कानपुर (अमित गुप्ता) सैटरडे को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम गोविंद नगर पहुंची, जहां दुकानों में खुलेआम प्लास्टिक चम्मच, स्ट्रा से लेकर अन्य प्लास्टिक के सामान बेचा जा रहा है। चावला मार्केट में शिकंजी की दुकानों में स्ट्रा और जूस की दूकानों में मैंगो शेक के लिए प्लास्टिक के चम्मच, ग्लास और स्ट्रा व नारियल पानी के साथ स्ट्रा का इस्तेमाल हो रहा है। दुकानदार से पूछने पर बताया कि पता चला है कि प्लास्टिक का सामान बंद हो गया है, लेकिन अब तक किसी ने इस्तेमाल करने से रोका नहीं है। इतना ही नहीं, रामबाग, पांडु नगर, शास्त्री नगर समेत अन्य कई दुकानों में ईयर बड्स भी आसानी से मिल रहे हैं। दवाइयों की दुकानों में इसे बकायदा काउंटर में सजा कर रखा गया है। ऐसे में सवाल है कि जब इन सभी चीजों को बैन कर दिया गया है तो नगर निगम का ध्यान सिर्फ पॉलीथिन की तरफ ही क्यों है।

ऐसे करें बैन प्लास्टिक की पहचान
नगर निगम प्रवर्तन दल के अधिकारी कर्नल आलोक नरायण ने बताया कि चेकिंग के दौरान माइक्रोन को चेक करने के लिए टीम के पास माइक्रोमीटर होता है। जिससे प्लास्टिक की मोटाई के बारे में पता चलता है। बावजूद इसके कई दुकानदार बहसबाजी पर उतारू हो जाते हैं। आसान भाषा में कहें तो मार्केट में जितनी भी थैली लूज मिलती है, वह सारी ही एनजीटी की बैन की सीमा में आती है। अगर थैली उंगली के जोर लगाने पर आराम से फट जाए तो समझ जाना चाहिए कि यह बैन है। बैन की सीमा के बाहर सिर्फ वहीं पॉलिथीन हैं, जिनका इस्तेमाल बड़ी कंपनियां अपने प्रॉडक्ट्स को पैक करने के लिए करती हैं।

इन जगहों पर बैन प्लास्टिक का यूज
- शिकंजी व जूस की दुकान
- मेडिकल स्टोर
- आइसक्रीम की दुकानों पर
- नारियल पानी की दुकानों में

इन पर लगा है बैन
प्लास्टिक की डंडियों वाले ईयर बड, बलून स्टिक, लॉलीपॉप की डंडी, थर्माकोल के सजावटी सामान, प्लेट्स, कप, गिलास, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पॉलीथिन, प्लास्टिक के झंडे, सिगरेट के पैकेट में यूज होनी वाली पन्नी, पीवीसी बैनर, आइसक्रीम की डंडी, शादी कार्ड में यूज होने वाली सीट समेत आदि शामिल है।

हमारी बात भी सुनिए
अगर प्लास्टिक को पूरी तरह से बैन कर दिया जाए तो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा, लेकिन अफसरों की ढिलाई के चलते अभी भी मार्केटों में धड़ल्ले से बिक रही है।
सुशील

बिना कोई खास प्लानिंग किए ही एक जुलाई से प्लास्टिक को बैन कर दिया गया है, जिस वजह से आज भी दुकानों और ठेलों पर पॉलीथिन का मिलना आम बात है।
सुनील

(कानपुर कालिंग)
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