ओलंपिक इतिहास में ये पहली बार है जब किसी भारतीय महिला पहलवान को अपनी ताकत की आज़माइश का मौका मिला है। गीता का मुकाबला भारतीय समयानुसार शाम छह बजकर 12 मिनट पर शुरू होना है। इस वर्ग के सभी मुकाबले आज ही होंगे। एक के बाद एक राउंड जीतकर खिलाड़ी अंतिम मुकाबले तक पहुंचेंगे।

ख़ून में है कुश्ती

गीता एक ऐसे परिवार से हैं जिसके ख़ून में ही कुश्ती है। पिता अखाड़े में सैंकड़ों दंगल लड़ चुके हैं। छोटी बहन बबीता भी पिछले दो साल से अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। बाकी तीन मौसेरी और चचेरी बहन भी कुश्ती लड़ती हैं।

गीता की बदौलत चरखी दादरी के पास उनके गांव बलाली का काफी नाम ऊंचा हुआ है। यहां तक कि लोग अब इस गांव को महिला पहलवानों के परिवार के नाम से पहचानने लगे हैं।

2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में गीता ने पहली बार महिला कुश्ती में गोल्ड मेडल प्राप्त किया हालांकि उनके पिता के लिए वह ऐतिहासिक पदक बेमानी है। गीता के पिता की नज़र में मेडल सिर्फ ओलंपिक का ही होता है।

बड़ी हैं चुनौतियां

कुछ समय पहले बीबीसी से हुई बातचीत में गीता ने कहा था, “पापा ने हमें बेटों की तरह पाला है। उन्होंने हमेशा हमें यही कहा कि तुम सिर्फ मेहनत करो। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी। अगर इसके लिए मुझे अपने शरीर का हिस्सा भी बेचना पड़े तो मैं वह भी कर दूंगा। मुझे और मेरी बहन को घर का कोई काम नहीं करना पड़ता था। पापा कहते कि इन्हें आराम की जरूरत है। सारा भार मां ने ही उठाया है.”

लेकिन गीता से सभी को जितनी उम्मीदें हैं उनके सामने उतनी ही चुनौतियां भी। माना जा रहा है कि 55 किलोग्राम के महिला वर्ग मुकाबले में अगर वो पहले आठ में जगह बना पाईं तभी आगे का रास्ता आसान होगा।

उनकी तैयारी को लेकर महिला खिलाड़ियों के मुख्य कोच ओपी यादव का कहना है, ''गीता का प्रदर्शन अच्छा हो सकता है और मुमकिन है कि वो सबको हैरान कर दें.'' गीता का मानना है कि लंदन मुकाबले में जापानी पहलवान सबसे बड़ी चुनौती होंगी।

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