कानपुर (ब्यूरो)। सुबह सात बजते ही रेडियो पर जेल में गायत्री मंत्र ú भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयातगुंजायमान होने लगता है। डेली रूटीन निपटाने के बाद सुबह ही कुछ बंदी जेल में बने मंदिर में सुंदरकांड का पाठ कर जयकारे लगाने लगते हैं तो बगल में बनी मस्जिद में अजान होने लगती है। ज्यादातर बंदी बैरिक में लगाए गए अपने इष्टदेव के चित्र पर अगरबत्ती करते है। दोपहर होते-होते पुस्तकालय में बंदियों की संख्या बढऩे लगती है। कोई उपनिषद तो कोई गीता जारी कराना चाहता है। बाइबिल और कुरान भी खूब पढ़ी जाती है। शाम को जेल बंद होने से पहले फिर मंदिर में ऊं जय जगदीश हरेगूंजने लगता है।

जेल की लाइब्रेरी में हैैं 1500 किताबें

कड़े नियम-कानून के बीच चलने वाली जेल की ङ्क्षजदगी में अध्यात्म की बयार में बढ़ोत्तरी हो रही है। दरअसल अपराध बोध होने पर बंदी अध्यात्म से जुडक़र प्रारब्ध संवार रहे हैं। सलाखों में अपराध बोध की जंजीरों में जकड़े बंदी अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। ज्यादातर बंदी गीता, उपनिषद, कुरान और बाइबिल पढ़ रहे हैैं। जेल में बने पुस्तकालय में 1500 पुस्तकें हैं। इस समय बंदी सबसे ज्यादा वेद, उपनिषद, गीता, रामचरितमानस की मांग करते हैं।

सीनियर सिटीजन महिला ने मंगाया कठोपनिषद

दहेज हत्या में 10 साल कैद भुगत रही एक वृद्धा ने जेल प्रशासन से धार्मिक ग्रंथ कठोपनिषद की मांग की। उसने कहा कि उसे ये ग्रंथ संस्कृत से ङ्क्षहदी में अनुवाद वाला चाहिए। महिला कैदी को ये ग्रंथ मंगाकर पुस्तकालय के जरिए जारी कर दिया गया है। बुजुर्ग बंदी अखंड ज्योति पत्रिका और शिवखेड़ा की जीत पुस्तक की ज्यादा मांग करते हैं। पुस्तकालय से हर रोज बंदी और कैदी 50-60 पुस्तकें जारी कराते हैं। युवा बंदी प्रेमचंद और निराला का साहित्य पढ़ रहे हैं। चंद्रकांता का तिलिस्म भी बंदियों पर छाया है। ऐसे उपन्यास की भी खूब मांग रहती है।