कानपुर(ब्यूरो)। आपके होने वाले बच्चे को थैलेसीमिया तो नहीं है, इसका पता मां के गर्भ में चल जाएगा। इतना ही नहीं, बच्चे के जन्म लेने से पहले आप उसका ट्रीटमेंट भी करा पाएंगे। दरअसल, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गायनिक डिपार्टमेंट में जल्द ही मां के गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच के लिए हाई परफार्मेस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी 'एचपीएलसी लगाई जाएगी। इसकी मदद से गर्भ के दौरान ही शुरुआती तीन महीने के अंदर जांच कर पता लगाया जा सकेगा कि गर्भ में पल रहा बच्चे को कहीं थैलेसीमिया तो नहीं है। मशीन के लिए एनएचएम ने डिपार्टमेंट को 18 लाख रुपए का बजट पास किया है।

खून की हो जाती है कमी
थैलेसीमिया बच्चा को माता-पिता से जेनेटिक कारणों से मिलने वाला ब्लड डिसऑर्डर है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया बाधित होती है। जिसके कारण एनीमिया के लक्षण दिखाई देते है लेकिन थैलेसीमिया में खून की काफी कमी होने पर बच्चे को बार-बार खून की जरूरत पड़ती है। तब इसका असर मां पर भी दिखाई देने लगता है। वहीं, कई कार बच्चे की जान पर भी बन आती है। अब इसकी जांच आसानी से जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के जच्चा बच्चा डिपार्टमेंट में हो सकेगी।


इस वजह से होती है यह बीमारी
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रो। ऊरुज जहां ने बताया कि थैलेसीमिया ब्लड से जुड़ी एक जेनेटिक बीमारी है। सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में आरबीसी यानी लाल रक्त कणों की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है। थैलेसीमिया बीमारी में यह आरबीसी तेजी से नष्ट होने लगते हैं। नई कोशिकाएं नहीं बन पाती हंै। लाल रक्त कणों की औसतन आयु 120 दिन होती है। जोकि इस बीमारी में घटकर करीब 10 से 25 दिन ही रह जाती है। इसके कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है।


पैरेंट्स में एक को माइनर तो खतरा नहीं
मेडिकल कॉलेज के जच्चा बच्चा डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट के मुताबिक, थैलेसीमिया दो प्रकार के होते हैं। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है। जो काफी घातक होता है लेकिन माता-पिता में एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता है। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है। तो भी बच्चे को यह रोग होने के 25 परसेंट चांसेज हो जाते हैं।