दरअसल न्यूज़ीलैंड के 100 सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि संरक्षण विभाग में बजट कटौती और नौकरियों में छंटनी से कई प्रजातियाँ लुप्त हो सकती हैं।

न्यूज़ीलैंड को आमतौर पर अपने जीव-जंतुओं की संरक्षण के प्रयासों के लिए जाना जाता है। लेकिन अब न्यूज़ीलैंड के संरक्षण विभाग में क़रीब 100 लोगों को हटाने की योजना है। वैज्ञानिकों ने आरोप लगाया है कि सरकार देश की प्राकृतिक विरासत को सहेज कर नहीं रख रही।

वैज्ञानिकों ने संबधित विभाग की मंत्री को पत्र भी लिखा है जिसका नाम है- ‘रिसेशन कम एंड गो, एक्सटिंशन इज़ फ़ॉरऐवर’ यानी ‘मंदी तो आती-जाती रहती है पर लुप्त हुए जीव फिर नहीं आते’।

ख़तरा

वैज्ञानिकों का मानना है कि संरक्षण विभाग के कर्मचारियों की मदद के बग़ैर कई पशु-पक्षियों को हमेशा के लिए ख़त्म होने से नहीं बचाया जा सकता था। इसमें तकाहे नाम का दुलर्भ पक्षी भी शामिल है जो उड़ नहीं सकता।

प्रोफ़ेसर ह्यू पॉसिंघम कहते हैं, “प्रदूषण, पेड़ों की कटाई जैसी समस्याओं के बावजूद पिछले 45 सालों में न्यूज़ीलैंड में पक्षियों की कोई भी प्रजाति विलुप्त नहीं है। लेकिन न्यूज़ीलैंड में दो हज़ार ऐसी प्रजातियाँ हैं, जिन पर ख़तरा है। अगर कर्मचारी कम हो जाते हैं तो इससे ख़तरा और बढ़ जाएगा.”

बीबीसी संवाददाता के मुताबिक़ न्यूज़ीलैंड सरकार ‘किफ़ायती संरक्षण कार्यक्रमों’ के लिए वो 60 लाख डॉलर बचाना चाहती है। मंत्रियों का कहना है कि वो विभिन्न प्रजातियों को बचाने के प्रति वचनबद्ध हैं पर साथ ही ये भी कहते हैं कि इसके लिए सीमित संसाधनों को ज़्यादा कारगर तरीक़े से इस्तेमाल करना होगा।

जिन प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा मँडरा रहा है, वे हैं- हेक्टर्स डॉल्फिन, छोटी पूँछ वाला चमगादड़ और ओलिवर्स न्यूज़ीलैंड स्किंक, जो एक प्रकार की छिपकली है।

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