स्क्वेअर किलोमीटर ऐरे या एसकेए नाम की संस्था के सदस्य देशों ने ये फैसला शुक्रवार को एक बैठक के दौरान लिया। एसकेए के मैदान पर डेढ़ अरब यूरो की लागत वाले एंटिना खगोलीय गतिविधियों की जानकारी के लिए अंतरिक्ष की छानबीन करेगी।

इस जांच में पता लगाने की कोशिश की जाएगी की क्या पृथ्वी के अलावा और भी कोई ग्रह है जहां जीव बसते है। साथ ही इस शोध में सृष्टि की संरचना और वैज्ञानिक आइंसटाइन की गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से संबंधित जानकारी जुटाने की कोशिश की जाएगी।

इस परियोजना में एक रेडियो दूरबीन बनाई जानी है जो दस लाख वर्ग मीटर के भूमिभाग में फैली हो। इतनी बड़ी जमीन में फुटबल के करीब दो सौ मैदान समा सकते है। ऐसा कर पाने के लिए वैज्ञानिकों को हजारों किलोमीटरों में फैले छोटे–बड़े एंटिनाओं को एक-दूसरे से जोड़ना पड़ेगा।

भागीदारी

इस परियोजना के लिए दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड ने अलग-अलग बोलियां लगाई थी और शुरूआती दौर में लग रहा था कि विजेता एक ही होगा। लेकिन एसकेए ने दोनों प्रस्तावों को साथ में लेकर परियोजना पर काम करने का फैसला लिया।

एक पत्रकार वार्ता में एसकेए के अध्यक्ष प्रोफेसर जॉन वोमर्सले ने कहा, “हमने दोनों प्रस्तावों को साथ लेकर काम करने का फैसला किया है.” एसकेए धरती के पास के आकाशगंगा के नक्शे तैयार करेगा। उम्मीद की जा रही है कि इस नक्शे से रहस्यमयी ‘डार्क एनर्जी’ के बारे में कई अहम जानकारियां सामने आएंगी।

दूरबीन ये भी पता लगाएगी कि तारे और आकाशगंगा के निर्माण में चुंबकीय क्षेत्र का कितना योगदान होता है। खगोलविदों का मानना है कि इसके जरिए गुरूत्वाकर्षण सिद्धांत के बारे में और पुख्ता जानकारी हासिल की जा सकती है।

अलग-अलग विशेषताएं

ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका ने एसकेए के फैसले से पहले ही शोधस्थल का निर्माणकार्य शुरू करवा दिया था। ऑस्ट्रेलिया ने परियोजना का नाम एएसकेएपी दिया तो दक्षिण अफ्रीका ने अपनी परियोजना का नाम मीरकैट रखा।

अब इन दोनों को मिलाकर एक संयुक्त नेटवर्क बनाने की कोशिश की जाएगी। सिडनी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर ब्रायन गेंस्लर ने कहा, “एसकेए अपनी परियोजना में अलग-अलग तकनीकों को अलग-अलग जगहों पर स्थापित कर रहा है। ताकि हर जगह के खुद की विशेषता का भरपूर प्रयोग किया जा सके.”

एसकेए के सदस्य देशों में ब्रिटेन, नीदरलैंड, इटली, चीन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका शामिल है, जबकि भारत को सह-सदस्य का दर्जा हासिल है। माना जा रहा है कि इस परियोजना से सभी सदस्यों को बड़ा ऑद्योगिक फायदा मिलेगा।

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