कानपुर (ब्यूरो) पहले के समय में हर किसी के लिए घड़ी रखना मुश्किल था। जिसे देखते हुए शहर के अलग अलग जगहों पर सात टावर क्लॉक बनवाया गया था। मकसद था कि कानपुर में मिलों और मेन मार्केटों में मजदूरों को सुविधा देना। घनी आबादी में बने इन घंटाघरों की टिक-टिक पर मजदूर तो चलते ही थे, साथ ही शहर भी जाग जाता था।

अफसरों का इस पर ध्यान नहीं
एक तरफ शहर को स्मार्ट बनाने की कवायद चल रही है, वहीं दूसरी तरफ अफसर इन ऐतिहासिक घडिय़ों की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिस वजह से घडिय़ां खराब हो चुकी हंै। शहर की विरासत बचाने की जिम्मेदारी न प्रशासन, न केडीए और न ही नगर निगम के अधिकारी ले रहे हैं।

मैकेनिक को नहीं होता भुगतान
इन टावर क्लॉक की रिपेयरिंग के लिए सिर्फ एक मैकेनिक डेविड मेसी हंै, जोकि सभी क्लॉकों को मिनटों में बनाने में माहिर हंै। वर्ष 1944 से 1979 तक यह काम उनके पिता बाबू मेसी किया करते थे, डेविड बताते हैं कि 1977 से वह इन क्लॉक को बना रहे हैं, इस काम को उन्होंने अपने पिता से सीखा था, जोकि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। नैनीताल, फैजाबाद, देहरादून समेत अन्य जगहों के क्लॉक टावरों को वह बनाते रहे हैं, लेकिन कानपुर के क्लॉक को बनवाने के लिए अफसर बजट पास नहीं करते जिस कारण घडिय़ां जंग खा रही हैं।