कानपुर (ब्यूरो)। रतौंधी के इलाज के लिए रिसर्च के दौरान आंख के पर्दे यानी रेटिना की नस के अंदर इंजेक्शन लगाने में डॉक्टर्स को कामयाबी मिली है। इसके लिए जीएसएवीएम के आई डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर ने एक स्पेशल निडिल बनाई। इसको सुप्रा खोराइडल निडिल 500-900 माइक्रो यूनिट यानी माइक्रो निडिल फॉर आकूलर ड्रग डिलिवरी को 20 साल के लिए अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्रदान कर दिया है। उन्होंने इस निडिल का इंटरनेशनल पेटेंट कराने के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट के जरिए आवेदन किया था। इसके लिए उन्हें पांच वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। इस बीच देश-दुनिया के संस्थानों से वेरीफिकेशन किया गया।

15 पेशेंट पर किया रिसर्च
दरअसल रतौंधी जन्मजात बीमारी है, जिसमें रेटिना की सेल्स खुद ब खुद मरने लगती हैं। इस वजह से आंख की नस सूखने से रोशनी कम होती जाती है। इस वजह से पांच वर्ष से लेकर 15 वर्ष की उम्र तक के बच्चों के आंखों की रोशनी चली जाती है। रतौंधी का इलाज नहीं होने पर ही मेडिकल कालेज के वर्ष 2018 में नेत्र रोग विभागाध्यक्ष रहे प्रो। परवेज खान ने रतौंधी के इलाज पर शोध के तहत ऐसे 15 मरीज लिए थे, जिन्हें कुछ नहीं दिखता था।

प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा से इंजेक्शन
उन्होंने इन मरीज के रक्त से तैयार प्लेटलेट््स रिच प्लाज्मा से इंजेक्शन तैयार किया, जिसे रेटिना की नस से जुड़ी रॉड और कोन सेल्स पर लगाना था, लेकिन दोनों नसें आंख के अंदरूनी तरफ होने से वहां पहुंचना संभव नहीं था। मेडिकल मार्केट में भी ऐसी कोई निडिल नहीं थी। इसलिए प्रो। परवेज खान ने खुद ही विशेष प्रकार की निडिल तैयार की। उसके माध्यम से रेटिना के अंदरूनी हिस्से में पहुंच कर इंजेक्शन लगाने में भी कामयाब हुए। उन्होंने इसका नाम सुप्रा खोराइडल निडिल 500-900 माइक्रो यूनिट रखा था, जिसे पेटेंट में 'माइक्रो निडिल फॉर आक्युलर ड्रग डिलिवरी नाम दिया गया। सेंट्रल गवर्नमेंट के पेंटेंट ऑफिस ने 10 अगस्त को पेटेंट का प्रमाणपत्र जारी किया है। उनकी इस उपलब्धि पर प्रिंसिपल प्रो। संजय काला, वाइस पिंरसिपल प्रो। रिचा गिरि और एचओडी प्रो। शालिनी मोहन ने बधाई दी है।

5 साल लग गए प्रॉसेस पूरा होने में
प्रोफेसर परवेज खान ने बताया कि पेटेंट के लिए वर्ष 2018 में आवेदन किया था। पेटेंट से पहले दुनिया भर के संस्थानों से दावे के बारे में पूछा गया तो इससे मिलती जुलती तीन निडिल अमेरिका में मिली थीं। हालांकि, उन निडिल से रेटिना के अंदरूनी हिस्से तक पहुंचा संभव नहीं था। उसके बाद पूछा गया था कि अमेरिकन निडिल से यह कैसे अलग हैं। उसका जवाब तुरंत ही दे दिया था। पांच साल में पूरा प्रॉसेज करने के बाद पेटेंट दिया गया है। दुनिया के कई जाने माने संस्थानों ओर विशेषज्ञों के वेरीफिकेशन के बाद पेटेंट दिया गया है।