अधिकारियों का कहना है कि मोबाइल सेवाएं उपलब्ध कराने वाली कंपनी टाटा और रिलायंस से कहा गया है कि वो इस नियम को लागू करने संबंधी कानूनी औपचारिकताएं शुरु करें और मोबाइल पर इन वेबसाइटों को देखने पर रोक लगाएं।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि ये नियमों के तहत किया है और जल्द ही इस ‘प्रतिबंध’ को हटा दिया जाएगा। हालांकि सरकारी कंपनी बीएसएनएल की सेवाओं पर इस नियम का कोई असर नहीं पड़ा है।

इस फैसले पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए अलगावादी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि सरकार आम लोगों के बीच इंटरनेट पर होने वाली बातचीत पर ‘निगरानी’ रखना चाहती है।

अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने अपने बयान में कहा है भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कश्मीर के लोगों की परेशानियों को छिपाना चाहती है।

एक मानवाधिकार संगठन से जुड़े खुर्रम परवेज़ का कहना है कि निजी अधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है। सरकार लोगों की अभिव्यक्ति उनके विचारों पर पहरा लगाना चाहती है।

'दिल्ली' से हुआ आदेश

अमरीका में इस्लाम पर बनी फिल्म के यू-ट्यूब पर प्रचार और इससे मचे बवाल के बाद भारत में भी सरकारी अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर लगाम कसने की कोशिश की है। इसके चलते हाल फिलहाल ‘देशद्रोह’ और ‘ईशनिंदा’ के लगभग 15 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इस बीच राज्य के पुलिस अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि ये आदेश 'दिल्ली' से आया है।

माना जाता रहा है कि देश में होने वाले आंदोलन और प्रदर्शन सोशल मीडिया के ज़रिए फैलते हैं और इनमें यू-ट्यूब- फेसबुक की अहम भूमिका रहती है।

गृहमंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है, "लोगों को समझना चाहिए कि इंटरनेट सेवाएं देने वाली कंपनियों और भारत सरकार के बीच कई तरह के करार हो चुके हैं। इन दिनों हम गूगल और फेसबुक के साथ बातचीत और समझौतों की तैयारी कर रहे हैं। यही वजह है कि इन वेबसाइट पर रोक लगाने हुई हैं." मंत्रालय का कहना है कि इसे प्रतिबंध नहीं माना जाना चाहिए।

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