KANPUR : मुंबई-गोवा हाईवे पर मेहाड़ में अग्रेजों के जमाने का बना ओवरब्रिज सावित्री नदी की धार में बह गया। दो रोडवेज बसें और दो कार इसमें समां गईं। 29 लोग काल के गाल में चले गए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने सभी पुराने ओवरब्रिज की नए सिरे से जांच करने के आदेश दिए हैं। खास बात यह है कि जो पुल बहा है उसकी ऑडिट रिपोर्ट में उक्त पुल को फिट बताया गया था। अब सवाल उठता है कि अगर ऑडिट रिपोर्ट में पुल फिट था तो किन परिस्थितियों में नदी की तेज धार का सामना नहीं कर सका। इस हादसे के बाद देश के उन सभी पुलों की चिन्ता होने लगी है, जिनका निर्माण अंग्रेजों के जमाने में हुआ था। अपने शहर में भी कई पुल हैं जिसमें कानपुर-शुक्लागंज को जोड़ने वाला पुराना गंगापुल भी है। आई नेक्स्ट ने इस हादसे को संज्ञान में लेते हुए इस पुल का रियलिटी चेक किया तो देखने तो पुल सही लग रहा है, लेकिन वाहनों के चलने पर पुल में कंपन हो रहा था। यही नहीं समानान्तर बने पुल पर जब ट्रेन गुजरती है तो तब भी यह पुल कांपता नजर आया।

सबसे पहले इस पुल का परिचय बताते हैं। यह पुल 15 जुलाई 1875 में चालू किया गया। लोहे के बने इस पुल का निर्माण अवध व रुहेलखण्ड रेलवे कम्पनी लिमिटेड ने कराया। मि। जेएम हेपोल ने पुल के ढांचे की डिजाइन तैयार की। रेजीडेंट इंजीनियर एसबी न्यूटन ने असिस्टेंट इंजीनियर मि। ई वेडगार्ड की सहायता से यह पुल बना। चीफ इंजीनियर मि। टी लोवेल थे। इस पुल की मियाद 100 वर्ष मानी गई थी, लेकिन 41 वर्ष ज्यादा होने के बाद भी इस पुल की सेवा ली जा रही है।

सन 77 में भारी वाहन बैन

141 वर्ष पुराने हो चुके इस गंगा ओवरब्रिज को सन 1977 में असुरक्षित मानकर भारी वाहनों के चलने पर बैन लगा दिया गया था। यह ओवरब्रिज दो मंजिला बना है। नीचे की तरफ पैदल चलने वालों के लिए और ऊपर वाहन चलते हैं। भारी वाहन बंद होने के बाद कार, दुपहिया वाहन व अन्य छोटे वाहनों का ट्रैफिक इस वक्त यहां चल रहा है। यह पुल जिस स्थान पर बना है वहां गंगा का पाट काफी चौड़ा है और तेज लहरें हर समय पुल को टक्कर मारते हुए गुजरती हैं।

जाम के समय होता है भारी लोड

24 घंटे इस पुल पर यातायात दौड़ता रहता है। करीब 3-4 लाख लोग यहां से रोज गुजरते हैं। दिन के समय तो कई बार वाहनों की भीड़ से रोज जाम भी लगता है। जाम के वक्त इस ओवरब्रिज पर अच्छा खासा वजन होता है। वाहनों के दौड़ने पर कंपन होता है। जिसके बारे में एक्सपर्ट कहते हों कि पुल पर कंपन होना स्वभाविक है, लेकिन एक निश्चित सीमा तक। अगर पुल ज्यादा हिलेगा तो दरार आने की संभावना बन सकती है।

'इस पुल को कोई खतरा नहीं'

पुल की देखरेख का जिम्मा पीडब्ल्यूडी के प्रांतीय खण्ड के पास है। एक्जीक्यूटिव इंजीनियर अनिल मिश्रा से जब इस पुल की मजबूती के बारे में सवाल किया गया तो उनका कहना है ऑडिट रिपोर्ट के बारे में तो जानकारी नहीं है, लेकिन यह पुल छोटे वाहनों के लिए अभी फिट है। पुल की मेन्टेनेंस समय-समय पर कराई जाती रहती है। फिलहाल इस पुल को कोई खतरा नहीं है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है। अब सवाल उठता है कि महाराष्ट्र में जो पुल सावित्री नदी की लहरों में बहा। उस पुल को भी ऑडिट रिपोर्ट में फिट बताया गया था। अगर इस पुल को भी अधिकारिक रूप से फिट होना मान लिया जाए और इसके बावजूद अगर कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा। यह एक यक्ष प्रश्न है।

पुल शुरू हुआ-15 जुलाई 1875

निर्माण कंपनी- अवध व रुहेलखंड रेलवे कंपनपी लि।

आर्किटेक्ट- मि। जेएम हेपोल

चीफ इंजीनियर- मि। टी लोवेल

पुल की लाइफ- 100 वर्ष

ओवर लाइफ- 41 वर्ष

ऑडिट रिपोर्ट- ओके

वर्तमान स्थिति- सिर्फ भारी वाहनों पर वैन