आखिर कानपुर का कोई बैडमिंटन प्लेयर नेशनल लेवल पर चमक क्यों नहीं बिखेर सका है? पुलेला गोपीचंद, साइना नेहवाल, अश्विनी पोनप्पा, पीवी सिंधु जैसे प्लेयर हमारे शहर की विरासत क्यों नहीं हैं? थर्सडे को बैडमिंटन सनसनी ज्वाला गïट्टा जब कानपुर आईं तो यह सवाल जहन में उठना लाजमी था। पढि़ए शहर की खस्ताहाल स्पोट्र्स फैसिलिटीज पर आई नेक्स्ट की मुहिम की पहली कड़ी में बैडमिंटन की कमियों को उजागर करती यह खास रिपोर्ट -
सुबह पांच बजे उठना। ग्रीन पार्क के चक्कर लगाना। टफ एकेडमिक सेशन अटेंड करना और फिर ग्रीन पार्क के इनडोर बैडमिंटन हॉल में घंटों बैडमिंटन की प्रैक्टिस सर्दी हो या गर्मी जी-तोड़ मेहनत का ये सिलसिला तमाम खिलाडिय़ों के लिए कई सालों से लगातार जारी है। हालांकि, जबरदस्त फाइनेंशियल क्राइसिस और सुविधाओं की कमी के बावजूद हौसला डिगा नहीं है। वो भी तब जब ग्रीन पार्क में बैडमिंटन सीखने वाले बच्चों के लिए सुविधाओं की जबर्दस्त क्राइसिस है। शायद स्टेट बैडमिंटन एसोसिएशन भी यह भूल चुकी है कि यूपी में कानपुर शहर है और यहां भी बच्चे बैडमिंटन खेलकर साइना-ज्वाला की तरह शहर का नाम रोशन करने की हसरत रखते हैं. 
अंधेरे में होती है प्रैक्टिस 
सरकारी सुविधाओं के नाम पर ग्रीन पार्क में इनडोर हाल बना हुआ है। लकड़ी के तख्तों पर मार्किंग करके बैडमिंटन कोर्ट बनाया गया है। मगर, मौके पर प्लेयर्स अंधेरे में प्रैक्टिस करते नजर आए। पूछने पर मालूम हुआ कि लाइट नहीं आ रही है। बावजूद इसके बच्चे प्रैक्टिस करते दिखे। क्या आज ही यहां लाइट नहीं आ रही? पूछने पर मालूम हुआ कि रोज का यही हाल है। अब लाइट के चक्कर में प्रैक्टिस तो बंद नहीं की जा सकती इतना कहकर प्लेयर्स फिर से प्रैक्टिस में जुट गये। इलेक्ट्रिफिकेशन सिस्टम भी अप टू द मार्क नहीं मिला. 
कोर्ट का बेस भी खराब 
सुविधाएं स्टैंडर्ड होंगी तो प्लेयर्स भी उसी लेवल के निकलेंगे। मगर, इनडोर हॉल के बैडमिंटन कोर्ट के फ्लोर की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती। वुडेन बेस फ्लोर पर बीच-बीच में क्रैक्स देखे जा सकते हैं। कहीं-कहीं पर तो लकड़ी के पटरे गलने तक लगे हैं। एक प्लेयर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले दिनों में प्रैक्टिस के दौरान उसका पैर जब डिफेक्टेड वुडेन फ्लोर पर पड़ा तो वो लडख़ड़ाकर गिर पड़ा था। आप समझ सकते हैं कि ऐसे वुडेन फ्लोर पर जब बच्चे प्रैक्टिस करेंगे तो उनका क्या हाल होता होगा. 
छत भी टूटी 
ऑडिटोरियम की छत भी कुछ खास अच्छी नहीं है। जाहिर है जब छत टूटी होगी तो खिलाड़ी किस खतरे के बीच में प्रैक्टिस करते होंगे। जगह-जगह से टूटी पड़ी छत से बारिश में पानी तो गर्मी में धूप की रोशनी की वजह से बच्चों का बुरा हाल हो जाता है। यह हालात तब हैं जब इस इनडोर हॉल में बैडमिंटन के अलावा टेबिल टेनिस और शूटिंग की प्रैक्टिस की भी व्यवस्था है। शूटिंग गन तो धूल खा रही है। मगर, टेबल टेनिस और बैडमिंटन खेलने वाले बच्चों को जान हथेली पर रखकर प्रैक्टिस करनी पड़ती है. 
कोच भी एडहॉक पर 
सरकारी व्यवस्था की बात की जाए तो ग्रीन पार्क के इनडोर हॉल में करीब 25 बच्चे (जो वाकई में टैलेंटेड हैं) प्रैक्टिस करते हैं। एक साल पहले तक यहां शासन की ओर से कोच रवि दीक्षित को 10 महीने के लिए एप्वाइंट किया गया था। मानदेय मिलता था करीब 12,000 रूपए महीना। लेकिन एक साल पहले उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया। शासन ने भी यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि अगर कोच को ही हटा दिया तो बैडमिंटन सीखने वाले होनहार बच्चों के भविष्य का क्या होगा? वो तो शुक्र हो खुद कोच का, जो बिना किसी सरकारी मदद के पैसे बच्चों को बैडमिंटन की बारीकियां सिखा रहे हैं. 
प्रैक्टिस को शटल कॉक ही नहीं 
अगर आपसे पूछा जाए कि बैडमिंटन खेलने के लिए कौन सी दो चीजें सबसे ज्यादा जरूरी होती हैं। तो जाहिर है आपका भी जवाब होगा, रैकेट और शटल कॉक। लेकिन क्या आप विश्वास कर पाएंगे कि ग्रीन पार्क प्रशासन के पास बच्चों के लिए शटल कॉक ही नहीं है। कोच रवि दीक्षित ने गाजियाबाद से फोन पर बताया कि शटल कॉक का स्टॉक तभी एलॉट होता है जब कोच शासन ने एप्वाइंट किया हो। कोच होने पर एक महीने में 12-15 डिब्बों का स्टॉक दिया जाता है। स्मैशिंग, शटलिंग व अदर शॉट्स सीखने में एक बच्चे के लिए डेली एक फेदर शटल कॉक की जरूरत होती है। फिलहाल, स्टॉक नहीं होने की वजह से बच्चों को पुरानी शटल से ही काम चलाना पड़ रहा है. 
भगवान भरोसे होगा टूर्नामेंट
ग्रीन पार्क में 20-22 सितंबर कुल तीन दिनों तक अंडर-13 और अंडर-15 स्टेट लेवल बैडमिंटन टूर्नामेंट होने जा रहा हैं। मगर, इनडोर हॉल की जर्जर हालत और शटल कॉक की क्राइसिस के बीच टूर्नामेंट कैसे होगा? यह सबसे बड़ा सवाल है. 
1.35 करोड़ का बजट पास 
बच्चे किस दुर्दशा के बीच बैडमिंटन सीख रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात  से लगाया जा सकता है कि खस्ताहाल इनडोर हॉल के रेनोवेशन के लिए ग्रीन पार्क प्रशासन ने दो-तीन दिन पहले ही 1.35 करोड़ रूपए का एस्टीमेट बनाया है। फंड रिलीज होते ही नये सिरे से हॉल का कायाकल्प किया जाएगा. 
ø प्लेयर के लिए सबसे जरूरी चीज होती है शटल कॉक। मान लीजिए प्लेयर ने किसी तरह रैकेट खरीद भी लिया, लेकिन शटल कॉक रोज नई चाहिए होती है। एक शटल की कीमत 80-100 रूपए होती है। शासन से शटल इश्यू नहीं हो रही है। इसलिए बच्चों को प्रॉब्लम हो रही है। जाहिर है ऐसी क्राइसिस फेस करने वाले बच्चों के लिए यही नेशनल-इंटरनेशनल लेवल के लिए सबसे बड़ा हर्डल है. 
- रवि दीक्षित, बैडमिंटन कोच
आखिर कानपुर का कोई बैडमिंटन प्लेयर नेशनल लेवल पर चमक क्यों नहीं बिखेर सका है? पुलेला गोपीचंद, साइना नेहवाल, अश्विनी पोनप्पा, पीवी सिंधु जैसे प्लेयर हमारे शहर की विरासत क्यों नहीं हैं? थर्सडे को बैडमिंटन सनसनी ज्वाला गïट्टा जब कानपुर आईं तो यह सवाल जहन में उठना लाजमी था। पढि़ए शहर की खस्ताहाल स्पोट्र्स फैसिलिटीज पर आई नेक्स्ट की मुहिम की पहली कड़ी में बैडमिंटन की कमियों को उजागर करती यह खास रिपोर्ट -

सुबह पांच बजे उठना। ग्रीन पार्क के चक्कर लगाना। टफ एकेडमिक सेशन अटेंड करना और फिर ग्रीन पार्क के इनडोर बैडमिंटन हॉल में घंटों बैडमिंटन की प्रैक्टिस सर्दी हो या गर्मी जी-तोड़ मेहनत का ये सिलसिला तमाम खिलाडिय़ों के लिए कई सालों से लगातार जारी है। हालांकि, जबरदस्त फाइनेंशियल क्राइसिस और सुविधाओं की कमी के बावजूद हौसला डिगा नहीं है। वो भी तब जब ग्रीन पार्क में बैडमिंटन सीखने वाले बच्चों के लिए सुविधाओं की जबर्दस्त क्राइसिस है। शायद स्टेट बैडमिंटन एसोसिएशन भी यह भूल चुकी है कि यूपी में कानपुर शहर है और यहां भी बच्चे बैडमिंटन खेलकर साइना-ज्वाला की तरह शहर का नाम रोशन करने की हसरत रखते हैं. 

अंधेरे में होती है प्रैक्टिस 

सरकारी सुविधाओं के नाम पर ग्रीन पार्क में इनडोर हाल बना हुआ है। लकड़ी के तख्तों पर मार्किंग करके बैडमिंटन कोर्ट बनाया गया है। मगर, मौके पर प्लेयर्स अंधेरे में प्रैक्टिस करते नजर आए। पूछने पर मालूम हुआ कि लाइट नहीं आ रही है। बावजूद इसके बच्चे प्रैक्टिस करते दिखे। क्या आज ही यहां लाइट नहीं आ रही? पूछने पर मालूम हुआ कि रोज का यही हाल है। अब लाइट के चक्कर में प्रैक्टिस तो बंद नहीं की जा सकती इतना कहकर प्लेयर्स फिर से प्रैक्टिस में जुट गये। इलेक्ट्रिफिकेशन सिस्टम भी अप टू द मार्क नहीं मिला. 

कोर्ट का बेस भी खराब 

सुविधाएं स्टैंडर्ड होंगी तो प्लेयर्स भी उसी लेवल के निकलेंगे। मगर, इनडोर हॉल के बैडमिंटन कोर्ट के फ्लोर की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती। वुडेन बेस फ्लोर पर बीच-बीच में क्रैक्स देखे जा सकते हैं। कहीं-कहीं पर तो लकड़ी के पटरे गलने तक लगे हैं। एक प्लेयर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले दिनों में प्रैक्टिस के दौरान उसका पैर जब डिफेक्टेड वुडेन फ्लोर पर पड़ा तो वो लडख़ड़ाकर गिर पड़ा था। आप समझ सकते हैं कि ऐसे वुडेन फ्लोर पर जब बच्चे प्रैक्टिस करेंगे तो उनका क्या हाल होता होगा. 

छत भी टूटी 

ऑडिटोरियम की छत भी कुछ खास अच्छी नहीं है। जाहिर है जब छत टूटी होगी तो खिलाड़ी किस खतरे के बीच में प्रैक्टिस करते होंगे। जगह-जगह से टूटी पड़ी छत से बारिश में पानी तो गर्मी में धूप की रोशनी की वजह से बच्चों का बुरा हाल हो जाता है। यह हालात तब हैं जब इस इनडोर हॉल में बैडमिंटन के अलावा टेबिल टेनिस और शूटिंग की प्रैक्टिस की भी व्यवस्था है। शूटिंग गन तो धूल खा रही है। मगर, टेबल टेनिस और बैडमिंटन खेलने वाले बच्चों को जान हथेली पर रखकर प्रैक्टिस करनी पड़ती है. 

कोच भी एडहॉक पर 

सरकारी व्यवस्था की बात की जाए तो ग्रीन पार्क के इनडोर हॉल में करीब 25 बच्चे (जो वाकई में टैलेंटेड हैं) प्रैक्टिस करते हैं। एक साल पहले तक यहां शासन की ओर से कोच रवि दीक्षित को 10 महीने के लिए एप्वाइंट किया गया था। मानदेय मिलता था करीब 12,000 रूपए महीना। लेकिन एक साल पहले उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया। शासन ने भी यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि अगर कोच को ही हटा दिया तो बैडमिंटन सीखने वाले होनहार बच्चों के भविष्य का क्या होगा? वो तो शुक्र हो खुद कोच का, जो बिना किसी सरकारी मदद के पैसे बच्चों को बैडमिंटन की बारीकियां सिखा रहे हैं. 

प्रैक्टिस को शटल कॉक ही नहीं 

अगर आपसे पूछा जाए कि बैडमिंटन खेलने के लिए कौन सी दो चीजें सबसे ज्यादा जरूरी होती हैं। तो जाहिर है आपका भी जवाब होगा, रैकेट और शटल कॉक। लेकिन क्या आप विश्वास कर पाएंगे कि ग्रीन पार्क प्रशासन के पास बच्चों के लिए शटल कॉक ही नहीं है। कोच रवि दीक्षित ने गाजियाबाद से फोन पर बताया कि शटल कॉक का स्टॉक तभी एलॉट होता है जब कोच शासन ने एप्वाइंट किया हो। कोच होने पर एक महीने में 12-15 डिब्बों का स्टॉक दिया जाता है। स्मैशिंग, शटलिंग व अदर शॉट्स सीखने में एक बच्चे के लिए डेली एक फेदर शटल कॉक की जरूरत होती है। फिलहाल, स्टॉक नहीं होने की वजह से बच्चों को पुरानी शटल से ही काम चलाना पड़ रहा है. 

भगवान भरोसे होगा टूर्नामेंट

ग्रीन पार्क में 20-22 सितंबर कुल तीन दिनों तक अंडर-13 और अंडर-15 स्टेट लेवल बैडमिंटन टूर्नामेंट होने जा रहा हैं। मगर, इनडोर हॉल की जर्जर हालत और शटल कॉक की क्राइसिस के बीच टूर्नामेंट कैसे होगा? यह सबसे बड़ा सवाल है. 

1.35 करोड़ का बजट पास 

बच्चे किस दुर्दशा के बीच बैडमिंटन सीख रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात  से लगाया जा सकता है कि खस्ताहाल इनडोर हॉल के रेनोवेशन के लिए ग्रीन पार्क प्रशासन ने दो-तीन दिन पहले ही 1.35 करोड़ रूपए का एस्टीमेट बनाया है। फंड रिलीज होते ही नये सिरे से हॉल का कायाकल्प किया जाएगा. 

ø प्लेयर के लिए सबसे जरूरी चीज होती है शटल कॉक। मान लीजिए प्लेयर ने किसी तरह रैकेट खरीद भी लिया, लेकिन शटल कॉक रोज नई चाहिए होती है। एक शटल की कीमत 80-100 रूपए होती है। शासन से शटल इश्यू नहीं हो रही है। इसलिए बच्चों को प्रॉब्लम हो रही है। जाहिर है ऐसी क्राइसिस फेस करने वाले बच्चों के लिए यही नेशनल-इंटरनेशनल लेवल के लिए सबसे बड़ा हर्डल है. 

- रवि दीक्षित, बैडमिंटन कोच