलकर सबकुछ अपने नाम कर लिया और वो टहलते-टहलते कानपुर पहुंच गए। यहां कई टेनरी वाले उनको जानते थे। उन्होंने कहा कि आप यहीं रहिए पर वो नहीं माने और वृद्ध आश्रम आ गए। उनसे जब रिपोर्टर ने फादर्स डे के बारे में पूछा तो वो बिना कुछ बोले वहां चले गए। उनके साथ-साथ रिपोर्टर भी पीछे-पीछे चला तो वो बोले बेटा बस अब मत कुछ पूछो। इसके बाद न कुछ पूछने की गुंजाइश थी न बताने की

जगह: स्वराज वृद्धा आश्रम, पनकी

टाइम: चार बजकर बीस मिनट

 मैं उलझाव नहीं चाहता

रिपोर्टर वृद्ध आश्रम से निकल रही रहा था कि तभी एक किनारे बैठे 79 साल के गणेश कुमार पर उसकी नजर पड़ गई। रिटायर्ड टीचर गणेश कुमार के दो लडक़े हैं। पर उन्होंने उनको जो गम दिया वो शायद कोई और नहीं दे सकता है। वैसे तो उनको अपने बेटों से कोई शिकायत नहीं है पर वो कहते हैं कि मैं कोई उलझाव नहीं चाहता इसलिए यहां चला आया। यशोदा नगर के रहने वाले गणेश कुमार का एक बेटा राजेन्द्र प्रसाद बाजपेई संयुक्त शिक्षा निदेशक ऑफिस में एकाउंट ऑफिसर है। ये नहीं दूसरा बेटा दिनेश कुमार भी टेलीफोन एक्सचेंज में एकाउंट ऑफिसर है। सब संपन्न हैं लेकिन फिर भी गणेश कुमार अपनी जिंदगी का वो लम्हा वृद्धा आश्रम में काट रहे हैं जब उनको अपनों का सहारा चाहिए। वो कहते हैं कि उनसे मिलने कोई नहीं आता है। फिर चाहें फादर्स डे हो या फिर कोई और डे। बस इसके बाद वो कुछ नहीं बोले।

इनके पास भी हैं कई गम

कोलकाता के रहने वाले आईआईटी के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ। डीके घोष ने अपने रिलेटिव्स का हाल देखकर शादी नहीं की। वो कहते हैं कि अगर शादी कर लेता तो सब कहते कि अपना वारिस लाओ। जब वो आ जाता, तब भी मुझे यहीं रहना पड़ता तो इसलिए यही अच्छा है कि मैंने शादी नहीं की। क्योंकि जब वो मुझको घर से निकालकर यहां रहने के लिए छोड़ जाता तो मुझे फादर्स डे क्या किसी भी दिन चैन नहीं पड़ता। डॉ। घोष अमेरिका, फ्रांस, ऑस्टे्रलिया समेत कई देशों में पढ़ा चुके हैं। वो बहुत बढिय़ा तबला वादक भी हैं। वो कहते हैं कि जितने रिलेटिव्स थे सबको बुढ़ापे में उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया। मुझे बहुत डर लगा मैं सहम गया। मैंने प्रण कर लिया कि शादी नहीं करूंगा। आज वृद्ध आश्रम में जीवन के बचे पल काट रहा हूं। मुझे उतना गम नहीं है, जितना उनको है, जिनके अपनों ने उनको घर से बाहर निकाल दिया।

जगह: स्वराज वृद्ध आश्रम, पनकी

टाइम: तीन बजकर चालीस मिनट

वृद्ध आश्रम के ड्राइंग रूम में पड़े सोफे पर बैठे 83 साल के शिवराज सिंह के चेहरे को देखकर रिपोर्टर को लगा कि उनके दिल में एक बहुत बड़ा दर्द छिपा है। रिपोर्टर जब उनके करीब पहुंचा तो मालूम चला कि हर साल फॉदर्स डे पर वो अपने बेटे का कुछ इसी अंदाज में इंतजार करते हैं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इनके बेटे बीएसएनएल में जीएम हैं। रायबरेली के रहने वाले शिवराज बताते हैं कि बेटे की बहुत याद आती है पर उसको मेरी याद नहीं आती है। वो कहते हैं जो कुछ था वो बेटे को दे दिया और फिर यहां पहुंच गया। शिवराज बताते हैं कि करीब 22 सालों से वो अपनों से दूर हैं पर कभी किसी ने कोई सुध नहीं ली। वो कहते हैं कि दिन भर आश्रम में लेटे-लेटे ईश्वर से यही कहता हूं कि जिस जिगर के टुकड़े के गिरने पर रातों की नींद चली जाती थी, आज वो ही मेरे पास नहीं है। वो कहते हैं कि मैं रोता रहता हूं पर मेरा बेटा मुझसे बात तक नहीं करता है। ये तो भला हो वृद्ध आश्रम का जिन्होंने मेरी जिंदगी बचा ली। अब तो ये इन्हीं की देन है। इतना ही नहीं, जब रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि आप बेटे को कितना मिस करते हैं तो उनकी आंखें नम हो गईं।

हद कर दी जिगर के टुकड़े ने

एक बार टीवी के एक प्रोग्राम में  शिवराज सिंह के बेटे शिव शंकर सचान पहुंचे थे जब उनके पिता के बारे में पूछा गया तो वो कुछ नहीं बोले। टीवी एंकर से बोले की छोडि़ए दूसरी बात पूछिए। जब एंकर नहीं माना और कहीं से पता करके जब उनके बेटे को फोन मिला दिया तो भी बेटे ने पिता से बात नहीं की और फोन काट दिया। जब बेटे ने दिल पर इतनी बड़ी चोट दी तो उनका हाल बेहाल हो गया। कई दिनों तक वो उस लम्हे को भूल नहीं पाए। वो कहते हैं कि कोई बात नहीं पर मुझको लगता है कि अगर मेरा बेटा मेरे साथ होता तो शायद जिंदगी के कुछ पल हंसकर जी लेता। अब तो बस जिंदगी काट रहा हूं। वो कहते हैं कि हर दिन बस कैसे जी रहा हूं ये तो मेरा दिल ही जानता है। वो कहते हैं कि वृद्ध आश्रम आकर जी तो रहा हूं पर मेरी जिंदगी है मेरा बेटा। पता नहीं मुझसे ऐसा क्या हो गया कि उसने मुझे छोड़ दिया। हर सावन पर जब कोई झूला झूलते हुए दिखाई देता है तो मुझे अपने बेटे की याद आ जाती है। जब मैं उसको बचपन में झूला झुलाया करता था और जब पेंग लंबी हो जाती थी तो वो जोर-जोर से चिल्लाने लगता था। खैर मैं उसको समझाता था कि बेटा डरो नहीं मैं हूं न। पर आज उसने मुझको ही डरा दिया। अपनी जिंदगी की ऐसी की कई कहानियां बताते हुए उनकी आंखें नम हो गईं और वो उठ कर चले गए। खैर रिपोर्टर भी उनसे कुछ पूछने लायक नहीं बचा। पर एक बागवां को आज भी इंतजार है अपने खिलखिलाते ‘फूल’ का। जो आकर उसको गले से लगा ले।